छाछरो स्ट्राइक के सदमे से नहीं उबरा पाक

आखिर बांग्लादेश के रामना रेसकोर्स गार्डन में भारतीय सेना की ‘पंजाब रेजिमेंट’ के जरनैल ‘जगजीत सिंह अरोड़ा’ ने मशरिकी पाक के सिपाहसालार ‘आमीर अब्दुल्ला खान’ नियाजी को सरेंडर के दस्तावेज पर दस्तखत करने के लिए पेन थमाकर जिन्ना की ‘टू नेशन थ्योरी’ का एहसास पूरी शिद्दत से करा दिया था। पाकिस्तान के 93 हजार जंगी कैदियों के आत्मसमर्पण से गमगीन माहौल में नियाजी के चेहरे पर मायूसी थी…

सन् 1971 के शुरुआती दौर में पाक फौज अपने जरनैल टिक्काखान की कयादत में पूर्वी पाक यानी मौजूदा बांग्लादेश में आपरेशन ‘सर्च लाइट’ के तहत बांग्ला आवाम को आग उगलती बंदूकों से खामोश कर रही थी। पाक सेना द्वारा सितम की सारी हदें पार करने पर बांग्ला लोगों ने भारत से मदद की गुहार लगाई थी। पूर्वी पाक में मदद के लिए भारतीय सेना की मुदाखल्त से बौखलाई पाक सेना ने 3 दिसंबर 1971 को भारत पर फिजाई हमले करके जंग का ऐलान कर दिया था। मगर पाक सिपाहसालारों की उस जहालत भरी गुस्ताखी का भारत बेसब्री से इंतजार कर रहा था। भारतीय सेना की 5वीं गोरखा की दूसरी बटालियन ने 6 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश प्रवेश करके ‘पीरगंज’ नामक कस्बे में तैनात पाकिस्तान की 32वीं बलोच बटालियन पर सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया था। पीरगंज में हमलावर गोरखाओं की कम्पनी का नेतृत्व हिमाचली शूरवीर कै. जतिंदर नाथ सूद कर रहे थे। उस भीषण जंग में गोरखाओं ने 32 बलोच के कर्नल राजा सुल्तान महमूद सहित कई पाक सैनिकों को हलाक करके पीरगंज पर कब्जा जमा लिया था, मगर आक्रामक कार्रवाई में जतिंदर नाथ वीरगति को प्राप्त हुए थे। रणभूमि में अदम्य साहस के लिए सेना ने कै. जतिंदर नाथ सूद को ‘वीर चक्र’ (मरणोपरांत) से अलंकृत किया था। 1971 की जंग का मुख्य मरकज पूर्वी पाक था लेकिन पाक सेना ने पश्चिमी सरहदों से भी भारत पर हमलों को अंजाम दे दिया था। 3 दिसंबर 1971 के दिन पाक सेना की 18 ‘फ्रंटियर फोर्स’ ने अपने तोपखाने व टैंकों से लैस होकर अमृतसर के ‘रानियां’ कस्बे पर पूरी ताकत से हमला कर दिया था। 1971 के युद्ध में भारतीय सेना की ‘9 पंजाब’ बटालियन की ‘सी’ कंपनी उसी रानियां क्षेत्र में तैनात थी, जिसकी कमान हिमाचली सूरमा मेजर ‘बासुदेव सिंह मनकोटिया’ कर रहे थे।

पाक सेना ने रानियां क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए कई आक्रमण किए लेकिन मेजर मनकोटिया की कुशल रणनीति तथा उनकी कंपनी के सैनिकों द्वारा किए गए शदीद पलटवार ने पाक सेना की रानियां को कब्जाने की मसूबाबंदी को सरहद के उस पार ही खाक में मिला दिया था। घायल होने के बाद भी मे. मनकोटिया ने जंग का मैदान नहीं छोड़ा। रणभूमि में उच्चकोटी के सैन्य नेतृत्व के लिए सेना ने मेजर बासुदेव सिंह मनकोटिया को ‘महावीर चक्र’ से नवाजा था। रानियां क्षेत्र के उसी युद्ध में पाक सेना की पेशकदमी को नाकाम करने में अहम किरदार निभाने वाले हिमाचली सपूत हवलदार ‘देश राज’ (9 पंजाब) तथा ले. ‘जोगिंद्र सिंह जसवाल’ को सेना ने ‘वीरचक्र’ से अलंकृत किया था। 1971 के युद्ध में बाड़मेर के मोर्चे पर लड़ रही पाक सेना को सिंध के छाछरो मुख्यालय से मदद मिल रही थी। भारतीय सेना की 10 पैरा कमांडो ने 7 दिसंबर 1971 की रात को पाकिस्तान की सरहद के 70 किलोमीटर अंदर जाकर सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में ‘छाछरो’ मुख्यालय पर भयंकर हमले को अंजाम देकर पाक सेना की सप्लाई लाईन को नेस्तनाबूद कर दिया था। सिंध के रेगिस्तान में उस खतरनाक डेजर्ट आपरेशन का नेतृत्व जयपुर रियासत के महाराजा तथा 10 पैरा कमांडो के तत्कालीन कमान अधिकारी कर्नल ‘भवानी सिंह’ ने खुद किया था। हालांकि सन् 1970 में जयपुर रियासत की राजगद्दी महाराजा भवानी सिंह को मिल चुकी थी। मगर राजमहलों की शानो-शौकत का त्याग करके भवानी सिंह ने देशहित में भारतीय सेना की पैरा कमांडो जैसी स्पैशल फोर्स का हिस्सा बनने का विकल्प चुना था। छाछरो पर किए गए भीषण हमले में पाक सेना के 13 सैनिक हलाक हुए थे तथा 17 पाक सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया था।

