छोटी दिवाली को क्यों होती है यमराज और हनुमान जी की पूजा? जानें इसके पीछे क्या है मान्यता

पटना। नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है और इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और हनुमान जी की पूजा की जाती है। दिवाली से एक दिन पहले कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन को छोटी दिवाली, रूप चतुर्दशी और यम दीपावली के नाम से भी पहचाना जाता है। इस दिन शाम को मत्यु के देवता यमराज के नाम से दक्षिण दिशा की ओर मुख करके एक दीपक जलाने की परंपरा है। मान्‍यता है कि ऐसा करने से यमराज प्रसन्‍न होते हैं और लोगों को अकाल मृत्‍यु के भय से छुटकारा मिलता है। ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होकर अपना आशीष परिवार के सभी सदस्यों पर हमेशा बनाए रखते हैं।

मान्यता है कि पितृपक्ष में धरती पर आए पितृ गण इस वक्‍त परलोक लौट रहे होते हैं और दीपक जलाने से उनका मार्ग रोशन होता है, इससेप्रसन्‍न होकर वे अपनी संतान को सुखी और खुशहाल रहने का आशीर्वाद देते हैं। नरक चतुर्दशी को यमराज और बजरंग बली की भी पूजा-अर्चना की जाती हैं। मान्यता है कि आज के दिन ही बजरंग बली का जन्म हुआ था।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन अर्द्धरात्रि में हनुमान जी का जन्म अंजनी माता के गर्भ से हुआ था। यही कारण है कि हर तरह के सुख, आनंद और शांति की प्राप्ति के लिए नरक चतुर्दशी को बजरंग बली की उपासना लाभकारी होती है। इस दिन शरीर पर तिल के तेल का उबटन लगाकर स्नान करते हैं और इसके बाद हनुमान की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हुए उन्हें सिंदूर चढ़ाया जाता है। इस दिन रात को तेल अथवा तिल के तेल के 14 दीपक जलाने की परम्परा है।

छोटी दिवाली के दिन घर के नरक यानी गंदगी को साफ किया जाता है। जहां सुंदर और स्वच्छ प्रवास होता है, वहां लक्ष्मी जी अपने कुल के साथ आगमन करती हैं। नरक चतुर्दशी को लोग यमराज की पूजा कर अपने परिवार वालों के लिए नरक निवारण की प्रार्थना करते हैं। साथ ही गलतियों से बचने के लिए उनसे माफी मांगी जाती है। नरक चतुर्दशी को मुक्ति पाने वाला पर्व भी कहा जाता है। इस दिन लंबी आयु के लिए घर के बाहर यम का दीपक जलाने की परंपरा है। आज की रात जब घर के सभी सदस्य आ जाते हैं तो गृहस्वामी यम के नाम का दीपक जलाते हैं।

कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जलाकर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे लेकर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दीये को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमाकर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं।

धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिककृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरकासुर नाम के असुर का वध किया। नरकासुर ने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना रखा था। नरकासुर का वध करके श्री कृष्ण ने कन्याओं को बंधन मुक्त करवाया। नरकासुर का वध और 16 हजार कन्याओं के बंधन मुक्त होने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई। इस दिन दीयों की बारात भी सजाई जाती है।