पाक के आर्थिक संकट से दुनिया को सबक

पाकिस्तान के लोगों को समझना होगा कि सरकारों के बदलने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। पाकिस्तान को बचाने का एक ही रास्ता है कि वह अपनी नीतियों को ठीक करे, अपने वित्तीय अनुशासन को सम्भाले, प्रतिरक्षा पर फिजूलखर्ची से बचे, अपने उद्योगों को बचाने की तरफ ध्यान दे, चीन के चंगुल से जल्द से जल्द बाहर आए और भविष्य की चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर की बाकी बची परियोजनाओं को सिरे से खारिज कर दे…

पाकिस्तान अभी तक के अपने सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। पिछले 25 वर्षों में पाकिस्तान पर कर्ज 3 लाख करोड़ रुपए पाकिस्तानी रुपए से बढक़र 2022 तक 62.5 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपए तक पहुंच चुका है। पिछले 25 वर्षों में एक तरफ सरकारी कर्ज 14 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा, जबकि पाकिस्तान की जीडीपी मात्र 3 प्रतिशत की दर से ही बढ़ पाई। इसके चलते सरकारी कर्ज देश की क्षमता से कहीं ज्यादा पहुंच गया है क्योंकि कर्ज पर ब्याज और वापसी की देनदारी 5.2 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपए तक पहुंच गई है, जो कि सरकार की कुल आमदनी से भी कहीं ज्यादा है। हालांकि इमरान खान की सरकार इसी राजकोषीय कुप्रबंधन के चलते गिर गई थी, लेकिन देश की वर्तमान सरकार भी स्थिति को संभालने में पूरी तरह से नाकामयाब रही है। 18 फरवरी 2023 को पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने बयान दिया है कि पाकिस्तान की सरकार अपनी देनदारी से पहले ही कोताही कर चुकी है। इस बारे में आर्थिक विशेषज्ञ एक मत हैं कि पाकिस्तान के आर्थिक संकट के लिए कोई और नहीं, पाकिस्तान के हुक्मरान ही जिम्मेदार हैं।
पाकिस्तान सुजुकी मोटर्स, मिलात ट्रैक्टजऱ्, इंडस मोटर कंपनी, कंधार टायर एंड रबर कंपनी, निशात चुनियान और फौजी फर्टिलाइजर बिन कासिम समेत पाकिस्तान की अधिकांश बड़ी कंपनियां बंदी की घोषणा कर चुकी हैं। 1600 कपड़ा मिलें 2022 तक बंद हो चुकी थी, जिसके कारण 50 लाख लोग अपनी नौकरी से हाथ धो चुके हैं। बाकी बची कंपनियां भी 50 प्रतिशत क्षमता का ही उपयोग कर पा रही हैं। मजबूरी में पाकिस्तान मदद के लिए कई बार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का दरवाजा खटखटा चुका है। आईएमएफ का कहना है कि वो पाकिस्तान को मदद दे सकता है, जब वो उसकी शर्तों को माने। आईएमएफ की शर्त है कि पाकिस्तान 17 हजार करोड़ रुपए के अतिरिक्त कराधान का प्रावधान करे, डीजल पर अतिरिक्त लेवी लगाने की भी आईएमएफ की शर्त है। विशेषज्ञों का मानना है कि चाहे आईएमएफ की मदद से पाकिस्तान फिलहाल कुछ समय के लिए कर्ज की अदायगी की कोताही से बच जाएगा, लेकिन पाकिस्तान की समस्याओं का स्थायी समाधान इससे होने वाला नहीं है। अर्थशास्त्री पाकिस्तान की दीर्घकालिक और अल्पकालिक दोनों तरह की कई नीतियों के आलोचक रहे हैं, और उन्हें भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान की वर्तमान दुर्दशा के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। सेना में आवश्यकता से अधिक निवेश करने से लेकर ‘मुफ्त उपहार’ देने और अस्थिर राजनीतिक वातावरण होने तक कई मुद्दों का जिक्र आता है। पाकिस्तान हुक्मरानों के निर्णयों की बात करें तो ध्यान में आता है कि उनके द्वारा कई नीतिगत फैसले लिए गए जो उसके राजनीतिक हित में थे न कि पाकिस्तान के आर्थिक हित में। सरकारों ने सिर्फ लोगों को खुश करने के लिए मुफ्तखोरी का रास्ता लिया। वस्तुओं की कीमतों को कम रखने के लिए लोक लुभावन उपायों का उपयोग किया जिससे खजाने पर बोझ बढ़ा, सरकारी सबसिडी का अंधाधुंध इस्तेमाल हुआ। देखा गया कि जहां तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों को कम घटाया गया, लेकिन पाकिस्तान सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमत कम रखने का प्रयास किया। हालांकि इस बात के लिए भारत सरकार की आलोचना भी हुई, लेकिन भारत सरकार और राज्य सरकारों ने राजस्व में इसका फायदा उठाया। अंततोगत्वा हम देखते हैं कि भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया और पाकिस्तान कंगाल हो गया।

भारत सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों के माध्यम से जो राजस्व जुटाया, उसका उपयोग उसने अपने स्वयं के धन से अधिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किया। दूसरी तरफ पाकिस्तान ने विदेशी ऋणों पर सवार बुनियादी ढांचे का निर्माण किया। पाकिस्तान धनाभाव के चलते अपनी जरूरतों के अनुसार नहीं बल्कि किसी विदेशी शक्ति (चीन) के इशारे पर बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है, जिससे उसको फायदा तो कम हो रहा लेकिन कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया है कि उसको चुकाना पाकिस्तान के बूते से बाहर हो गया। ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (सीपीईसी) इसका जीता जागता उदाहरण है। यह चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ का हिस्सा है। कुछ बिजली संयंत्र भी इस परियोजना के हिस्से हैं। पाकिस्तान की समस्या उन ऋणों के कारण है जो उनके उस बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए हैं जो पाकिस्तानियों के लिए किसी काम के नहीं थे। वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान के पास पर्याप्त ग्रिड कनेक्टिविटी ही नहीं है, इसलिए सीपीईसी की बिजली परियोजना पाकिस्तान के किसी काम की नहीं। उसी तरह से अन्य प्रकार का इंफ्रास्ट्रक्चर भी पाकिस्तान के लिए पर्याप्त धन जुटाने में अपर्याप्त है। इस ऋण ने केवल पाकिस्तान के लिए भुगतान संतुलन की समस्याएं पैदा कीं और पाकिस्तानी मुद्रा का अभूतपूर्व मूल्यह्रास हुआ। आज, पाकिस्तान की विनिमय दर 261.7 पाकिस्तानी रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर है। पाकिस्तान चीन का इतना ऋणी है कि 27 बिलियन अमेरिकी डॉलर के द्विपक्षीय ऋण में से लगभग 23 बिलियन अमेरिकी डॉलर चीनी ऋण ही है। पाकिस्तान का कुल विदेशी कर्ज 126.3 अरब डॉलर है। पाकिस्तान का कुल सार्वजनिक ऋण और देनदारियां लगभग 222 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है जो कि पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद का 393.7 प्रतिशत है।

यही नहीं, भारत के साथ प्रतिस्पर्धा में पाकिस्तान सरकार रक्षा क्षेत्र पर जरूरत से ज्यादा खर्च कर रही है। प्रतिरक्षा पर ज्यादा व्यय के बजाय उस धन का उपयोग बेहतर उद्देश्यों के लिए किया जा सकता था। पाकिस्तानी सरकार पर सेना का दबाव शायद उसे प्रतिरक्षा पर खर्च कम करने से रोकता है, लेकिन यह सत्य है कि आज यही फिजूलखर्ची पाकिस्तान के संकटों का कारण बन रही है। पाकिस्तान का मित्र माना जाने वाला चीन भी पाकिस्तान की मदद के लिए आगे नहीं आ रहा। उधर पाकिस्तान के अन्य मित्र देश भी पाकिस्तान को संकट से उबारने के लिए कोई उत्साह नहीं दिखा रहे। समझना होगा कि पाकिस्तान को अपने संकट से खुद ही उबरना होगा। उसके लिए जरूरी है कि पाकिस्तान आतंकवादियों की मदद करने वाली अपनी रणनीति से बाहर आए। पिछले समय में पाकिस्तान की इस प्रवृति के चलते फाइनैन्स ऐक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने लम्बे समय तक पाकिस्तान को ग्रे सूची में रखा और उसकी इन हरकतों के चलते विभिन्न प्रकार के निवेशक भी पाकिस्तान से कन्नी काटने लगे हैं। एक तरफ पाकिस्तान को कोई नया निवेश प्राप्त नहीं हो रहा, कई विदेशी कंपनियां भी पाकिस्तान को छोडऩे का मन बना रही हैं। पाकिस्तान को अनिवासी पाकिस्तानियों से भी भारी मात्रा में प्राप्तियां होती रही हैं, लेकिन अनिवासी पाकिस्तानी पाकिस्तान की बर्बाद होती अर्थव्यवस्था के चलते अपने धन की सुरक्षा के प्रति चिंतित हो रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान को नई प्राप्तियों में और अधिक कठिनाई आ सकती है। पाकिस्तान के लोगों को समझना होगा कि सरकारों के बदलने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। पाकिस्तान को बचाने का एक ही रास्ता है कि वह अपनी नीतियों को ठीक करे, अपने वित्तीय अनुशासन को संभाले, प्रतिरक्षा पर फिजूलखर्ची से बचे, अपने उद्योगों को बचाने की तरफ ध्यान दे, चीन के चंगुल से बाहर आए और भविष्य की चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर की बाकी बची परियोजनाओं को सिरे से खारिज कर दे।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर