हिमाचल की सामरिक भूमिका अहम

1971 में पाकिस्तान को तकसीम करने वाली भारतीय सैन्यशक्ति देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए सरहदों की बंदिशों को तोड़कर चीन का भूगोल बदली करके उसका जंगी फितूर उतारने में गुरेज नहीं करेगी। सरहदों पर डै्रगन को भारत से उलझने की हरकत व हिमाकत महंगी साबित होगी। मौजूदा भारत ऑफैंसिव रुख अख्तियार कर चुका है…

भारत के लिए दुर्भाग्य की बात यह है कि पश्चिमी सरहद पर दहशतगर्दी का मरकज हमशाया मुल्क पाकिस्तान आतंक व नशीले पदार्थों का निर्यातक बन चुका है, वहीं पूर्वोत्तर सीमा पर भू-माफिया चीन जो किसी अंतरराष्ट्रीय कायदे या कानून को नहीं मानता, खामोशी से अपने विस्तारवादी मंसूबों को अंजाम दे रहा है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि भविष्य के युद्धों में भारतीय सेना को ‘टू फ्रंट वार’ का सामना करना होगा, यानी पूर्वोत्तर में चीन तथा पश्चिमी महाज पर पाकिस्तान से भी निपटना पडे़गा। सैन्य टकराव में युद्ध के मोर्चों पर दुश्मन का सामना करने वाली भारतीय सेना के लिए वीरभूमि हिमाचल की सामरिक भूमिका बेहद अहम होगी। राज्य में सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मनाली को लेह से जोड़ने वाली 9.02 किलोमीटर लंबी ‘अटल टनल’ के वजूद में आने के बाद चीन के सैन्य गलियारों की हरारत बढ़ चुकी है। आधुनिक तकनीक से लैस यह टनल किसी भी स्थिति में भारतीय सशस्त्र सेनाओं को अपने साजो-सामान के साथ लद्दाख घाटी में ‘एलएसी’ पर पहुंचाने में कारगर साबित हो चुकी है। इस टनल के निर्माण से लद्दाख में पैंगोग झील तक भारतीय सेना की पहंुच काफी आसान हो चुकी है। 14 देशों के साथ लगती अपनी सीमाओं को ‘सलामी स्लाइसिंग’ रणनीति के तहत अतिक्रमण में जुटे चीन के सिपहसालारों को इस बात का भली-भांति इल्म है कि जमीनी युद्धों में उसकी ‘पीएलए’ (पीपल लिबरेशन आर्मी) को दुनिया में केवल भारतीय थलसेना ही नेस्तनाबूद कर सकती है। इसका उदाहरण 5 जून 2020 को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय सरजमीं को कब्जाने का दुस्साहस करने वाली चीनी फौज को हमारे शूरवीर सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब देकर कई चीनी सैनिकों को जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया था। उस खूनी सैन्य संघर्ष में हमारे 20 जांबाजों ने मातृभूमि की रक्षा में शहादत को गले लगा लिया था। उसी सैन्य संघर्ष में हिमाचली सपूत अंकुश ठाकुर ‘सेना मैडल’ ने भी अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था, मगर चीन ने गलवान के सैन्य संघर्ष में भारतीय सेना द्वारा मारे गए अपने मरहूम सैनिकों की मौत की हकीकत को दुनिया में बेआबरू होकर कई महीनों के बाद स्वीकार किया था।

