पूर्वजों की आत्मिक शांति को पिंडदान, पिहोवा में पितृपक्ष की अमावस के चलते पर उमड़े हजारों श्रद्धालु

मुकेश डोलिया — पिहोवा
पितरों के श्राद्ध करने से तो उन्हें शांति मिलती ही है, लेकिन पिंडदान एवं पितृ तर्पण से सद्गति होती है। पितृपक्ष की अमावस पर शनिवार को सरस्वती तीर्थ पर हजारों श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान करने पहुंचे। इसको लेकर तीर्थ प्रभावित व प्रशासनिक अमला पूरी तरह अलर्ट रहा। पितृ पक्ष में सरस्वती तीर्थ लगभग लाखों रुपए का कारोबार हुआ। इसमें पंडित, तीर्थ पुरोहित और दुकानदार सभी शामिल है। पिंडदान के बाद श्रद्धालु अपने-अपने पुरोहितों को दक्षिणा एक पड़े, बरतन खाट बिस्तर व अन्य कई ऐसे सामान दान में देते हैं जो उनके पूर्वजों को पसंद था।

तीर्थ पुरोहित एवं प्रसिद्ध ज्योतिषी देवदत्त मौदगिल के मुताबिक सरस्वती तीर्थ पर पिंडदान का पुण्य गयाजी के समान है, यदि कोई व्यक्ति गयाजी जाता है, तो वहां पहले पृथु वेदी पर पिंडदान होता है, जिसका अर्थ पिहोवा तीर्थ पूजन तर्पण है, इसके बाद श्राद्ध की असली पूजा शुरू होती है। पुरोहितों के मुताबिक गंगा जी जाने से पूर्व श्रद्धालु कच्ची लस्सी लेकर श्मशान में उसका छिडक़ाव करते हैं और पितरों को आवाज लगते हैं कि है पितृ सुबह गया जी चलना है आप कृपया तैयार रहना, लेकिन इस प्रक्रिया की एक शर्त होती है कि गया जी जाते समय रास्ते में जितने तीर्थ हैं उन सभी पर श्राद्ध करना पड़ता है यदि पिहोवा से व्यक्ति निकलता है तो उसे ज्योतिसर, थानेसर, दिल्ली, प्रयागराज व बनारस रास्ते में पडऩे वाले सभी तीर्थ पर श्राद्ध करना होता है, अगर रास्ते में कोई तीर्थ नहीं पड़ता तो सीधे गया जी जाकर श्राद्ध कराया जा सकता है।

पितृ मोक्ष के लिए अन्नदान जरूरी
मान्यता है कि गयाजी में पितृ मोक्ष को प्राप्त होकर मुक्त हो जाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अब श्राद्ध करने की जरूरत नहीं रही। गयाजी जाने के बाद कुत्ते गाय और कौवे को रोटी देकर व तिल हाथ में लेकर संकल्प से तो बचा जा सकता है, लेकिन अन्नदान जरूर करना चाहिए। पितृ तर्पण के लिए गयाजी और सरस्वती पिहोवा की ही महत्ता है। हरिद्वार में केवल अस्थियां ही प्रवाहित की जा सकती हैं।

महिलाएं भी कर रही पिंडदान
जिन परिवारों में पुरुष नहीं है। किसी के यहां संतान के रूप में इकलौती बेटी है, तो वह अपने पूर्वजों का श्राद्ध करवा सकती है। सरस्वती तीर्थ पर भी अनेक ऐसी महिलाएं आती हैं, जिनके घर में पुरुष नहीं होते। तीर्थ पवित्र गांव जाति से अपने यजमान का पता लगाते हैं। गांव की जाति की बही देखकर पूरे खानदान के नामों का पता चल जाता है। पंजाब के रोपड़ में कईं गांव में ऐसी परंपरा ही बन गई है कि पुरुषों के होने के बावजूद महिलाएं ही श्राद्ध करवाने आती हैं, तो उन्हीं को प्राथमिकता दी जाती है।