मुफ्त में सच्ची शिक्षा बांटिए

अतः यदि इस 37000 रुपए प्रति सच्चे छात्र की रकम को प्रदेश के सभी छात्रों यानी सरकारी एवं प्राइवेट स्कूल दोनों में पढ़ने वाले छात्रों में वितरित किया जाए तो प्रत्येक छात्र पर उत्तर प्रदेश सरकार लगभग 20000 रुपए प्रति वर्ष खर्च रही है। सुझाव है कि चुनाव के इस समय पार्टियां वायदा कर सकती हैं कि इस 20000 रुपए की रकम में से 12000 रुपए प्रदेश के सभी छात्रों को मुफ्त वाउचर के रूप में दे दिया जाएगा। इस वाउचर के माध्यम से वे अपने मनचाहे विद्यालय में फीस अदा कर सकेंगे। यह 12000 रुपए प्रति वर्ष प्रति छात्र सरकारी शिक्षकों के वेतन में से सीधे कटौती करके किया जा सकता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि सरकारी अध्यापकों का वेतन वास्तव में कम हो जाएगा। वे अपने विद्यालय को आकर्षक बना कर पर्याप्त संख्या में छात्रों को आकर्षित करेंगे तो वे अपने वेतन में हुई इस कटौती की भरपाई वाउचर से मिली रकम से कर सकते हैं। जैसे वर्तमान में तमाम विश्वविद्यालयों में सेल्फ फाइनेंसिंग कोर्स चलाए जा रहे हैं…

चुनाव के इस माहौल में मुफ्त बंटवारे के वायदे करने की होड़ मची हुई है। कोई साड़ी बांटता है, कोई साइकिल, कोई लैपटॉप और कोई मुफ्त में बस यात्रा। यहां तक कि कहीं तो शराब भी मुफ्त बांटने की बात की जा रही है। शराब छोड़कर इस मुफ्त बंटवारे का मैं स्वागत करता हूं क्योंकि कम से कम जनता को 5 साल में एक बार ही सही, कुछ तो हासिल हो। सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी जैसी नीतियां लागू कर जनता के रोजगार और धंधे को पस्त कर दिया है। इसलिए मुफ्त में जो मिल जाए उसी का स्वागत है। लेकिन विचारणीय यह है कि मुफ्त क्या बांटा जाए? साड़ी और शराब अथवा मेरा सुझाव है कि सच्ची अंग्रेजी शिक्षा को ही मुफ्त बांट दीजिए तो जनता भी सुखी हो जाएगी और पार्टी को संभवतः जीत भी हासिल हो जाए। कहावत है कि किसी व्यक्ति को मछली देने के स्थान पर मछली पकड़ना सिखाना ज्यादा उत्तम है क्योंकि यदि मछली पकड़ना सीख लेगा तो वह आजीवन अपनी आय अर्जित कर सकता है। इसी प्रकार यदि हम युवाओं को मुफ्त साइकिल और लैपटॉप वितरित करने के स्थान पर यदि मुफ्त अंग्रेजी शिक्षा वितरित कर दें तो वे साइकिल और लैपटॉप स्वयं खरीद लेंगे और आजीवन अपनी जीविका भी चला सकेंगे। जनता में अंग्रेजी शिक्षा की गहरी मांग है। शहरों में घरों में काम करने वाली सहायिकाओं द्वारा भी अपने बच्चों को 1500 से 2000 रुपए प्रतिमाह की फीस देकर अच्छी अंग्रेजी के लिए प्राइवेट स्कूल में भेजने का प्रयास किया जाता है। वे अपनी आय का लगभग तिहाई हिस्सा बच्चों की फीस देने में व्यय कर देती हैं। इससे प्रमाणित होता है कि शिक्षा की मांग है, लेकिन अच्छी शिक्षा खरीदने की उनकी क्षमता नहीं है। दिल्ली की आप सरकार ने सरकारी शिक्षा में महत्त्वपूर्ण सुधार किए हैं, लेकिन इसके बावजूद सरकारी विद्यालयों के हाई स्कूल में 72 फीसदी विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए जबकि प्राइवेट स्कूलों में 93 फीसदी विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए। दूसरे राज्यों में सरकारी विद्यालयों की स्थिति बहुत अधिक दुरूह है, जबकि इन पर सरकार द्वारा भारी खर्च किया जा रहा है। इस विषय पर उत्तर प्रदेश का उदाहरण आपके सामने रखना चाहूंगा। वर्ष 2016-17 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सरकारी प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में प्रति छात्र 25000 रुपए प्रतिवर्ष खर्च किए जा रहे थे। वर्तमान वर्ष 2021-22 में यह रकम लगभग 30000 रुपए हो गई होगी। इसमें भी सरकारी विद्यालयों में तमाम दाखिले फर्जी किए जा रहे हैं।

 बिहार के एक अध्ययन में 9 जिलों में 4.3 लाख फर्जी विद्यार्थी सरकारी विद्यालयों में पाए गए। इन फर्जी दाखिलों को दिखाकर स्कूल के कर्मचारी मध्यान्ह भोजन और यूनिफॉर्म इत्यादि की रकम को हड़प जाते हैं। किसी अन्य आकलन के अभाव में हम मान सकते हैं कि 20 फीसदी विद्यार्थी फर्जी दाखिले के माध्यम से दिखाए जाते होंगे। इन्हें काट दें तो उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रति सच्चे विद्यार्थी पर 37000 रुपए प्रति वर्ष खर्च किया जा रहा है। नेशनल सैंपल सर्वे के अनुसार लगभग 60 फीसदी बच्चे वर्तमान में सरकारी विद्यालयों में जा रहे हैं। अतः यदि इस 37000 रुपए प्रति सच्चे छात्र की रकम को प्रदेश के सभी छात्रों यानी सरकारी एवं प्राइवेट स्कूल दोनों में पढ़ने वाले छात्रों में वितरित किया जाए तो प्रत्येक छात्र पर उत्तर प्रदेश सरकार लगभग 20000 रुपए प्रति वर्ष खर्च रही है। सुझाव है कि चुनाव के इस समय पार्टियां वायदा कर सकती हैं कि इस 20000 रुपए की रकम में से 12000 रुपए प्रदेश के सभी छात्रों को मुफ्त वाउचर के रूप में दे दिया जाएगा। इस वाउचर के माध्यम से वे अपने मनचाहे विद्यालय में फीस अदा कर सकेंगे। यह 12000 रुपए प्रति वर्ष प्रति छात्र सरकारी शिक्षकों के वेतन में से सीधे कटौती करके किया जा सकता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि सरकारी अध्यापकों का वेतन वास्तव में कम हो जाएगा। वे अपने विद्यालय को आकर्षक बना कर पर्याप्त संख्या में छात्रों को आकर्षित करेंगे तो वे अपने वेतन में हुई इस कटौती की भरपाई वाउचर से मिली रकम से कर सकते हैं। जैसे वर्तमान में तमाम विश्वविद्यालयों में सेल्फ फाइनेंसिंग कोर्स चलाए जा रहे हैं। इन कोर्सों में छात्र द्वारा भारी फीस दी जाती है जिससे पढ़ाने वाले अध्यापकों के वेतन का पेमेंट किया जाता है। इसी तर्ज पर सरकारी प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक छात्रों को आकर्षित कर उनके वाउचर हासिल कर अपने वेतन की भरपाई कर सकते हैं। ऐसा करने से सरकारी तथा निजी दोनों प्रकार के विद्यालयों को लाभ होगा।

 सरकारी विद्यालयों के लिए अनिवार्य हो जाएगा कि वे अपनी शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाएं जिससे कि वे पर्याप्त संख्या में छात्रों को आकर्षित कर सकें। उनके वाउचर हासिल कर सकें और अपने वेतन में हुई कटौती की भरपाई कर सकें। प्राइवेट विद्यालयों के लिए भी यह लाभप्रद हो जाएगा क्योंकि उनमें दाखिला लेने वाले छात्र 1000 रुपए प्रति माह की फीस इन वाउचरों के माध्यम से कर सकते हैं और शेष फीस वह अपनी आय से दे सकते हैं। जो सहायिका अपने 6000 रुपए के मासिक वेतन में से वर्तमान में 1500 रुपए अंग्रेजी स्कूल में बच्चे की फीस अदा करने के लिए खर्च कर रही है, उसे अपनी कमाई में से केवल 500 रुपए ही देने होंगे। जिस प्राइवेट विद्यालय द्वारा आज 600 रुपए प्रति माह फीस के रूप में लिए जा रहे हैं, उसे वाउचर के माध्यम से 1000 रुपए मिल जाएंगे और कुल 1600 रुपए की रकम से वे अच्छे अध्यापक की नियुक्ति कर सकेंगे। प्राइवेट विद्यालयों की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। हमें समझना चाहिए कि वर्तमान समय में रोबोट और बड़ी कंपनियों द्वारा सस्ते माल का उत्पादन किए जाने से आम आदमी के रोजगार का भारी हनन हो रहा है और इसके सतत जारी रहने का अनुमान है। इसलिए आम आदमी की जीविका को आगे आने वाले समय में बनाए रखने के लिए जरूरी है कि वह अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करें जिससे इंटरनेट आदि के माध्यम से वे सॉफ्टवेयर, संगीत, अनुवाद इत्यादि सेवाओं की बिक्री कर सकें और अपनी जीविका चला सकें। वर्तमान चुनाव के माहौल में पार्टियों को चाहिए कि साड़ी, साइकिल और लैपटॉप बांटने के वायदों के स्थान पर सच्ची शिक्षा को मुफ्त बांटने पर विचार करें जिससे उन्हें चुनाव में जीत हासिल हो, सरकार पर आर्थिक बोझ भी न पड़े तथा जनता को आने वाले समय में और रोजगार भी उपलब्ध हो जाए।

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

ईमेलः bharatjj@gmail.com