 हिमालयी क्षेत्रों में गुपचुप तरीकों से विस्तारवाद को गति देने में जुटे चीन ने अपने देश में ‘द लैंड बाडर्स लॉ’ नामक कानून भी तैयार कर लिया है। हिमालय के आंचल में बसे देश के पांच राज्यों से लगती चीन की 3488 किलोमीटर लंबी ‘एलएसी’ का 240 किलोमीटर भाग हिमाचल के किन्नौर व लाहौल-स्पीति जिलों से भी लगता है। 1962 की भारत-चीन जंग में इन जिलों के सरहदी गांवों के लोगों ने भारतीय सेना का बखूबी साथ निभाकर वतनपरस्ती की मिसाल कायम की थी। सीमांत क्षेत्रों में खौफ के साए में जीवनयापन कर रहे संवेदनशाील गांवों के लोग कई आधुनिक सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं। चीन जैसे मुल्क से निपटने के लिए वहां के दुर्गम इलाकों की विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों से वाकिफ सरहदी क्षेत्रों के युवाओं की भारतीय सेना में भागीदारी बढ़नी चाहिए। 16 नवंबर 2021 को उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर के एक्सप्रैस-वे पर वायुसेना के सुखोई, मिराज, सूर्यकिरण व जगुआर जैसे जंगी विमानों की गर्जना व लैंडिंग की तस्वीरों से पाक व चीन की बौखलाहट बढ़ना स्वाभाविक है। मगर चीन की घेरेबंदी व उसकी मसूबाबंदी को ध्वस्त करने तथा देश के सामरिक क्षेत्रों में रणनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए सरकारों को ऐसे विकास कार्यों का रोडमैप हिमाचल में भी तैयार करना होगा। हालांकि राज्य में भानुपल्ली, बिलासपुर व मनाली से लेह तक जाने वाली रेललाइन तथा बिलासपुर से मंडी तक फोरलेन सड़क परियोजना का निर्माण कार्य पूर्ण होने से राज्य में पर्यटन उद्योग विकसित होगा तथा यह निर्माण कार्य देश के रक्षा क्षेत्र के लिए भी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा। लेकिन युद्ध जैसे हालात में सशस्त्र सेनाओं को ‘शार्ट नोटिस’ जैसी आपात स्थिति में देश की पर्वतीय सरहदों तक पहंुचाने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों तक राजमार्गों का निर्माण कार्य जरूरी है। चूंकि मैदान-ए-जंग में पहला वार ही शत्रु सेना पर मानसिक दबाव बनाकर युद्ध की दशा व दिशा तय करता है, ऐसे मिशनों में फिजाई हमले अहम किरदार निभाते हैं। अतः राज्य में वायुसेना के लिए मजबूत बुनियाद एयरबेस व हवाई अड्डों के विस्तार को रफ्तार देनी होगी ताकि समरभूमि में हमारे वायुवीर अपने अचूक प्रहारों से दुश्मन के लाव-लश्कर को पलभर में तबाह कर सकें। दूसरी विडंबना यह है कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था मौजूद है।

 सामरिक विषयों की जानकारी के बिना भी कई हुक्मरान सैन्य कार्य प्रणाली पर सवाल उठाते रहते हैं, मगर दुनिया में खुफिया तरीके की सोच के साथ रहस्यमयी जीवन जीने वाले मुल्क चीन की सेना अपने दार्शनिक ‘सुन्त जू’ द्वारा हजारों वर्ष पूर्व युद्ध कलाओं पर लिखी किताब ‘आर्ट ऑफ वार’ के उसूलों पर चलती है। वहीं पाकिस्तान का निजाम वहां की खुफिया एजेंसी ‘आईएसआई’ तय करती है। दोनों देशों में हुकमरानी कानून के बजाय सैन्य ताकत से चलती है। पड़ोस में ऐसे शातिर मुल्कों की साजिशों को मात देने का एकमात्र विकल्प तकनीकी युद्धक क्षमताओं से लैस ताकतवर सैन्यबल ही है। मजबूत सैन्यशक्ति के बिना सर्वशक्तिमान राष्ट्र की कल्पना नहीं हो सकती। भारत के लिए फक्र की बात है कि मरुस्थलों से लेकर हजारों फीट की ऊंचाई वाले ‘माऊंटेन वारफेयर’ जैसे युद्धों के लिए प्रशिक्षित भारतीय सेना मानसिक व शारीरिक ताकत में पाक व चीन की सेनाओं से बेहतर स्थिति में है। ‘लक्षित हमले’ जैसे खुफिया सैन्य मिशनों में अपनी श्रेष्ठता साबित कर चुकी भारतीय थलसेना जमीनी युद्धों में विश्व में सर्वोत्तम है। अतः जंग के मुहाने पर खडे़ चीन के हुक्मरानों को भारतीय थलसेना द्वारा 1967 में सिक्किम के ‘नाथुला ऑपरेशन’ में चीनी सेना के हश्र का अंजाम याद करना होगा। 1971 में पाकिस्तान को तकसीम करने वाली भारतीय सैन्यशक्ति देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए सरहदों की बंदिशों को तोड़कर चीन का भूगोल बदली करके उसका जंगी फितूर उतारने में गुरेज नहीं करेगी। सरहदों पर डै्रगन को भारत से उलझने की हरकत व हिमाकत महंगी साबित होगी। मौजूदा भारत ऑफैंसिव रुख अख्तियार कर चुका है।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं