सप्त सिंधु क्षेत्र के एकीकरण का अभियान

गुलाब सिंह ने जम्मू के पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों को एक प्रशासन के नीचे लाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद लाहौर दरबार आपसी कलह से कमजोर हो गया। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पंजाब पर कब्जा कर लिया। उस समय सारा पंजाब जो मोटे तौर पर सप्त सिन्धु के सम्पूर्ण क्षेत्र तक फैला हुआ था, ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा बनने जा रहा था। महाराजा गुलाब सिंह ने अपनी चतुराई और कूटनीति से उसे ब्रिटिश इंडिया में जाने से बचाया और जम्मू-कश्मीर के नाम से नई रियासत का गठन किया जिसमें जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित और बल्तीस्तान नाम के पांच क्षेत्र थे…

विशाल सप्त सिन्धु क्षेत्र अपने आप में पूरे पश्चिमोत्तर भारत को समेटे हुए है। बस इतना ध्यान रहना चाहिए कि पश्चिमोत्तर भारत से अभिप्राय 15 अगस्त 1947 के पहले के भारत से है। इस विशाल क्षेत्र में सैकड़ों नदियां हैं लेकिन वे सारी पांच प्रसिद्ध सतलुज, व्यास, जेहलम, रावी व चिनाब में मिल जाती हैं या फिर सिन्धु नदी में मिलती हैं। ये पांचों नदियां सिन्धु में मिलती हैं और सिन्धु अन्त में समुद्र में मिल जाती है। सप्त सिन्धु क्षेत्र मुख्य रूप से वाटर सिस्टम है। लेकिन अनेकों आक्रमणकारियों के हमलों के कारण यह भौगोलिक रूप से तो विद्यमान रहा, परन्तु राजनैतिक रूप से खंड खंड हो गया। अठाहरवीं शताब्दी में जब अंग्रेजों का आगमन हुआ और वे देश भर में अपने पैर पसारते पसारते सप्त सिन्धु क्षेत्र की ओर बढ़ रहे थे, उन्हीं दिनों इस क्षेत्र में महाराजा रणजीत सिंह (1780-1839) का राजनैतिक क्षेत्र में उदय होता है। रणजीत सिंह यदुवंशी भट्टी समुदाय से ताल्लुक रखते थे। सप्त सिन्धु क्षेत्र, जैसा कि ऊपर संकेत दिया गया है, राजनैतिक रूप से अनेक छोटे छोटे क्षेत्रों में विभाजित था। सतलुज तक तो अंग्रेजों ने कब्जा कर ही लिया था। रणजीत सिंह समझ गए थे कि यदि अंग्रेजों से मुकाबला करना है तो सप्त सिन्धु क्षेत्र के एकीकरण की ओर कदम बढ़ाना होगा। इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने प्रयास शुरू किए। उन दिनों पंजाब में भंगी, कन्हैया, रामगढिय़ा, सिंहपुरिया, सुकरचकिया, आहलूवालिया, नकई, डल्लेवाला, निशानवालिया, करोड़सिंघिया, निहंग, फुलकियां व फैजलपुरिया मिसलें थीं। रणजीत सिंह स्वयं सुकरचकिया मिसल से ताल्लुक रखते थे। उन दिनों लाहौर पर भंगी और कन्हैया मिसल का कब्जा था। रणजीत सिंह ने सप्त सिंधु के एकीकरण की शुरुआत सबसे पहले इन बारह मिसलों के एकीकरण से ही की थी।

1799 में लाहौर के किले पर रणजीत सिंह का कब्जा हो गया। उसने कुछ समय में ही साम-दाम-दंड-भेद की कूटनीति का प्रयोग करते हुए अन्य सभी मिसलों का एकीकरण करने में सफलता प्राप्त की। फुलकियां मिसल और आहलुवालिया मिसल कुछ रियासतों में स्थापित हो गईं। शेष सभी रियासतों को रणजीत सिंह ने अपने राज्य में एकीकृत कर दिया। इसके बाद उसका ध्यान जम्मू के पहाड़ी क्षेत्रों की ओर गया। 1808 में रणजीत सिंह ने जम्मू को अपने राज्य में एकीकृत किया। उसके अगले ही साल 1809 में गुलाब सिंह (1792-1858) लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह की सेना में शामिल हो गए। उस समय उनकी आयु महज 16-17 साल थी। गुलाब सिंह ने जल्दी ही अपनी योग्यता से उनकी सेना में ऊंचा मुकाम हासिल कर लिया था। वह जानता था कि जम्मू की छोटी छोटी जागीरों और रियासतों को एकीकृत किए बिना सशक्त राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती। रणजीत सिंह ने जम्मू के पड़ोस में रियासी को मियां दीवान सिंह नाम के किसी व्यक्ति को जागीर के तौर पर दे दी । इससे पहले कि दीवान सिंह रियासी पहुंच पाता, गुलाब सिंह ने उस पर कब्जा कर लिया और जोरावर सिंह को उसका वजीर नियुक्त कर दिया। दीवान सिंह ने अपने बड़ी संख्या के सैनिकों से किले को घेर लिया। जोरावर सिंह डटा रहा, लेकिन मुकाबला असन्तुलित होता जा रहा था। गुलाब की ओर से जम्मू का प्रशासन दीवान अमीर चन्द देखता था। अमीर चन्द ने बहुत हिम्मत से भारी संख्या में सैनिक एकत्रित किए और रियासी में कुमकुम लेकर जा पहुंचा। दीवान चन्द का कि़ले पर कब्जा करने का प्रयास विफल रहा। जब गुलाब सिंह जम्मू के क्षेत्र को एकीकृत कर रहा था तो रणजीत सिंह ने कश्मीर को विदेशी कब्जे से मुक्त करवाने का निर्णय किया। दरअसल सप्त सिन्धु क्षेत्र के एकीकरण के अभियान में कश्मीर का महत्वपूर्ण स्थान था।

