विश्व स्वास्थ्य संगठन, कोविड व भारत

आज जब भारत न केवल वैक्सीन निर्माण और अपनी संपूर्ण जनसंख्या को वैक्सीन लगाने में सफल हो रहा है, दुनिया के दूसरे मुल्कों की अपेक्षा कहीं बेहतर तरीके से संक्रमण से निपट रहा है, दवाइयों और उपकरणों के मामले में लगभग आत्मनिर्भर हो रहा है, विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत में कोविड से होने वाली मौतों के आंकड़ों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर भारत को बदनाम करने का प्रयास कर रहा है। भारत सरकार को किसी भी हालत में इन प्रयासों का मुहंतोड़ जवाब देना चाहिए…

अप्रैल 16, 2022 को न्यूयार्क टाईम्स में प्रकाशित रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन के हवाले से कहा गया है कि भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोविड संक्रमण के कारण होने वाली मौतों के सही आकलन में अवरोध उत्पन्न कर रहा है। उस रिपोर्ट को आधार बनाकर विपक्षी नेता राहुल गांधी ने कहा है कि कोविड के कारण देश में 40 लाख मौतें हुई हैं, जबकि सरकार द्वारा मात्र 5 लाख मौतों का आंकड़ा बताया गया है। भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर गहरी आपत्ति दर्ज की है। आपत्ति में कहा गया कि न्यूयार्क टाईम्स को इस रिपोर्ट लिखने में विश्व स्वास्थ्य संगठन के भारत के संदर्भ में तो आंकड़े प्राप्त हो गए, लेकिन अन्य देशों के क्यों नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत को बदनाम करने की नीयत से विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों को शरारतपूर्ण ढंग से उपयोग किया जा रहा है।

आज जबकि पूरी दुनिया भारत के टीकाकरण अभियान का लोहा मान रही है, ऐसा लगता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारी जानबूझकर भारत में कोविड के कारण होने वाली मौतों के सरकार द्वारा प्रकाशित आंकड़ों पर प्रश्न चिन्ह लगाकर भारत के इस उत्कृष्ट प्रदर्शन और उपलब्धि को कम दिखाने की कोशिश में लगे हैं। यह सही है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन पूरे विश्व में ही कोविड के कारण होने वाली मौतों का आंकड़ा, अभी तक के घोषित आंकड़ों से ज्यादा आंक रहा है, लेकिन भारत के लिए यह ज्यादा बढ़ाकर बताया जा रहा है। गौरतलब है कि न्यूयार्क टाईम्स का विश्व स्वास्थ्य संगठन के हवाले से यह कहना कि जहां अभी तक जबकि यह बताया जा रहा था कि कुल 60 लाख लोग कोविड के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए, वास्तव में यह आंकड़ा 150 लाख का है, यानी सभी देशों द्वारा अलग-अलग घोषित आंकड़ों के दुगने से भी ज्यादा। लेकिन जो 90 लाख अतिरिक्त लोगों की मौत का आंकड़ा बताया जा रहा है, उसमें 35 लाख भारत से हंै। यह सही है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के हवाले से यह कहा जा रहा है कि मौतों का यह आंकड़ा, केवल कोविड से प्रत्यक्ष मौतों का ही नहीं है, बल्कि इसमें उन लोगों की मौतें भी शामिल हैं, जो कोविड के दौरान लॉकडाऊन के कारण दवा और इलाज प्राप्त नहीं कर सके। हालांकि आंकड़ों में बड़ा अंतर कोविड के कारण होने वाली प्रत्यक्ष मौतों का ही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस कृत्य की भारत सरकार द्वारा आलोचना की गई है। भारत सरकार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मौतों के आंकड़ें जुटाने के लिए दोहरे मापदंड अपनाए हैं। जहां एक प्रकार के देशों के लिए सीधे आंकड़े लिए गए हैं, जबकि दूसरे प्रकार के देशों, जिसमें भारत भी शामिल है, के लिए गणितीय मॉडलिंग प्रक्रिया अपनाई गई है। सरकार ने कहा है कि मुल्कों को दो भागों में विभाजित करने के संबंध में कोई कारण नहीं दिया गया है। सरकार ने आगे कहा है कि यदि जो गणितीय मॉडल दूसरे प्रकार के देशों के लिए अपनाया गया है, उसे पहले प्रकार के देशों पर लागू करके उसे प्रमाणित करने की जरूरत है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन नहीं कर रहा है। सरकार ने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को 6 बार पत्र लिखा और आभासी बैठकों में 5 बार इस प्रक्रिया के संबंध में अपनी आपत्ति दर्ज कराई, जिसका विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया।
डब्ल्यूएचओ का गड़बड़झाला
विश्व स्वास्थ संगठन, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में एक ऐसा संगठन है जिसे दुनिया के स्वास्थ्य की सुरक्षा का दायित्व है। इससे यह अपेक्षा है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में स्वास्थ्य आपदा आने पर उसके लिए स्वयं भी उचित कदम उठाए और सरकारों को भी सही उपायों हेतु सलाह दे। शायद इसी बात का हवाला देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह तर्क है कि कोविड के दौरान होने वाली मौतों के सही आकलन से भविष्य में इस प्रकार की महामारी के संदर्भ में सही नीतियों को बनाने में मदद मिलेगी। हालांकि इस तर्क में कोई गलती नहीं है, लेकिन महामारी के दौरान ही विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने कृत्यों के कारण विवादों में रहा है। सर्वप्रथम विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा संक्रमण के कारण के आकलन में ईमानदारी का अभाव था। गौरतलब है कि 14 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक ट्वीट कर कहा कि इस संक्रमण का मानव से मानव में फैलने का कोई खतरा नहीं है। हालांकि यह संक्रमण सितंबर 2019 से ही फैल रहा था। डब्ल्यूएचओ की इस ट्वीट ने दुनिया भर के देशों को भ्रमित कर दिया कि यह मानव से मानव में नहीं फैलेगा। सभी देशों ने अपनी अंतरराष्ट्रीय यात्री विमानों की उड़ानों को यथावत रखा। डब्ल्यूएचओ की इस कोताही के चलते चीन के वुहान का यह वायरस दुनिया भर में भीषण तबाही का कारण बन गया।

बहुत समय बाद में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर परीक्षण शुरू किया गया और साथ ही क्वारनटाईन की प्रक्रिया भी अपनाई गई। यही नहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह बात भी छुपाने की कोशिश की कि यह संक्रमण चीन की वुहान प्रयोगशाला से उत्पन्न हुआ है, और उनका यही कहना रहा कि यह चीन के जानवरों के मांस की मंडी से निकला है। दुनिया भर के अधिकांश विशेषज्ञों ने विश्व व्यापार संगठन के इस दावे को खारिज किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के चीन के साथ प्रेम का मुख्य कारण यह माना जाता है कि श्री टेडरोज चीन के प्रयासों से ही इस संगठन के प्रमुख बनें। ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुखिया चीन को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकते थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस गड़बड़झाले को समझते हुए अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस संगठन को अमरीका द्वारा दी जाने वाली 0.4 से 0.5 अरब डालर के योगदान को बंद करने का निर्णय ले लिया। गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ को दुनिया भर के देशों से पूर्व निर्धारित योगदान तो मिलता ही है, साथ ही साथ उसे कई प्रकार का ऐच्छिक योगदान भी मिलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के ऐच्छिक वित्त पोषण में बड़ा योगदान बिल गेट्स मिलेंडा फाउंडेशन, अन्य यथाकथित दानवीर संस्थाओं और अमरीका, चीन और कई अन्य विकसित देशों से आता है। इन तथाकथित गेट्स फाउंडेशन समेत विभिन्न संस्थाओं का विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्याकलापों में भारी दखल रहता है। गौरतलब है कि जब भारत अपने बलबूते पर वैक्सीन निर्माण की तरफ आगे बढ़ रहा था, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख अधिकारी भारत के इन प्रयासों को ‘वैक्सीन राष्ट्रवादÓ बताकर खारिज कर रहे थे और यह कह रहे थे कि यह संक्रमण को समाप्त करने में बाधा होगा। यही नहीं, बिल गेट्स यह कहते हुए सुने गए कि वे वैक्सीन का फार्मूला भारत जैसे देशों को देने के पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि इससे वैक्सीन की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा। गेट्स फाउंडेशन के एक सहयोगी संगठन ‘गावी के दबाव में विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत पर यह भी दबाव बना रहा था कि वह बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बनाई जा रही वैक्सीन को खरीदने हेतु बाध्यकारी वचन दे। आज जब भारत न केवल वैक्सीन निर्माण और अपनी संपूर्ण जनसंख्या को वैक्सीन लगाने में सफल हो रहा है, दुनिया के दूसरे मुल्कों की अपेक्षा कहीं बेहतर तरीके से संक्रमण से निपट रहा है, दवाइयों और उपकरणों के मामले में लगभग आत्मनिर्भर हो रहा है, विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत में कोविड से होने वाली मौतों के आंकड़ों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर भारत को बदनाम करने का प्रयास कर रहा है। भारत सरकार को किसी भी हालत में इन प्रयासों का मुहंतोड़ जवाब देना चाहिए।

डा. अश्विनी महाजन

कालेज प्रोफेसर