कहीं षड्यंत्र तो नहीं भुखमरी रिपोर्ट

स्पष्ट है कि यह एजेंसी लगातार गलत आंकड़े और गलत मैथडोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए, वास्तविकता से कहीं दूर भारत को बदनाम करने की कोशिश करती है…

पिछले सालों की तरह एक बार फिर जर्मनी की वेल्ट हंगरहिल्फे नाम की संस्था ने अपना ‘हंगर इंडेक्स’ और उस पर आधारित दुनिया के मुल्कों की भुखमरी रैंकिंग जारी कर दी है। इस रैंकिंग में फिर से भारत को अत्यंत नीचे 111वें स्थान पर रखा गया है। गौरतलब है कि इस साल इस रैंकिंग में 125 देश शामिल किए गए हैं। पिछले साल 2022 में 121 मुल्कों की सूची में भारत को 107वें स्थान पर और उससे पिछले साल 2021 में 116 मुल्कों की रैंकिंग में भारत को 101वें स्थान पर रखा गया था। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस भुखमरी इंडेक्स से उनका अभिप्राय यह है कि भारत में भारी मात्रा में भुखमरी तो व्याप्त है ही, अन्य मुल्कों का प्रदर्शन भारत से कहीं बेहतर है। इस मामले में यदि रिपोर्ट को मानें तो पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि देशों का भी प्रदर्शन भारत से कहीं बेहतर है, जो भारत से खाद्य पदार्थों पर निर्भर हैं। ऐसे में इस रिपोर्ट पर प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है। आईये समझने की कोशिश करते हैं कि भारत में भुखमरी और उसके सूचकांकों की वास्तविकता क्या है?

क्या है वेल्ट हंगरहिल्फे का हंगर इंडेक्स : इस हंगर इंडेक्स को मापने के 4 पैमाने हैं : कुपोषण, बच्चों में ठिगनापन (स्टंटिंग), बच्चों का वजन (ऊंचाई के हिसाब से कम वजन) यानी वेस्टिंग और बाल मृत्यु दर (5 साल से कम आयु के बच्चों में मृत्यु दर)। इन सभी पैमानों पर आधारित हंगर इंडेक्स को अनुमानित किया जाता है। वेल्ट हंगरहिल्फे का कहना है कि भारत में यह इंडेक्स 28.7 है, जो अत्यंत गंभीर है, जबकि पाकिस्तान में यह 26.6 है, जिसके कारण पाकिस्तान भी भारत से ऊपर 102वें पायदान पर है। इसी प्रकार बांग्लादेश 19.0 अंकों के साथ 81वें स्थान पर और श्रीलंका 13.3 अंकों के साथ 60वें स्थान पर बताया गया है। हंगर इंडेक्स यानी भुखमरी सूचकांक के निर्माण में प्रयुक्त मापदंडों और पैमानों के बारे में बात करें तो एक तरफ आंकड़ों और दूसरी तरफ मैथोडोलोजी पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं। भारत सरकार ही नहीं, कई विशेषज्ञ भी इस रिपोर्ट को सिरे से नकार रहे हैं।

बाल मृत्यु दर : इस सूचकांक का एक बड़ा हिस्सा बाल मृत्यु दर को लेकर है। वर्ष 2023 का भुखमरी सूचकांक बनाते हुए, 2020-21 की बाल मृत्यु दर का जो आंकड़ा लिया गया है। रिपोर्ट में भारत की बाल मृत्यु दर को 31 प्रति हजार बताया गया है। भारत के नमूना रजिस्ट्रेशन प्रणाली द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 के मुकाबले वर्ष 2020 में बाल मृत्यु दर 35 प्रति हजार से घटकर 32 प्रति हजार पहुंच गई थी। यदि बाल मृत्यु दर की घटने की इसी दर को माना जाए तो वर्ष 2023 तक इसके 24.4 तक होने का अनुमान है। ऐसे में कोई कारण नहीं कि भारत में बाल मृत्यु दर को 31 प्रति हजार माना जाए और देश को भुखमरी से पीडि़त बताने में पुराने आंकड़ों का उपयोग किया जाए। ताजा आंकड़ों के अुनसार पाकिस्तान में शिशु मृत्यु दर 55.8 प्रति हजार है। बाल मृत्यु दर उससे भी कहीं अधिक है। इसके बावजूद भारत को भुखमरी के 111वें पायदान और पाकिस्तान को 102वें पायदान पर बताया जा रहा है। इसका कारण यह है कि भुखमरी सूचकांक के अन्य पैमानों में भी गलत आंकड़ों का उपयोग हुआ है। कुछ खोट अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के आंकड़ों में भी है। भारत सरकार द्वारा प्रकाशित आंकड़े जहां शिशु मृत्यु दर को 2020 में 28 प्रति हजार दिखा रहे थे, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां उन्हें अपने पुराने अनुमानों के आधार पर 29.848 बता रही हैं। गौरतलब है कि किसी भी विदेशी अथवा भारतीय एजेंसी को सरकार द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अतिरिक्त किन्हीं अन्य आंकड़ों को इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है। लेकिन हंगर इंडेक्स की यह रिपोर्ट खुले तौर पर कहती है कि जरूरी नहीं कि इस रिपोर्ट में सरकारों द्वारा दिए गए आंकड़े ही प्रयुक्त किए गए हैं। भारत में तेजी से सुधरती स्थितियां कुल्षित एजेंडा के साथ काम करने वाली संस्थाओं को रास नहीं आ रही।

कुपोषण : जहां तक कुपोषण पर आंकड़ों का प्रश्न है, वेल्ट हंगरहिल्फे के पास कोई तथ्यात्मक आंकड़े नहीं हैं, क्योंकि संबंधित एजेंसी द्वारा गृहस्थ उपभोग सर्वेक्षण 2011 के बाद हुआ ही नहीं। इसलिए 3000 लोगों के नमूने पर एक ‘गैलप सर्वेक्षण’, जिसकी कार्यप्रणाली भी संदिग्ध है, उसके आधार पर कुपोषण के आंकड़े तैयार किए गए हैं। अगर खाद्य पदार्थों के उत्पादन और उपलब्धता की बात करें तो आज 188 देशों की उपलब्ध नवीनतम वैश्विक रैंकिंग (2020) में भारत का स्थान दुनिया में 35वां है। लगातार बढ़ता प्रति व्यक्ति खाद्यान्न, दूध, अंडों, फल-सब्जी, मछली आदि सभी पदार्थों का उत्पादन इस बात की पुष्टि करता है कि भारत आज मांग की तुलना में अधिशेष का उत्पादन कर रहा है।

ठिगनापन और पतलापन (स्टंटिंग और वेस्टिंग) : देश में कुछ समय पूर्व तक एकमात्र नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वेक्षण द्वारा आकलित स्टंटिंग और वेस्टिंग के आंकड़े ही उपलब्ध थे। लेकिन छोटे सैंपल आकार के चलते उन पर कई बार प्रश्नचिन्ह लगते थे। भारत सरकार के महिला एवं बाल मंत्रालय द्वारा देश के कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए एक व्यापक पोषण अभियान की शुरुआत की गई है। जहां एनएफएचएस में अपेक्षाकृत छोटे सैंपल के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते थे, पोषण ट्रैकर में 7 करोड़ से अधिक बच्चों के वास्तविक आंकड़ों के आधार पर आंकड़े प्रकाशित किए जा रहे हैं, जहां वेस्टिंग के आंकड़े लगातार बता रहे हैं कि भारत के बच्चों में मात्र 7.2 प्रतिशत वेस्टिंग ही है, जबकि वेल्ट हंगरहिल्फे की भुखमरी रिपोर्ट (2023) में एनएफएचएस 2019-21 का 18.7 प्रतिशत वेस्टिंग का आंकड़ा प्रयुक्त हुआ है। जहां तक ठिगनेपन यानी स्टंटिंग का सवाल है, विषेषज्ञों का मानना है कि पूरे देश के लिए कद का एक मानक नहीं हो सकता। ठिगनापन ही नहीं पतलापन भी भौगोलिक क्षेत्र, पर्यावरण, आनुवंशिक और पोषण जैसे कई तत्वों पर निर्भर करता है। यदि कद की बात की जाए तो पंजाबी बच्चों का कद पूर्वोत्तर के बच्चों से कई इंच ज्यादा होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस बात को स्वीकार किया है। इसलिए वेल्ट हंगरहिल्फे द्वारा प्रकाशित भुखमरी सूचकांक भारत की गलत तस्वीर पेश कर रहा है। गौरतलब है कि वास्तविक तौर पर 7 करोड़ से ज्यादा बच्चों के स्वास्थ्य आंकड़ों के आधार पर बने पोषण ट्रैकर के आधार पर देखा जाए तो देश में फरवरी 2023 में मात्र 7.7 प्रतिशत बच्चे ही कुपोषित थे। उधर मात्र 3000 लोगों के गैलप सर्वेक्षण के आधार पर भारत में कुपोषण का प्रमाण 16.6 प्रतिशत बताया जा रहा है। यही नहीं कि भारत सरकार का पोषण अभियान देश में कुपोषण की समस्या के समाधान के लिए कार्यरत है, और इसके द्वारा प्रकाशित आंकड़ों का उपयोग अब विश्व स्वास्थ्य संगठन भी करने लगा है। हालांकि वेल्ट हंगरहिल्फे की रिपोर्ट की मैथोडोलॉजी पर भी कई सवाल हैं, लेकिन फिर भी यदि भुखमरी सूचकांक निकालने के लिए जो फार्मूला एजेंसी द्वारा उपयोग किया गया है, उसी को मानते हुए यदि सही आंकड़ों यानी बाल मृत्यु दर 24.4 प्रति हजार, 5 साल के बच्चों का पतलापन यानी वेस्टिंग को पोषण ट्रैकर द्वारा एकत्र आंकड़ों के अनुसार 7.2 प्रतिशत माना जाए और कुपोषण को पोषण ट्रैकर के आंकड़ों के अनुसार 7.7 माना जाए, और चूंकि स्टंटिंग के आंकड़े तुलनीय नहीं हैं, उन्हें छोड़ दिया जाए, तो इस लेख के लेखक द्वारा भुखमरी सूचकांक का जो आंकड़ा प्राप्त होता है, वह 9.528 निकलता है। इस हिसाब से, वेल्ट हंगरहिल्फे के फार्मूले के अनुसार भी भुखमरी सूचकांक में भारत की रैंकिंग 111वीं नहीं बल्कि 48वीं प्राप्त होती है। स्वाभाविक ही है कि वेल्ट हंगरहिल्फे की रिपोर्ट के बाद कई विरोधी राजनीतिक दलों ने भुखमरी को एक मुद्दा बनाया है। ऐसे में स्पष्ट है कि यह एजेंसी लगातार गलत आंकड़े और गलत मैथोडोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए, वास्तविकता से कहीं दूर भारत को बदनाम करने की कोशिश करती है। इस प्रकार की सभी एजेंसियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

डा. अश्वनी महाजन

कालेज प्रोफेसर