कांगड़ा में चुकानी पड़ी मंडी की कीमत

भाजपा ने सबसे बड़े जिला में आधा ध्यान भी दिया होता, तो बदल जाती तस्वीर

दिव्य हिमाचल ब्यूरो — धर्मशाला

भाजपा को मंडी जिला की सियासी कीमत 15 विधानसभा क्षेत्रों वाले कांगड़ा जिला में चुकानी पड़ी है। बीजेपी मंडी में भले ही दस में से नौ सीटें अपने पक्ष में लेकर उत्साहित हो, लेकिन कांगड़ा ने 15 में से चार सीटें देकर भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया है। मंडी को लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सहित पूरी सरकार संजीदा रही और लाभ भी मिला, लेकिन ऐसा ही या इससे आधा भी कांगड़ा की ओर ध्यान दिया होता, तो शायद सियासी हालात कुछ और होते। कांगड़ा के पुराने इतिहास को देखें, तो यह जिला हर बार सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इस बार भी कांग्रेस को दस सीटें देकर भाजपा से बहुत आगे कर दिया है। कांगड़ा की जनता की नाराजगी क्षेत्र की बड़ी एवं महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं को लेकर भी रही है। धर्मशाला को न तो दूसरी राजधानी का दर्जा देने के मामले पर बीजेपी ने पांच साल कोई चर्चा की और न ही दूसरी राजधानी के सचिवालय में कभी मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों ने जनता का दुख-दर्द साझा किया।

पांच सालों तक दूसरी राजधानी का तमगा लिए बैठा धर्मशाला का सचिवालय सूना ही पड़ा रहा। शीतकालीन प्रवास में भी रस्मअदायगी से अधिक कुछ नहीं हो पाया, जिससे सबसे बड़े जिला की जनता का रोष बढ़ता गया। कांगड़ा एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के बजाय मुख्यमंत्री मंडी में हवाई अड्डा बनाने का राग अलापते रहे, जिससे कांगड़ा हवाई अड्डे का काम अधर में ही लटका रहा। ऊना के अंब में तो वंदेभारत तक पहुंच गई पर पठानकोट से जोगिंद्रनगर तक की रेलवे लाइन को डबल इंजन की सरकार ने एक इंच भी आगे नहीं सरकाया। इससे यहां रेलवे विस्तारीकरण के नाम पर भी कुछ नहीं हो पाया। मंडी में प्रदेश की दूसरा विश्वविद्यालय बन गया, लेकिन कांगड़ा का रिजनल सेंटर वहीं का वहीं रह गया। यहां एक दशक से केंद्रीय विवि के लिए भूमि चयन का काम चल रहा था, वह भी पूरा नहीं हो पाया। पर्यटन विकास के दाबे तो होते रहे, लेकिन कांग्रेस के कार्यकाल में शुरू हुए रोपवे का फीता काटने से आगे बढक़र कोई प्रयास धरातल पर नहीं उतर पाए। ऐसे में दिन व दिन कांगड़ा की जनता का गुस्सा बढ़ता चला गया और कांगड़ा ने फिर परिर्वतन की वयार चलने लगी, जिसमें भाजपा बुरी तरह से बह गई।