धन रिसाव अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक

भ्रष्टाचार रोकने के लिए कुछ सुझाव इस तरह हैं : इसे रोकने के लिए लोगों की भागीदारी बढ़ाने की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि केवल कानूनों के माध्यम से ही इसे समाप्त नहीं किया जा सकता। जापान देश की तरह भारत में भ्रष्ट राजनीतिज्ञों व नौकरशाहों का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए…

धन की लिप्सा ने आज आर्थिक क्षेत्र में कालाबाजारी, मुनाफाखोरी व रिश्वतखोरी आदि को बढ़ावा दिया है। लगभग हर नौकरशाह अपने सेवा काल में इतना धन अर्जित करना चाहता है, जिससे सेवानिवृत्ति के बाद उसका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो सके। व्यापारी वर्ग भी घाटे की स्थिति से बचने के लिए हर तरीके से धन कमाना चाहते हैं। लोगों की आवश्यकताएं इतनी बढ़ चुकी हैं कि उनकी सीमित आय इनको पूरा नहीं कर सकती तथा वे भ्रष्टाचार की राह पर चल कर इन्हें पूरा करते हैं। सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों की आपसी चहल-कदमी भी सरकारी धन के दुरुपयोग में संलिप्त रहती है। भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए बेरोजग़ारी, महंगाई, प्रशासनिक उदासीनता, भ्रष्टाचारियों का सजामुक्त हो जाना इत्यादि कई ऐसे मुद्दे हैं। भ्रष्टाचार के कारण जहां एक तरफ लोगों का चारित्रिक पतन हुआ है, वहां दूसरी तरफ देश को आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ रही है। भ्रष्टाचार के कारण देश की सुरक्षा के खतरे में पडऩे से भी इंकार नहीं किया जा सकता। भ्रष्ट व्यक्ति समुद्र में तैरती हुई उन मछलियों की तरह होते हैं जो पानी पीती हुई दिखाई नहीं देती।

सरकारी धन के रिसाव के लिए वैसे तो बहुत से विभाग जिम्मेवार हैं, मगर कुछ विभाग तो इस तरह से इस कार्य में संलिप्त हैं जैसा कि उनका इसके लिए जन्मसिद्ध अधिकार है। सडक़ों व सरकारी इमारतों को बढ़ाने व उनकी मरम्मत आदि करने के लिए लोक निर्माण विभाग लार्ड डल्हौजी के समय से चलता आ रहा है। लाखों-करोड़ों का धन इस विभाग द्वारा खर्च किया जाता है, मगर सत्ताधारियों व विभाग की मिलीभगत से लगभग 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत धन का रिसाव हो जाता है जो कि कर्मचारियों, अधिकारियों व राजनीतिज्ञों की सांठगांठ से उनकी जेबों में चला जाता है या फिर कुछ धन मतदाताओं को रिझाने के लिए उनके चायपान इत्यादि पर खर्च कर दिया जाता है। इसी तरह अन्य विभाग, विशेषत: वन विभाग, बिजली, कृषि व खाद्य भी पीछे नहीं हैं। यह भी पाया गया है कि जिस विभाग में केन्द्र का धन सीधे तौर पर खर्चने के लिए उपलब्ध किया जाता है, वो विभाग और भी ज्यादा धन का दुरुपयोग करते हैं। संबंधित कर्मचारी व अधिकारी राजनीतिज्ञों की मुठ्ठी गर्म करते रहते हैं तथा धड़ल्ले से धन का रिसाव करते रहते हैं। इसी तरह हमारी फौज में भी कुछ ऐसे अधिकारी हैं जिनकी वजह से धन का दुरुपयोग होता रहता है। सरकार अपनी तरफ से जनकल्याण की कई योजनाओं को कार्यान्वित करती रहती है तथा इन सभी पर भारी भरकम धनराशि भी उपलब्ध करवाती रहती है, मगर अधिकारियों की उदासीनता या फिर कत्र्तव्यनिष्ठा की कमी के काण भ्रष्टाचार की जड़ें पनपती रहती हैं। क्या कभी हमने सोचा कि इस धन रिसाव व भ्रष्टाचार के कारण देश की आर्थिकी पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसके दुष्प्रभाव की एक झलक इस प्रकार से है।

