बाल यौन शोषण की बढ़ती घटनाएं

कई पीडि़त लड़कियां अपने साथ हुए यौन शोषण-छेडख़ानी की घटनाओं को हल्के से लेती हैं…

बाल अपराधों को रोकने के लिए समय-समय पर सख्त से सख्त कानून भी बनाए गए, मगर फिर भी ऐसे घृणित अपराधों में कोई कमी नहीं आई है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के विरुद्ध विभिन्न प्रकार के अपराध बड़े लंबे काल से ही होते चले आ रहे हैं। दरिंदगी से भरे इनसानों की मानसिकता में कोई विशेष बदलाव नहीं आया है। पढ़ी-लिखी जागृत महिलाएं जो किसी न किसी नौकरी में कार्यरत हैं, उनके साथ भी उनके कार्य स्थलों में यौन हिंसा की घटनाएं घटित होती आ रही हैं। दरिंदों की बस्तियां बसती जा रही हैं। हर जगह वहशीपन के कूड़ेदान सजे हुए हैं। स्कूलों व कालेजों में अध्यापकों की निगाहें भी शैतान होती जा रही हैं। स्कूलों के पेड़ों पर शैतानों के घौंसले आबाद होते जा रहे हैं। हर परत के नीचे कालिख ही कालिख दिखाई देती है। न्यायिक संस्थाएं, पुलिस व न्यायालय भी इतने संवेदनशील नहीं हो पाए हैं जो ऐसे अपराधियों को तुरंत व कड़ी से कड़ी सजा दे पाएं। ऐसे अपराधों को रोकने के लिए वर्ष 2012 में पोस्को एक्ट (प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रन फ्राम सेक्सुअल ओफेन्सिस एक्ट) बनाया गया जिसमें 3 वर्ष से लेकर मृत्यु दंड तक का प्रावधान भी रखा गया है।

कच्ची व छोटी उम्र की बच्चियों (18 वर्ष से नीचे वाली) को कई प्रकार के प्रलोभन देकर उन्हें यौन शोषण का शिकार बनाया जाता रहा है तथा इसके अतिरिक्त उन्हें लव जिहाद में फंसा कर व उनका धर्मांतरण करवा कर उनकी जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा है। आखिर ऐसे क्या कारण हैं जिनकी वजह से ऐसी घटनाएं प्रतिदिन बढ़ती जा रही हंै। वर्ष 2020 में पोस्को एक्ट में 47221 केस दर्ज हुए, मगर पाया गया कि इनमें सजा की दर केवल 15 फीसदी तक ही रही है। यह भी पाया गया है कि देश में 18 प्रतिशत केस ऐसे भी हैं जिनमें लडक़े व लडक़ी के प्रेम संबंध रहे हैं, मगर माता-पिता व अन्य लोगों की शिकायत पर व अन्य कई सामाजिक कारणों की वजह से लडक़ों पर पोस्को एक्ट लगाकर उन्हें आरोपी बना दिया गया। उनके प्रेम संबंध भले ही आपसी सहमति से ही बने हों, मगर ऐसे संबंध एक समय के बाद निश्चित तौर पर या तो अपराध का रूप धारण करते लेते हैं या फिर समाज के नियमों को हिला देने में सहायक सिद्ध होते हैं। ऐसी उम्र में परिपक्वता की कमी होती है। बुरी संगत में आकर कई बुराइयों जैसे मादक पदार्थों का सेवन करने की लत व मानसिक तनाव जैसी बीमारियों का शिकार हो जाना स्वाभाविक हो जाता है। आजकल सोशल मीडिया का प्रयोग व फेसबुक पर चैटिंग इत्यादि तो फैशन सा बन गया है। माता-पिता को तो पता ही नहीं होता कि उनके बच्चे क्या कर रहे हैं। उन्हें तो पता ही उस समय लगता है जब उनका बच्चा (लडक़ा/लडक़ी) एक बहुत बड़ा सामाजिक अपराध कर चुका होता है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बालक-बालिकाओं की 12 से 16 वर्ष तक की आयु इतनी लचीली होती है कि उसे किसी भी दिशा में अच्छी या बुरी में मोड़ा जा सकता है। आजकल मां-बाप अपने बच्चों को अपना उचित समय नहीं दे पाते तथा जन्म से ही उन्हें मोबाइल देकर उन्हें प्रसन्न रखने की कोशिश करते रहते हैं। फिर यह बच्चे मोबाइल का अनुचित प्रयोग करने लगते हैं तथा कई प्रकार के अश्लील चित्र व पोर्नोग्राफी इत्यादि देखना आरंभ कर देते हैं। अब तो मोबाइल के माध्यम से लव जिहाद व धर्मांतरण के भी कई केस सामने आने लगे हैं। यह उम्र प्रेम संबंधों में फंसकर भटकने की नहीं होती। यह तो अपने लक्ष्य को साध कर आगे बढऩे की होती है। कच्ची आयु में प्रेम संबंध बनाना तो एक ऐसे मकडज़ाल की तरह है जिसमें एक बार फंस जाने के बाद फिर बाहर नहीं निकला जा सकता। बाल शोषण अपराधों के कारण व निवारण की विवेचना कुछ इस प्रकार से है : 1. माता-पिता अपने बच्चों को अनचाही हरकतों जैसे कि फ्लाइंग किस करवाना तथा पाश्चात्य देशों वाली बातें करना, विपरीत सेक्स के प्रति रुचि वाली बातें सुनने में अपना बड़प्पन समझते हैं तथा वो चाहते हैं कि उनके बच्चों का पहरावा व सोच अनोखी हो तथा वो आम बच्चों की तुलना में कुछ अलग से ही दिखने चाहिएं। माता-पिता अपने बच्चों को जरूरत से ज्यादा स्वतंत्रता देते हैं तथा वो पुरानी कहावत को भूल जाते हैं कि ज्यादा लाड़ प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं। 2. छोटी उम्र के बच्चों में हारमोनिकल परिवर्तन आते रहते हैं तथा उनकी विपरीत सेक्स के प्रति रुचि बढऩे लगती है। बच्चों को इस संबंध में जागरूक करना चाहिए तथा उनकी प्रत्येक अनचाही हरकत पर ध्यान देना चाहिए। 3. बचपन में बच्चों को सात्विक भोजन करवाना चाहिए तथा पढ़ाई के अतिरिक्त खेलकूद व धार्मिक गतिविधियों में भी रुचि का सृजन करना चाहिए। 4. घर से बच्चों का भाग जाना तथा फिर माता-पिता को पुलिस की सहायता लेकर उनको ढूंढना या केस रजिस्टर करवाना तो आम सी बात हो गई है। सजा से बचने के लिए कई मनघढ़ंत कहानियां बनाई जाती हैं, मगर ऐसे कारनामों से बच्चों का अपना भविष्य तो अंधकारमय होता ही है, साथ ही माता-पिता समाज में मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहते।