एक दो असफल अभियानों के बाद अन्तत: रणजीत सिंह ने 1819 में कश्मीर को भी विदेशी हुकूमत के पंजे से मुक्त करवा लिया। कश्मीर की मुक्ति अपने आप में सप्त सिन्धु क्षेत्र के इतिहास में बहुत बड़ी घटना थी। दरअसल रणजीत सिंह के अधिकांश विजय अभियानों में गुलाब सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी। 1819 में मुलतान विजय के अभियान में गुलाब सिंह के शौर्य और साहस ने रणजीत सिंह को आश्चर्यचकित कर दिया। मुलतान के कि़ले को लेकर भयंकर युद्ध हो रहा था। रणजीत सिंह की सेना का एक सरदार कि़ले की दीवार के पास गिरा। कि़ले से भयंकर गोलाबारी हो रही थी। रणजीत सिंह उस सरदार की लाश को वहां से लाना चाहते थे। उन्होंने सैनिकों को वहां से लाश उठा कर लाने का आदेश दिया। किसी की हिम्मत गोलों की बौछार में वहां तक जाने की नहीं हुई। लेकिन गुलाब सिंह जान की परवाह न करते हुए वहां से लाश उठा लाए। इन्हीं दिनों महाराजा रणजीत सिंह ने डेरा गाजी खान को मुक्त करवा कर उसे एकीकृत शासन का अंग बना लेने का अभियान चला रखा था। गुलाब सिंह इस अभियान में सक्रिय थे। ऐसा लगने लगा था कि पंजाब के जिस हिस्से पर अंग्रेज़ों ने पहले ही कब्जा कर लिया था, उसको छोड़ कर जल्दी ही पूरे सप्त सिन्धु क्षेत्र का एकीकरण हो जाएगा और सशक्त सप्त सिन्धु अंग्रेज़ी राज को पश्चिमोत्तर भारत में बढऩे से रोक सकता है। कश्मीर का एकीकरण हो गया। मुलतान और पेशावर भी एकीकृत राज्य का हिस्सा बन गए थे । लेकिन जम्मू में मियां डीडो (1780-1821) अस्थिरता पैदा कर रहा था। महाराजा रणजीत सिंह ने गुलाब सिंह को डीडो को नियंत्रण में करने के अभियान में लगाया। गुलाब सिंह की सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मियां डीडो उसी का बान्धव था। गुलाब सिंह ने इस एकीकरण अभियान का महत्व उसे समझाने का प्रयास किया, लेकिन डीडो नहीं माना।

तब 1821 में गुलाब सिंह की सेना की एक टुकड़ी के साथ मुठभेड़ में डीडो मारा गया। अब गुलाब सिंह जम्मू क्षेत्र के सभी क्षेत्रों के एकीकरण के अभियान में भी जुटे हुए थे। 1821 में गुलाब सिंह ने सैफुल्लाह खान से किश्तवाड़ छीन कर उसे जम्मू के साथ एकीकृत किया। रणजीत सिंह ने गुलाब सिंह की योग्यता, क्षमता और दूरदृष्टि को पहचान कर उन्हें जम्मू का राजा घोषित किया था। 16 जून 1822 को महाराजा रणजीत सिंह ने अखनूर शहर में चिनाब नदी के किनारे जिया पोटा वृक्ष के नीचे गुलाब सिंह का राजतिलक किया। गुलाब सिंह ने जम्मू के पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों को एक प्रशासन के नीचे लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद लाहौर दरबार आपसी कलह से कमजोर हो गया। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पंजाब पर कब्जा कर लिया। उस समय सारा पंजाब जो मोटे तौर पर सप्त सिन्धु के सम्पूर्ण क्षेत्र तक फैला हुआ था, ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा बनने जा रहा था। महाराजा गुलाब सिंह ने अपनी चतुराई और कूटनीति से उसे ब्रिटिश इंडिया में जाने से बचाया और जम्मू कश्मीर के नाम से नई रियासत का गठन किया जिसमें जम्मू, कश्मीर, लद्दाख, गिलगित और बल्तीस्तान नाम के पांच क्षेत्र थे। यदि ये क्षेत्र उस समय ब्रिटिश इंडिया में चले जाते तो यक़ीनन 15 अगस्त 1947 को लंदन सरकार इसे पाकिस्तान के हवाले कर देती।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

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