छाछरो को फतह करके 8 दिसंबर 1971 के दिन कर्नल भवानी सिंह, मेजर हेम सिंह शेखावत व हवलदार भैरों सिंह की अगुवाई में 10 पैरा के सैनिकों ने पाकिस्तान के वीरवाह, नगरपारकर व इस्लामकोट आदि शहरों पर तिरंगा फहरा कर पाक हुक्मरानों को भारतीय सैन्यशक्ति की हैसियत का पैगाम दे दिया था। छाछरो विध्वंस के सदमे से पाक फौज आज तक नहीं उबर पाई। यदि देश की तत्कालीन सियासत इच्छाशक्ति दिखाती तो बांग्लादेश की तर्ज पर सिंध भी एक आजाद मुल्क होता। छाछरो पर खौफनाक स्ट्राइक को अंजाम देकर पाक सेना की ऐतिहासिक सर्जरी करने वाले योद्धा कर्नल भवानी सिंह को सेना ने ‘महावीर चक्र’ से नवाजा था। पाकिस्तान की सरजमीं पर तिरंगा फहराने वाली 10 पैरा कमांडो बटालियन को ‘छाछरो’ ‘युद्ध सम्मान’ हासिल है। लेकिन छाछरो सैन्य ऑपरेशन की कामयाबी में राजस्थान की नामवर शख्सियत बलवंत सिंह चौहान ‘बाखासर’ ने पैरा कमांडो के सैनिकों को छाछरो तक पहुंचाने में नुमाया किरदार निभाया था। बलवंत सिंह बाखासर का जिक्र किए बिना छाछरो फतह की पूरी दास्तां अधूरी रहेगी। हाल ही में पाक सेना के साबिक जनरल कमर जावेद बाजवा ने अपनी सेवानिवृत्ति के इजलास में 1971 में सुपुर्दे ढाका के दर्द का इजहार करते हुए उस जिल्लत भरे आत्मसमर्पण के लिए पाकिस्तान की सियासी नाकामी करार देकर पाक सेना के दामन पर लगे शिकस्त के बदनुमां दाग छिपाने की कोशिश की थी। मगर 1971 में पाक की सियासी व असकरी कयादत सफ्फाक हुक्मरान जनरल याहिया खान के पास थी। बहरहाल पाक सेना युद्ध में भारतीय सैन्यशक्ति के पलटवार को सहन करने में नाकाम रही। आखिर बांग्लादेश के रामना रेसकोर्स गार्डन में भारतीय सेना की ‘पंजाब रेजिमेंट’ के जरनैल ‘जगजीत सिंह अरोड़ा’ ने मशरिकी पाक के सिपाहसालार ‘आमीर अब्दुल्ला खान’ नियाजी को सरेंडर के दस्तावेज पर दस्तखत करने के लिए पेन थमाकर जिन्ना की ‘टू नेशन थ्योरी’ का एहसास पूरी शिद्दत से करा दिया था। पाकिस्तान के 93 हजार जंगी कैदियों के आत्मसमर्पण से गमगीन हुए माहौल में ज. नियाजी के नुरानी चेहरे पर मायूसी के बादल छा चुके थे। बांग्लादेश की आवाम एक मुद्दत से अपनी आजादी के जिस वजूद को तराश रही थी, भारतीय रणबांकुरों ने उस ख्वाहिश को जिन्ना के सपनों के पाकिस्तान को तकसीम करके 16 दिसंबर 1971 के दिन पूरा कर दिया। भारतीय सेना के उस जज्बे को राष्ट्र नमन करता है।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं