यूपीआई का अंतरराष्ट्रीयकरण : गेम चेंजर

चूंकि यूपीआई भारतीय रुपए पर आधारित है, इसलिए यूपीआई के अंतरराष्ट्रीयकरण से आसानी से अंतरराष्ट्रीय भुगतान भारतीय रुपए में संभव हो सकेंगे…

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान पेरिस में भारत के भुगतान प्लेटफॉर्म यूपीआई को शुरू किया गया। देखने में चाहे यह एक छोटी-सी शुरुआत लगती है, लेकिन यह भारत के भुगतान प्रणाली की दुनिया में बढ़ती पहचान का द्योतक है।

क्या है यूपीआई : यूपीआई की शुरुआत 2016 में भारत सरकार द्वारा समर्थित एजेंसी, नेशनल पेमेंट्स कॉरपेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) द्वारा की गई थी। यह एक त्वरित डिजिटल भुगतान प्रणाली है जिसके माध्यम से विभिन्न बैंकों के बीच धन का स्थानांतरण किया जाता है। बड़ी बात यह है कि यह भारतीय रुपए पर आधारित है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस संबंध में फ्रांस में अपने वक्तव्य में यह कहा कि अब भारतीय फ्रांस के आईफिल टावर से भी रुपए में भुगतान कर सकेंगे। अंतरराष्ट्रीय भुगतानों में यूपीआई के इस्तेमाल के लिए यूपीआई इंटरनेशनल का एक नया फीचर यूपीआई में शामिल किया गया है, जिससे क्यूआर कोड की मदद से भारतीय बैंक खातों से विदेशों में भुगतान किए जा सकते हैं। भूटान, नेपाल, सिंगापुर, यूएई और मॉरिशस में तो पहले से ही यूपीआई से भुगतान संभव था, और अब फ्रांस भी उस सूची में शामिल हो गया है। भारत में नेशनल पेमेंट्स कॉरपेशन ऑफ इंडिया के तत्वावधान में 2014 में रुपे कार्डों का चलन शुरू हुआ था और बाद में ऑनलाईन भुगतानों की सुविधा के लिए यूपीआई को शुरू किया गया। आज भारत में अनेक प्लेटफॉर्म हैं जो यूपीआई से जुडक़र अपने ग्राहकों को ऑनलाईन भुगतानों की सुविधा प्रदान करते हैं। यह सच है कि ऑनलाइन यानी डिजिटल भुगतानों का चलन पूरी दुनिया में बढ़ा है, लेकिन दुनिया में भी सबसे ज्यादा यह भारत में बढ़ा है। गौरतलब है कि वर्ष 2022 में कुल 149.5 लाख करोड़ रुपए के ऑनलाइन लेन-देन हुए। इन लेन-देनों में 126 लाख करोड़ रुपए के लेन-देन सिर्फ यूपीआई के माध्यम से हुए। गौरतलब है कि देश में कुल लगभग 88 अरब ऑनलाइन लेन-देन रिकार्ड किए गए। प्राइस वाटरहाउस कूपर की एक रिपोर्ट के अनुसार ऑनलाइन भुगतान की संख्या 2026-27 तक एक अरब प्रतिदिन तक पहुंच सकती है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया में जितने ऑनलाइन लेने-देन होते हैं, उसके 40 प्रतिशत से ज्यादा लेन-देन भारत में होते हैं। बड़ी बात यह है कि भारत में ऑनलाइन लेन-देन पूर्णतया मुफ्त रहा है। हाल ही में सरकार ने 2000 और उससे ऊपर की राशि पर उपभोक्ता द्वारा मर्चेंट को खरीददारी के लिए भुगतान पर 1.1 प्रतिशत तक का शुल्क लगाने की अनुमति दी है। लेकिन यदि उपभोक्ता द्वारा मर्चेंट के बैंक अकाउंट में भुगतान किया जाता है तो शुल्क लागू नहीं होगा।

यूपीआई का अंतरराष्ट्रीयकरण : यूपीआई का अंतरराष्ट्रीयकरण एनपीसीआई के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता है। 2022 में एनपीसीआई ने घोषणा की कि वह उन बाजारों में यूपीआई भुगतान को सक्षम करने के लिए कई देशों में बैंकों और भुगतान कंपनियों के साथ काम करेगा। तब से यूपीआई को कई देशों में लॉन्च किया जा चुका है और कई अन्य मुल्कों में इस हेतु तैयारी चल रही है। यूपीआई के अंतरराष्ट्रीयकरण से उपयोगकर्ताओं और व्यापारियों को कई लाभ मिलेंगे। उपयोगकर्ताओं के लिए इसका मतलब यह होगा कि वे अपने स्थान से अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी अधिक सुविधाजनक और सुरक्षित तरीके से भुगतान करने और प्राप्त करने में सक्षम होंगे। व्यापारियों के लिए, इसका मतलब यह होगा कि वे व्यापक ग्राहक आधार तक पहुंचने और भारतीय ग्राहकों से भुगतान स्वीकार करने में सक्षम होंगे। यूपीआई का अंतरराष्ट्रीयकरण भारतीय भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह इस बात का प्रमाण है कि यूपीआई भारत में सफलता का परचम लहराने के बाद वैश्विक भुगतान परिदृश्य को बाधित करने की क्षमता रखती है। यूपीआई सुविधाजनक होने के साथ साथ सुरक्षित भुगतान प्रणाली भी है। आज के इस साइबर अपराधों के युग में यह एक सुरक्षित भुगतान प्रणाली भी है जो उपयोगकर्ताओं के खातों की सुरक्षा के लिए दो-कारक प्रमाणीकरण का उपयोग करती है। इसलिए हम देखते हैं कि लेन-देन के इतने बड़े प्रमाण के बाद भी धोखाधड़ी न्यूनतम है। वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय भुगतानों में लागत बहुत अधिक है। यूपीआई के अंतरराष्ट्रीयकरण से सीमा पार भुगतान की लागत को कम करने में भी मदद मिलेगी। गौरतलब है कि पिछले साल रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर यूरोपीय प्रणाली ‘स्विफ्ट’ में अचानक आई रुकावट के बाद यूपीआई को वैश्विक बनाने की मुहिम तेज हो गई है। गौरतलब है कि अमेरिका ने रूस के साथ लेन-देन में सबसे बड़े वैश्विक भुगतान नेटवर्क स्विफ्ट को अचानक रोक दिया था।

यूपीआई के वैश्विक होने के निहितार्थ : गौरतलब है कि चूंकि यूपीआई भारतीय रुपए पर आधारित है, इसलिए यूपीआई के अंतरराष्ट्रीयकरण से आसानी से अंतरराष्ट्रीय भुगतान भारतीय रुपए में संभव हो सकेंगे। समझना होगा कि इससे पूर्व भारत से अंतरराष्ट्रीय भुगतान करने के लिए वीजा और मास्टर कार्ड सरीखी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा जारी क्रेडिट और डेबिट कार्ड का इस्तेमाल जरूरी था। यहां तक कि वर्ष 2014 से पहले भारत में भी उपभोक्ताओं द्वारा मर्चेंट को ऑनलाइन भुगतान करने के लिए इन्हीं कार्डों का इस्तेमाल किया जाता था। एक मोटे अनुमान के अनुसार कुल लेन-देन के 2.5 प्रतिशत तक की राशि भुगतान प्राप्त करने वाले मर्चेंट को वीजा और मास्टर कार्ड को देनी पड़ती थी। इस लाभ को ये कार्ड कंपनियां अपने मूल देश में ले जाती थी। वर्ष 2014 में यह राशि 1 अरब डालर से ज्यादा की थी। एक समय ऑनलाइन भुगतानों में जिस वीजा और मास्टर कार्डों का एकाधिकार था, अब कार्ड व्यवसाय में भी इन दोनों कार्डों का हिस्सा रुपे कार्ड से कहीं कम रह गया है। लेकिन आज की वास्तविकता यह है कि हालांकि कार्ड भुगतानों में रुपे कार्ड का योगदान 60 प्रतिशत तक पहुंच गया है और वीजा और मास्टर कार्ड का योगदान मात्र 40 प्रतिशत मात्र ही रह गया है, लेकिन यदि कुल ऑनलाइन भुगतानों की बात की जाए तो कार्डों का महत्व बहुत कम रह गया है क्योंकि एक बैंक खाते से दूसरे खाते में, एक व्यक्ति के वॉलेट से दूसरे व्यक्ति के वॉलेट में राशि अंतरित करने के लिए यूपीआई समर्थित प्लेटफार्मों का कोई विकल्प नहीं है। आज क्यूआर कोड और मोबाइल नंबर और बैंक खाता आधारित ऑनलाइन लेन-देन सबसे अधिक हो रहे हैं। यह सुविधाजनक और सस्ता तो है ही, त्वरित भी है। पिछले मार्च में, यूरोपीय संघ (ईयू) ने प्रमुख रूसी बैंकों को स्विफ्ट (सोसाइटी फॉर वल्र्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन) प्रणाली, जो वैश्विक वित्तीय संदेश प्रणाली है, का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया था जिसका मुख्यालय बेल्जियम में है। यह प्रणाली विभिन्न देशों में धन के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है। इस कदम से भारत जैसे देशों में महत्वपूर्ण व्यवधान उत्पन्न हुआ, जहां बैंक पारंपरिक रूप से रूस के साथ व्यापार करने के लिए स्विफ्ट पर निर्भर रहे हैं।

एक गेम चेंजर : एक समय था जब पश्चिमी देशों का वित्तीय दुनिया पर शासन था, उनका न केवल अंतरराष्ट्रीय वित्त पर, बल्कि भुगतान प्रणालियों पर भी नियंत्रण था। वैश्विक भुगतान में स्विफ्ट का एकाधिकार था। पश्चिमी देश जब-तब दुनिया को धमकी देते रहते थे कि अगर कोई देश उनके कहे मुताबिक नहीं चलेंगे तो वे उस पर प्रतिबंध लगा देंगे। उनके प्रतिबंधों का मतलब आमतौर पर स्विफ्ट के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय भुगतान को रोकना होता है। अब जब रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोपीय संघ द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के मद्देनजर, भारत की ओर से भारतीय रुपए में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के निपटान को बढ़ावा देने के प्रयासों के साथ कई अन्य क्षेत्रीय ब्लॉक भी अपने सदस्यों की संबंधित घरेलू मुद्राओं में व्यापार के निपटान को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं, तो पश्चिमी ब्लॉक को ख़ासा अच्छा जवाब मिल रहा है।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर