मौसम की भट्ठी में भुनते शहर

इंदौर शहर में ही 11 दिनों (30 अप्रैल से 11 मई) में 50 से ज्यादा आगजनी की घटनाएं हुई हैं। यह जानना भी प्रासंगिक होगा कि शहर के पूरे भौगोलिक क्षेत्र में एक समान तापमान में वृद्धि नहीं होती। पक्के तथा सघन क्षेत्र ज्यादा एवं हरियाली युक्त खुले क्षेत्र कम गर्म होते हैं। ब्रिटिश मौसम विभाग ने हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि जलवायु बदलाव के प्रभाव से उत्तर एवं पश्चिमी भारत में रिकार्ड तोड़ गर्मी पड़ेगी एवं ज्यादातर शहरों के तापमान गर्मी के मौसम में 40 से 50 डिग्री के आसपास बने रहेंगे। बढ़ते तापमान से भट्ठी समान होते शहरों की समस्या से निपटने हेतु ऐथेंस (ग्रीक), मियामी-डेड-काउंटी एवं फ्रीटाउन सिएटा में स्थानीय प्रशासन ने ‘हीट आफिसर’ नियुक्त किए हैं। ये आफिसर अध्ययन कर बताते हैं कि किस प्रकार बढ़ते तापमान में कमी लाई जा सकती है। शहरों की भौगोलिक  स्थिति, मौसम एवं वायु-प्रवाह का ठीक तरह से नियोजन करना भी बेहद जरूरी है…

हर साल की तरह इस साल भी वैज्ञानिकों ने ‘न भूतो, न भविष्यति’ की तर्ज पर तापक्रम बढ़ने की चेतावनियां दी हैं, लेकिन लगता है इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि पड़ता, तो कम से कम हमारे शहर और उनमें विकराल रूप लेती गर्मी से निपटने, उसे कम करने की कोई जुगत बिठाई जाती। दिनोंदिन हम कुछ इस बनक के शहर खड़े करते जा रहे हैं जिनमें बढ़ता तापक्रम एक आवश्यक अंग की तरह मौजूद रहता है। क्या हैं इसके विभिन्न आयाम, किन कारणों से हमारे शहरों में गर्मी बढ़ रही है, प्रस्तुत है विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) पर यह लेख। इसमें इसी विषय को खंगालने का प्रयास करेंगे। गर्मी के मौसम में शहर गर्म तो होते हैं, परंतु पिछले कुछ वर्षों में आकलन किया गया है कि वे ज्यादा गर्म होकर भट्ठी समान होते जा रहे हैं। पिछले 10-12 वर्षों में विश्व के प्रदूषित शहरों में हमारे देश के शहरों को संख्या सर्वाधिक रही, परंतु अब विश्व के गर्म शहरों में भी हमारे देश के शहरों की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्ष 2019 में जून के प्रथम सप्ताह में विश्व के 15 सर्वाधिक गर्म शहरों में 10 हमारे देश के थे। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार इस वर्ष शीतकाल के बाद मार्च में ही गर्म हवाएं चलना शुरू हो गई थीं एवं वसंत का एहसास ही नहीं हो पाया था।

 अमेरिका के नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) ने एक सहयोगी संस्था के साथ उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर बताया था कि 30 अप्रैल को देश के कई भागों में धरती की सतह का तापमान 60 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा, जो सामान्यतः 45 से 55 के बीच रहता है। मई के मध्य में (15 मई के आसपास) विश्व के 15 सबसे गर्म शहरों में 12 हमारे देश के थे एवं उत्तरप्रदेश के बांदा में तापमान 41 डिग्री रिकार्ड किया गया था। मौसम वैज्ञानिकों एवं पर्यावरणविदों के अनुसार वर्ष 2021-22 में वातावरण की कुछ असामान्य घटनाओं के कारण भी तापमान बढ़ा, जैसे लंबे समय तक शुष्क मौसम बने रहना, कई क्षेत्रों में वर्षा की कमी, शीतकाल की वर्षा (मावठा) में गड़बड़ी एवं मार्च 22 में उच्च दबाव का क्षेत्र बनकर अप्रैल तक यथावत रहना आदि। शहरों के भट्ठी समान तपने के, वैश्विक जलवायु बदलाव, ग्लोबल वार्मिंग, एलनीनो प्रभाव से ज्यादा स्थानीय कारण जिम्मेदार बताए गए हैं। इन कारणों में पक्के निर्माण कार्य (मकान, सड़क, फुटपाथ, बाजार, डिवाइडर आदि), हरियाली में कमी, विशेषकर पेड़ों की संख्या, नम भूमि (वेटलेंड्स) एवं जलस्त्रोतों की कमी या समाप्ति, वाहनों की बढ़ती संख्या, वातानुकूलन (एअरकंडीशनर) का बढ़ता प्रचलन, वायु प्रदूषण एवं बढ़ती आगजनी की घटनाएं आदि प्रमुख हैं। यह भी पाया गया है कि शहर, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा गर्म हो रहे हैं। हमारे देश में 60 के दशक तक कच्चे निर्माणों की संख्या काफी अधिक थी, परंतु बाद में सभी सीमेंट-कांक्रीट के पक्के निर्माण बनते गए। ज्यादातर शहरों में 90 प्रतिशत निर्माण पक्के बन चुके हैं। ये सभी दिन में गर्मी सोखकर बाद में उसे बाहर निकालते हैं जिससे लगभग 02 डिग्री तापमान बढ़ जाता है।

कई मकानों में लगाए कांच तापमान बढ़ाने में सहायक होते हैं और पक्के मकान बनाते समय स्थानीय मौसम एवं वायु-प्रवाह का ध्यान भी नहीं रखा जाता। विभिन्न निर्माण कार्यों से पेड़ों की संख्या घटती जा रही है। इसी वर्ष मार्च में केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री ने लोकसभा में बताया था कि देश में वर्ष 2021-22 में विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण हेतु 31 लाख पेड़ काट गए हैं। देश के सबसे साफ शहर इंदौर में नौ लाख पेड़ों का ‘नौलखा-क्षेत्र’ भी अब नाम का ही रह गया है। सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट (वाशिंगटन डीसी) ने पांच वर्ष पूर्व अपने एक अध्ययन के आधार पर बताया था कि ज्यादातर शहरों में निर्माण कार्य 20 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं एवं हरियाली औसतन 02 प्रतिशत पर सिमट गई है। पक्के निर्माण कार्यों से भूजल की मात्रा में भी कमी आई है। आजादी के समय देश में 24 लाख तालाब-जोहड़ थे जिनकी संख्या सन् 2000 तक घटकर 05 लाख के करीब रह गई थी। भूजल के अधिक गहराई पर जाने एवं सतही जलस्त्रोतों की कमी से मिट्टी में नमी कम होने लगती है एवं धरती की सतह का तापमान बढ़ने लगता है। पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों की बढ़ती संख्या एवं उनके गर्म इंजन से पैदा गर्मी भी शहरों के तापमान को बढ़ाने में योगदान देती है। गर्मी से निपटने हेतु लगाए जाने वाले वातानुकूलक (एअर-कंडीशनर) का बढ़ता चलन घर को ठंडा रखने के बदले में बाहर गर्म हवा छोड़ते हैं जिससे तापमान में वृद्धि होती है। ज्यादा संख्या में एसी के उपयोग से फीनिक्स शहर के रात के तापमान में लगभग 01 डिग्री वृद्धि का आकलन किया गया है। शहरों में फैले वायु प्रदूषण में धुएं से पैदा धुंध भी एक परत बनाकर तापमान बढ़ाने में सहायक होती है। वायु प्रवाह कम होने से ऐसी स्थिति बन जाती है। गर्मी में बढ़ती आगजनी की घटनाएं एवं चोरी-छिपे कचरा जलाने का कार्य भी थोड़ी गर्मी बढ़ाने में सहायक होता है। इंदौर शहर में ही 11 दिनों (30 अप्रैल से 11 मई) में 50 से ज्यादा आगजनी की घटनाएं हुई हैं।

 यह जानना भी प्रासंगिक होगा कि शहर के पूरे भौगोलिक क्षेत्र में एक समान तापमान में वृद्धि नहीं होती। पक्के तथा सघन क्षेत्र ज्यादा एवं हरियाली युक्त खुले क्षेत्र कम गर्म होते हैं। ब्रिटिश मौसम विभाग ने हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि जलवायु बदलाव के प्रभाव से उत्तर एवं पश्चिमी भारत में रिकार्ड तोड़ गर्मी पड़ेगी एवं ज्यादातर शहरों के तापमान गर्मी के मौसम में 40 से 50 डिग्री के आसपास बने रहेंगे। बढ़ते तापमान से भट्ठी समान होते शहरों की समस्या से निपटने हेतु ऐथेंस (ग्रीक), मियामी-डेड-काउंटी एवं फ्रीटाउन सिएटा में स्थानीय प्रशासन ने ‘हीट आफिसर’ नियुक्त किए हैं। ये आफिसर अध्ययन कर बताते हैं कि किस प्रकार बढ़ते तापमान में कमी लाई जा सकती है। शहरों के बढ़ते तापमान की रोकथाम हेतु सबसे आवश्यक है कि वहां की भौगोलिक स्थिति, मौसम एवं वायु-प्रवाह का ठीक तरह से नियोजन किया जाए। साथ ही मकानों की छत पर सफेदी, हरियाली संरक्षण एवं विस्तार, जलस्त्रोतों की सुरक्षा, सीमेंटीकरण में कमी, वर्षा जल संचय, वाहनों एवं एसी की संख्या में कमी आदि ऐसे प्रयास हैं जो गर्मी की तीव्रता को कम करने में मददगार हो सकते हैं। तभी हमारा जीवन सुरक्षित होगा।

डा. ओपी जोशी

स्वतंत्र लेखक