भ्रष्टाचार से देश की अर्थव्यवस्था और प्रत्येक व्यक्ति की ऊर्जा भटक जाती है तथा देश की पूंजी का रिसाव हो जाता है। जब भ्रष्ट माध्यम से धन कमाया हुआ हो तो ऐसे लोग अपना पैसा खुले तौर पर भारत में निवेश न करते हुए विदेशी बैंकों जैसे स्विस बैंकों इत्यादि में जमा कराना शुरू कर देते हैं तथा ऐसा धन देश की अर्थव्यवस्था को आगे धकेलने के बजाय पीछे धकेलता है। गरीब और अमीर के अंतर बढ़ जाने से समाज में अशांति फैलनी शुरू हो जाती है। देश में असमानता बढऩे लगती है तथा गरीब और गरीब होता चला जाता है। कीमतें बढऩे लगती हैं क्योंकि धन रिसाव के कारण मजदूर वर्ग को निम्न मजदूरी मिलती है तथा खर्च करने की क्षमता कम हो जाती है। यह बात ठीक है कि घूस का पैसा यदि किसी निवेश में लगा दिया जाए तो रोजगार बढ़ता है, मगर आमतौर पर घूसखोर ऐसा नहीं करते तथा अपना धन किसी न किसी रूप में या तो बाहर भेज देते हैं या फिर अपने पास सुरक्षित रखते हैं। भ्रष्टाचार भारत के महाशक्ति बनने में बहुत बड़ा रोड़ा है। राजनीतिक दलों का मुख्य उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना होता है तथा वे दूसरे दलों के सदस्यों की खरीद-फरोख्त में लगे रहते हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बहुत बड़ा रिसाव होता आ रहा है। इसी तरह मनरेगा के मार्फत निकम्मे लोगों की टोली खड़ी की जा रही है। ऐसी स्कीमों में भी फर्जी लोगों के नाम पर सरकारी धन रिसाव कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था को बट्टा लगाता रहता है। वैसे तो भारत महाशक्ति बनने के करीब है, परंतु भ्रष्टाचार की वजह से हम इससे दूर होते जा रहे हैं।

धन रिसाव के कारण लोक कल्याण में कमी आने लगती है क्योंकि जनकल्याण के लिए लगने वाला पैसा कुछ ही लोगों की जेबों में चला जाता है तथा लोक कल्याण में कमी आने लगती है। उसी तरह समाजिक न्याय में भी कमी आने लगती है। न्याय से वंचित लोगों को न्यायालयों में जाकर अपने हक की गुहार लगानी पड़ती है तथा समय पर न्याय न मिलने से वे असहाय महसूस करना शुरू कर देते हैं। सेवा की गुणवत्ता के अभाव के कारण अयोग्य व्यक्ति सरकारी सेवाओं का एक प्रमुख हिस्सा बन जाते हैं, जबकि ईमानदार व मेहनती अधिकारियों व कर्मचारियों को हताश व निराश होना पड़ता है। इसके फलस्वरूप प्रशासनिक कुशलता में वृद्धि होने के स्थान पर अकुशलता व अक्षमता में वृद्धि होने लगती है। भ्रष्टाचार के कारण विकास के लिए चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का लाभ धरातल तक नहीं पहुंच पाता जो कि विकास में एक रुकावट का काम करता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए धन रिसाव को रोकने के लिए कुछ सुझाव रखे जा रहे हैं जिनका विवरण इस तरह से है : सूचना के अधिकार के प्रति जागरूकता लाना, ई-गवर्नैंस को बढ़ावा देना, भ्रष्टाचार को रोकने के लिए विजिलैंस विभाग को और सुदृढ़ करना, ल्ंाबित मामलों का निपटारा तुरंत करना, मीडिया को सक्रिय करना, संदिग्ध अधिकारियों को संवेदनशील पदों से दूर रखना, राजनीतिज्ञों के हस्तक्षेप पर कड़ी रोक लगाना, लोक सेवा गारंटी एक्ट की सख्ती से पालना करवाना ताकि लोगों का कार्य एक निश्चित अवधि के बीच में निपटाया जा सके। भ्रष्टाचार रोकने में लोगों की भागीदारी बढ़ाने की अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि केवल कानूनों के माध्यम से ही इसे समाप्त नहीं किया जा सकता। जापान देश की तरह भारत में भ्रष्ट राजनीतिज्ञों व नौकरशाहों का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए।

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी