दो हजार रुपए के नोट का मायाजाल

हालांकि अगले चार महीनों में जिस तेजी से ये नोट बैंकों में जमा होंगे, वो एक बार फिर से 2016 में हुई नोटबंदी की यादों को ताजा कर सकते हैं। ये सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 1.3 फीसदी और मार्च महीने के आखिर तक सर्कुलेशन यानी चलन में रही नकदी का 10.8 फीसदी है। रिसर्च कंपनी ने नोट में कहा है कि अगर ये सारी राशि तय समय में बैंकों तक वापस लौटती है तो इससे बैंकों के जमा आधार में बड़ी बढ़ोतरी होगी। क्वॉन्टइको की अर्थशास्त्रियों की टीम ने इस ओर भी इशारा किया कि चूंकि 2000 रुपये के नोट अमूमन लेन-देन में इस्तेमाल नहीं होते थे। हालांकि, लोगों ने एहतियातन या फिर टैक्स से बचने के लिए इसकी जमाखोरी की। दोनों ही मामलों में इसके चलन से बाहर होने की वजह से बैंकों की जमा राशि बढऩा, अस्थायी साबित होगा क्योंकि लोग आखिरकार छोटे नोटों का रुख करने लगेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि अघोषित आय की वजह से रियल एस्टेट और सोने जैसी महंगी चीजों की मांग बढऩे लगेगी, जैसा 2016 में हुई नोटबंदी के बाद भी देखा गया था। यह भी देखा गया कि इस मूल्यवर्ग का लेन-देन के लिए उपयोग नहीं होता…

भारतीय रिजर्व बैंक ने 2000 रुपए के नोट को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है। 2000 रुपये के नोट को सर्कुलेशन से बाहर किया जा रहा है। वर्तमान में बाजार में चल रहे 2000 रुपये के नोटों का मूल्य 3.62 लाख करोड़ रुपये है। यह प्रचलन में मुद्रा का लगभग 10.8 फीसदी है। केंद्रीय बैंक ने लोगों से 2000 रुपये के नोट को बैंकों में जमा कर लेने या रिप्लेस करा लेने को कहा है। इसके लिए बैंक ने लोगों को 30 सितंबर 2023 तक का समय दिया है। हालांकि केन्द्रीय बैंक ने साफ किया है कि ट्रांजैक्शन के लिए इन नोटों का इस्तेमाल जारी रहेगा। अधिकांश 2000 मूल्य वर्ग के नोट मार्च 2017 से पहले जारी किए गए थे और 4-5 साल के अपने अनुमानित जीवनकाल के अंत में हैं। कुछ वर्ष पहले नोटबंदी के बाद 500 और 1000 के लगभग 15.41 लाख करोड़ वैल्यू के नोट बैंकों में वापस आ गए जो चलन में मौजूद नोटों का 99.50 फीसदी था। यह कुल नकदी का 89 फीसदी था। इसलिए मार्केट में कैश की मात्रा बनाए रखने के लिए बड़े वैल्यू के 2 हजार के नोट छापने का सरकार ने फैसला लिया। दो हजार वाले लगभग 370 करोड़ नोटों को छापा गया जो लगभग 7.40 लाख करोड़ रुपये मूल्य के थे। दो हजार के 89 फीसदी नोट मार्च 2017 से पहले जारी किए हुए थे। आरबीआई के मुताबिक 31 मार्च 2018 तक बाजार में 2 हजार वाले नोटों की वैल्यू लगभग 6.73 लाख करोड़ थी, जो कुल नोटों का 37.3 फीसदी था। इस साल 31 मार्च 2023 तक बाजार में कुल कैश में 2 हजार के नोटों की वैल्यू 3.68 लाख करोड़ है जो कुल नकदी का 10.8 फीसदी ही है। एक सर्वे के अनुसार 64 प्रतिशत लोगों ने रिजर्व बैंक के फैसले का स्वागत किया है जबकि 22 फीसदी लोगों ने इसका विरोध किया है।

सर्वे में देश के 341 जिलों से 57000 लोगों की राय ली गई है। इनमें 64 प्रतिशत पुरुष और 36 प्रतिशत महिलाएं हैं। लोगों ने साथ ही कहा कि अधिकांश रिटेल व्यापारी/दुकानें, दवा विक्रेता, अस्पताल, सर्विस प्रोवाइडर और पेट्रोल पंप 2000 रुपये के नोट को लेने को तैयार नहीं हैं। हालांकि आरबीआई का साफ कहना है कि 2000 रुपये का नोट लीगल टेंडर बना रहेगा और कोई इसे लेने से इन्कार नहीं कर सकता है। सर्वे से पता लगा कि 2000 रुपये के नोट 64 फीसदी नागरिकों के पास नहीं हैं। छह फीसदी लोगों के पास 2000 के करंसी नोटों में 100,000 रुपये या उससे अधिक हैं। 34 फीसदी नागरिकों ने सरकार की घोषणा के बाद 2000 रुपये के नोट का इस्तेमाल करने की कोशिश की है। दि हिंदू अखबार ने एक रिसर्च रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि अगर बाजार में मौजूद कुल 2000 रुपये के नोटों का एक-तिहाई भी बैंकों में वापस जाता है तो इससे उसकी जमा राशि और बाजार में नकदी बढक़र 40 हजार करोड़ रुपये से लेकर 1.1 लाख करोड़ रुपये के बीच पहुंच सकती है। इस रिपोर्ट में इस तरफ भी इशारा किया गया है कि अघोषित आय पर टैक्स से बचने के लिए जितने लोगों ने दो हजार रुपये के नोटों की जमाखोरी की, उन्हें अब गहने खरीदने और रियल एस्टेट सेक्टर में लगा दिया जाएगा।

दो हजार रुपये के नोट रिपोर्ट छापने वाली ‘क्वॉन्टइको रिसर्च’ ने एक नोट में कहा है कि इस डेडलाइन के बाद इन नोटों का क्या होगा, इस पर कोई स्पष्ट स्थिति नहीं है। हालांकि अगले चार महीनों में जिस तेजी से ये नोट बैंकों में जमा होंगे, वो एक बार फिर से 2016 में हुई नोटबंदी की यादों को ताजा कर सकते हैं। ये सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 1.3 फीसदी और मार्च महीने के आखिर तक सर्कुलेशन यानी चलन में रही नकदी का 10.8 फीसदी है। रिसर्च कंपनी ने नोट में कहा है कि अगर ये सारी राशि तय समय में बैंकों तक वापस लौटती है तो इससे बैंकों के जमा आधार में बड़ी बढ़ोतरी होगी। क्वॉन्टइको की अर्थशास्त्रियों की टीम ने इस ओर भी इशारा किया कि चूंकि 2000 रुपये के नोट अमूमन लेन-देन में इस्तेमाल नहीं होते थे। हालांकि, लोगों ने एहतियातन या फिर टैक्स से बचने के लिए इसकी जमाखोरी की। दोनों ही मामलों में इसके चलन से बाहर होने की वजह से बैंकों की जमा राशि बढऩा, अस्थायी साबित होगा क्योंकि लोग आखिरकार छोटे नोटों का रुख करने लगेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि अघोषित आय की वजह से रियल एस्टेट और सोने जैसी महंगी चीजों की मांग बढऩे लगेगी, जैसा 2016 में हुई नोटबंदी के बाद भी देखा गया था। आखिर में ये रिपोर्ट कहती है कि अगर ये माना जाए कि जमाखोरी वाली राशि का 10 से 30 फीसदी हिस्सा वापस चलन में आ जाए तो इससे बैंकों के जमा आधार पर स्थायी असर होगा और बाजार में नकदी भी 400 से 1100 अरब के बीच रहेगी। यह भी देखा गया है कि इस मूल्यवर्ग का आमतौर पर लेनदेन के लिए उपयोग नहीं किया जाता है। इसके अलावा जनता की मुद्रा आवश्यकता को पूरा करने के लिए अन्य मूल्यवर्ग के बैंक नोटों का स्टॉक पर्याप्त बना हुआ है।

उपरोक्त को ध्यान मेंर रखते हुए, और भारतीय रिजर्व बैंक की ‘स्वच्छ नोट नीति’ के अनुसरण में, यह निर्णय लिया गया है कि 2000 मूल्यवर्ग के बैंक नोटों को संचलन से वापस ले लिया जाए। यह भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जनता के सदस्यों को अच्छी गुणवत्ता वाले बैंक नोटों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अपनाई गई नीति है। एक मत के अनुसार 2 हजार का नोट बंद करने से काले धन पर रोक लगाने में बड़ी मदद मिलेगी। ऐसा माना जा रहा था कि इन 2000 रुपये के नोटों को लोग जमा कर रहे थे। इस लक्ष्य में रिजर्व बैंक कितना सफल हो पाएगा, यह कहना बहुत मुश्किल है क्योंकि पहले की गई नोटबंदी के परिणामों को लेकर भी देश में दो वर्ग बने हुए हैं। एक वर्ग का मानना है कि नोटबंदी सफल रही, जबकि दूसरे वर्ग का मानना है कि नोटबंदी पूरी तरह विफल रही है। काले धन पर रोक नहीं लगी तथा आतंकवाद भी जारी रहा है। ऐसी स्थिति में रिजर्व बैंक अपने लक्ष्य को पूरा कैसे करेगा, यह उसी पर निर्भर करता है।

डा. वरिंद्र भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com