राज्यों के जीएसटी संकट की अनदेखी

जीएसटी की बढ़ी हुई वसूली देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर दिखाती है जिसमें कि आम आदमी और छोटे उद्योगों का धंधा चौपट हो गया है। जीएसटी से संबंधित दूसरा विषय जीएसटी की वसूली में अपेक्षित वृद्धि न होने का है। जीएसटी लागू करते समय केंद्र सरकार ने राज्यों को आश्वासन दिया था कि हर वर्ष कम से कम 14 फीसदी की वृद्धि हो जाएगी। इससे कम वृद्धि होने पर कमी की भरपाई केंद्र सरकार ने पांच वर्षों तक करने का वायदा किया था। जुलाई 2022 के बाद केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को यह भरपाई बंद कर दी जाएगी। इसके बाद राज्यों को केंद्र सरकार से भरपाई नहीं मिलेगी। कई राज्यों की आय 20 से 40 फीसदी तक कम हो जाएगी। उनके लिए अपने कर्मियों को वेतन देना भी कठिन हो जाएगा। बजट में इस समस्या का हल यह सुझाया गया है कि राज्य और अधिक मात्रा में ऋण ले सकते हैं, लेकिन जब उनकी जीएसटी की वसूली ही कम हो रही है तो ऋण की अदायगी वे कैसे करेंगे…

सरकार की आय मुख्यतः आयकर एवं जीएसटी से होती है। हाल मे जीएसटी की मासिक वसूली पूर्व के 100 हजार करोड़ प्रति माह से बढ़ कर 140 हजार करोड़ हो गई है जो कि पूर्व से 40 फीसदी अधिक है। यह खुशी का विषय है। इससे संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था का चक्का घूम रहा है। लेकिन प्रश्न उठता है कि यदि जीएसटी की वसूली में 40 फीसदी की वृद्धि हुई है तो जीडीपी में मात्र 9 फीसदी की वृद्धि क्यों हुई? जीएसटी को उत्पादन पर वसूल किया जाता है। जब उत्पादन बढ़ेगा तो एक तरफ जीडीपी बढ़ेगा और दूसरी तरफ जीएसटी की वसूली बढ़ेगी, जैसे धान की सफाई करने में चावल और भूसी एक साथ निकलती हैं। इसलिए जीडीपी में भी 40 फीसदी की वृद्धि होनी चाहिए थी। कौतूहल का विषय यह है कि यदि उत्पादन वास्तव में 40 फीसदी बढ़ रहा है तो जीडीपी मात्र 9 फीसदी क्यों बढ़ रहा है? और यदि उत्पादन 9 फीसदी बढ़ रहा है तो फिर जीएसटी की वसूली 40 फीसदी कैसे बढ़ रही है? इस गुत्थी को सुलझाने के लिए हमें अर्थव्यवस्था को दो हिस्सों में बांटकर समझना होगा। एक, छोटे उत्पादक जो जीएसटी के दायरे से बाहर आते हैं, जैसे सड़क पर मूंगफली भूंज कर बेचने वाला, और दूसरे बड़े उत्पादक जो कि जीएसटी के दायरे में आते हैं जैसे पैकेट में बंद मूंगफली को बेचने वाले।

 ऐसा समझ आ रहा है कि नोटबंदी, जीएसटी और कोविड, इन तीन संकटों के कारण छोटे उद्यमी का धंधा चौपट हो गया है। इनके द्वारा मूंगफली भूंज कर बेचना कम हो गया है और इसी मात्रा मे बड़ी कंपनियों द्वारा पैकेट में बंद मूंगफली की बिक्री बढ़ गई। कुल उत्पादन पूर्ववत बना हुआ है, लेकिन जो उत्पादन अब तक छोटे उद्योगों द्वारा किया जा रहा था, वह अब बड़े उद्योगों द्वारा किया जाने लगा है। छोटे उद्योगों का उत्पादन कम होने से जीएसटी में गिरावट नहीं आई है क्योंकि वे जीएसटी के दायरे के बाहर हैं। लेकिन बड़े उद्योगों का उत्पादन बढ़ने से जीएसटी की वसूली बढ़ गई है। इसलिए जीएसटी की वसूली में 40 फीसदी वृद्धि उत्पादन में वृद्धि एवं अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता को नहीं दिखाती है, बल्कि वह दिखा रही है कि आम आदमी का धंधा चौपट हो गया है। परिणाम है कि आम आदमी के हाथ में क्रय शक्ति नहीं है। वह बाजार से माल नहीं खरीद पा रहा है। बाजार सुस्त पड़ा हुआ है और बड़े उद्योग भी संकट में हैं। जीएसटी की बढ़ी हुई वसूली देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर दिखाती है जिसमें कि आम आदमी और छोटे उद्योगों का धंधा चौपट हो गया है। जीएसटी से संबंधित दूसरा विषय जीएसटी की वसूली में अपेक्षित वृद्धि न होने का है। जीएसटी लागू करते समय केंद्र सरकार ने राज्यों को आश्वासन दिया था कि हर वर्ष कम से कम 14 फीसदी की वृद्धि हो जाएगी। इससे कम वृद्धि होने पर कमी की भरपाई केंद्र सरकार ने पांच वर्षों तक करने का वायदा किया था। जुलाई 2022 के बाद केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को यह भरपाई बंद कर दी जाएगी। इसके बाद राज्यों को केंद्र सरकार से भरपाई नहीं मिलेगी। कई राज्यों की आय 20 से 40 फीसदी तक कम हो जाएगी।

 उनके लिए अपने कर्मियों को वेतन देना भी कठिन हो जाएगा। बजट में इस समस्या का हल यह सुझाया गया है कि राज्य और अधिक मात्रा में ऋण ले सकते हैं, लेकिन जब उनकी जीएसटी की वसूली ही कम हो रही है तो ऋण की अदायगी वे कैसे करेंगे? जरूरत यह थी कि बजट में राज्यों की आय को बढ़ाने की व्यवस्था की जाती। सीधा उपाय था कि हर राज्य को छूट दे दी जाती कि वे अपने राज्य की सरहद में जीएसटी की दर को निर्धारित कर सके। कनाडा में तमाम राज्यों द्वारा अलग-अलग दरों से जीएसटी वसूल किया जाता है, लेकिन फिर भी अंतरराज्यीय व्यापार उतना ही सरल है जितना अपने यहां है। बजट में राज्यों की इस समस्या को हल नहीं किया गया है। फिर भी बजट की एक सकारात्मक पहल डिजिटल करेंसी शुरू करने की है। रिज़र्व बैंक द्वारा इसे जारी किया जाएगा। जिस प्रकार कागज के नोट में एक विशेष नंबर छपा होता है, उसी प्रकार रिज़र्व बैंक द्वारा कंप्यूटर से एक विशेष नंबर बनाया जाएगा। आप रिज़र्व बैंक को नकद जमा कराकर उस नंबर को खरीद सकते हैं। जैसे आपने 100 रुपए का नोट रिज़र्व बैंक में जमा कराया, फिर रिज़र्व बैंक ने आपको एक नंबर दिया जिसकी कीमत 100 रुपए होगी। यह नंबर आपके मोबाइल में रहेगा। जब आप 100 रुपया किसी दूसरे को देना चाहेंगे तो आप उसे यह नंबर ट्रांसफर कर सकते हैं। तब यह नंबर रिज़र्व बैंक के कंप्यूटर में आपके खाते से हटकर पाने वाले के खाते में दर्ज हो जाएगा। इस लेन-देन में नोट के लिए कागज, छपाई, उसको प्रेस से बैंक तक पहुंचाना, बैंक से आप तक पहुंचाना, इन सब भौतिक कार्यों से हमें मुक्ति मिल जाएगी।

 धन का लेन-देन सुलभ हो जाएगा। यह कदम सही दिशा में है, लेकिन यह उसी प्रकार है जैसे पुरानी कार में अच्छा मोबिल ऑयल डाल दिया जाए। कार की रफ्तार में मामूली सुधार अवश्य होगा, लेकिन पुरानी कार की सीमा  तो बनी ही रहेगी। इसी प्रकार डिजिटल करेंसी को लागू करने से लाभ होगा, लेकिन अर्थव्यवस्था की जो मौलिक समस्याएं हैं, उनका हल इस माध्यम से नहीं हासिल किया जा सकता है। बजट में एक और सार्थक पहल मेक इन इंडिया के प्रति की गई है। रक्षा क्षेत्र में बीते वर्ष 58 फीसदी घरेलू खरीद थी, जो इस वर्ष 68 फीसदी हो जाने का लक्ष्य है। कई माल को बनाने में जो कच्चे माल की जरूरत पड़ती है, उनके आयात को आसान किया गया है। जैसे मोबाइल फोन बनाने के लिए कैमरे के लैंस की विशेष जरूरत पड़ती है जो हम फिलहाल नहीं बना पा रहे हैं। मोबाइल के लैंस का आयात आसान कर दिया गया है जिससे मोबाइल फोन को बनाने वाले लैंस का आयात आसानी से कर सकें और मोबाइल फोन को बना सकें। इसी प्रकार कई मशीनें एवं केमिकल जिनको बनाने की अपने देश में पर्याप्त क्षमता है, उनके आयात पर भी आयात कर बढ़ाया गया है। आयात कर बढ़ाने से आयातित केमिकल्स महंगे हो जाएंगे और घरेलू केमिकल फैक्टरियां चल पड़ेंगी। यहां ध्यान रखने की बात यह है यदि यह संरक्षण अधिक दिया गया तो हमारे उत्पादक अकुशल उत्पादन में लिप्त हो सकते हैं। इसलिए सरकार को साथ-साथ प्रयास करना चाहिए कि घरेलू केमिकल्स उत्पादकों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़े ताकि वे उत्तम क्वालिटी एवं सस्ते माल का उत्पादन कर सकें।

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

ईमेलः bharatjj@gmail.com