लव जिहादी तो ऐसे बच्चों की तलाश में ही रहते हैं तथा मौका पाते ही वे उन्हें अपने बस में करके उनका हर प्रकार से शोषण करते हैं। 5. बच्चों को कामवासना वाले प्रेम में फंसने से बचाने के लिए उचित जागरूकता लाने की जरूरत है। न जाने कितनी बच्चियों को काम वासना का शिकार बना कर उनकी हत्याएं कर दी जाती हैं। समाज में हो रही ऐसी भयावह घटनाओं के उदाहरणों से उन्हें जागृत करना चाहिए ताकि वो सतर्क हो सकें। 6. पोस्को एक्ट में बहुत ही कड़ी सजा का प्रावधान है तथा किसी बालिका को उसके अनचाहे अंग पर छूना तो दूर, अगर उसे किसी प्रकार के कामवासना भरे शब्द कह दिए जाएं तो कम से कम 3 वर्ष की सजा का प्रावधान है। कहते हैं कि यदि भय न हो तो व्यक्ति कुछ भी अपराध कर सकता है तथा इस सजा के भय को बच्चों तक पहुंचाने की जरूरत है। यह संदेश स्कूलों-कालेजों के पाठ्यक्रम में भी जोड़ा जा सकता है। 7. पुलिस व न्यायपालिका को ऐसे मामलों में ज्यादा गंभीर व संवेदनशील होने की जरूरत है। पुलिस को एक महीने के बीच ही ऐसी घटनाओं की चार्जशीट न्यायालय में दर्ज कर देनी चाहिए। 8. कई पीडि़त लड़कियां अपने साथ हुए यौन शोषण-छेडख़ानी की घटनाओं को हल्के से लेती हैं या फिर शर्म के मारे अपने माता-पिता के साथ कुछ नहीं बताती तथा परिणामस्वरूप ऐसे आरोपी सभी प्रकार की हदें लांघना शुरू कर देते हैं। बालिकाओं को चाहिए कि ऐसी घटनाओं के बारे में अपने माता-पिता को तुरंत बतलाएं।

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी