अमरीका-कनाडा में उग्रवादियों को संरक्षण

भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक सैयद गुलाम नबी फाई ने अमेरिका में कश्मीर अमेरिकी परिषद बना रखी थी। वह भारत विरोधी प्रचार करता है…

अमेरिका का एक नागरिक गुरपतवन्त पन्नू लम्बे अरसे से वहीं बैठ कर भारत में आतंकवादी गतिविधियों को विविध तरीकों से संचालित करने में लगा हुआ है। उसे अमेरिका और कनाडा दोनों ने ही अपने अपने देशों की नागरिकता दे रखी है। ऐसा भी कहा जाता है कि दोनों देशों की सरकारें उसे संरक्षण भी देती हैं। वह कनाडा के नागरिकों को साथ लेकर जनमत संग्रह करवा रहा है कि भारत को विभाजित करके क्या पाकिस्तान की तरह एक और नए देश का निर्माण किया जाना चाहिए या नहीं? इस काम के लिए कनाडा की सरकार उसकी प्रत्यक्ष परोक्ष सहायता करती है। यह कुछ इसी प्रकार का मामला है कि भारत कि कोई संस्था भारतीय नागरिकों से जनमत संग्रह करवाना शुरू कर दे कि टरांटो को कनाडा से अलग कर नया देश बनाना चाहिए या फिर कैलिफोर्निया को यूएसए से अलग कर नया देश बनाना चाहिए या नहीं? इस जनमत संग्रह में यदि भारत सरकार परोक्ष रूप से भी सहायता करना शुरू कर दे तो कनाडा या यूएसए इसको किस लिहाज से देखेंगे? पन्नू के खिलाफ भारत में आपराधिक मामले लम्बित हैं। पिछले कुछ दिनों से वह लोगों को धमकी दे रहा है कि वे एअर एंडिया से यात्रा न करें, इससे उनकी जान खतरे में पड़ जाएगी। इस प्रकार का एक कांड पहले हो भी चुका है जब कनाडा से भारत को आ रहा एयर इंडिया का एक जहाज कनाडा के आतंकवादियों ने आसमान में ही बम विस्फोट से उड़ा दिया था जिसमें 380 यात्री मारे गए थे। ऐसा माना जाता है कि कनाडा सरकार ने जांच में अपराधियों की मदद ज्यादा की, उन्हें कटघरे में खड़ा करने में कम रुचि ली।

अब पन्नू की इसी प्रकार की नई धमकियां आने पर पुराने रिकार्ड को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने केस दर्ज कर जांच शुरू की तो अमेरिका के एक अखबार ने अपने विश्वस्त सूत्रों के हवाले से खबर छापी है कि अमेरिका के एक अलगाववादी आतंकवादी गुरपतवन्त सिंह पन्नू को मारने की भारत की एक साजिश को नाकाम कर दिया। अखबार के अनुसार यह साजिश जून महीने में नाकाम की गई थी और न्यूयार्क के एक न्यायालय में इस संबंधी एक केस भी दर्ज है। उसने यह भी ख़ुलासा किया कि अपराधी देश से बाहर चला गया है। आरोप लगभग वैसे ही हैं जैसे कुछ समय पहले कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने किसी निज्जर की हत्या को लेकर भारत पर लगाए थे। अन्तर केवल इतना ही है कि निज्जर के बारे में आरोप कनाडा के प्रधानमंत्री ने स्वयं लगाए, लेकिन अमेरिका ने इसके लिए एक अखबार को माध्यम बनाया। दोनों मामलों में निरन्तरता को ध्यान में रख लेना चाहिए। वैसे कनाडा का यह भी कहना है कि निज्जर की हत्या में भारत की तथाकथित संलिप्तता के सबूत उन्हें भी अमेरिका में ही मुहैया करवाए थे। यह अलग बात है कि लाख कहने पर भी कनाडा सरकार वे सबूत भारत सरकार को नहीं दे रही ताकि भारत उसकी जांच करवा सके। लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि एयर इंडिया को लेकर धमकियां देने वाले पन्नू के पक्ष में अमेरिका सरकार अचानक उतनी उतावली क्यों हो गई है? पन्नू की हत्या की तथाकथित साजिश को नाकाम कर देने वाला मामला जो उनके अनुसार जून का है, अचानक एक अखबार के माध्यम से नवम्बर में सार्वजनिक करने की जरूरत वाशिंगटन को क्यों पड़ी? अब यह रहस्य किसी से छिपा नहीं है कि भारत में अलगाववादी व आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त कुछ लोगों को कनाडा व यूएसए सरकार अपने देश की नागरिकता प्रदान कर उनका संरक्षण करती है।

जैसे ही अमेरिका को आभास हुआ कि भारत सरकार अपने यहां के आपराधिक मामलों के लिए पन्नू के प्रत्यर्पण की मांग कर सकती है, उसने तुरन्त अपने यहां के न्यायालय में पन्नू का तथाकथित हत्या की साजिश का मामला दर्ज कर भारत को ही दोषी ठहराने का काम शुरू कर दिया। कचहरी में जो मुक़द्दमा दर्ज किया गया है कि किसी गुप्ता ने पन्नू को मारने के लिए अमेरिका में किसी भाड़े के हत्यारे को पैसे दिए। लेकिन वह भाड़े का हत्यारा अमेरिका की पुलिस का ही आदमी था। उसने पुलिस को बता कर हत्या की यह योजना फेल कर दी। इस सारी तिलस्मी कथा से यह तो पता चल ही गया है कि पन्नू को अमेरिका और कनाडा सरकार पाल रही है और वह इन्हीं सरकारों के कहने पर भारत विरोधी गतिविधियों का संचालन करता है। यह सारा मामला कुछ कुछ सैयद गुलाम नबी फाई जैसा बनता जा रहा है। पाठकों को ध्यान में ही होगा कि भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक सैयद गुलाम नबी फाई ने अमेरिका में कश्मीर अमेरिकी परिषद बना रखी थी। वह इसके माध्यम से कश्मीर को लेकर भारत विरोधी प्रचार में लगा रहता था। उसके सेमिनारों में भारत के भी कुछ ख्याति प्राप्त पत्रकार जोश खरोश से हिस्सा लिया करते थे। फाई को और उसकी परिषद को अमेरिका सरकार का पूरा संरक्षण प्राप्त था। लेकिन इसके साथ ही उसे पाकिस्तान सरकार से भी सहायता मिलती थी। अमेरिका की सरकार के लिए यह कोई रहस्य नहीं था। कश्मीर के मामले में उस समय अमेरिका भी पाकिस्तान के साथ ही था। भारत सरकार का मानना था कि फाई कश्मीर में आतंकी गतिविधियों का भी संचालन करता है। अमेरिका सरकार को लगा कि भारत अमेरिका से से फाई के प्रत्यर्पण की मांग कर सकता है ताकि उसकी जांच की जा सके। ऐसी स्थिति में अमेरिका के लिए अपना बचाव करना मुश्किल हो जाता। इसलिए अमेरिका ने आनन-फानन में फाई को गिरफ्तार कर लिया। उस पर अमेरिका की राजनीति को प्रभावित करने के लिए पाकिस्तान से पैसे लेने के आरोप लगाए। एक आरोप यह भी लगाया कि वह पीएचडी नहीं है, लेकिन उसके बावजूद अपने नाम के आगे डाक्टर लिखता है।

कचहरी ने उसे अपने घर में ही रहने की शर्त पर जमानत दे दी। फाई ने तुरन्त सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया। उसे कुछ साल की सजा हुई। लेकिन उसे सजा काटनी नहीं पड़ी। सरकार ने न्यायालय में कहा कि उसने घर में रहकर जो सजा काटी है वह भी उसे दी कुल सजा में से निकाल दी जाए। स्वाभाविक ही न्यायालय ने यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसके बाद सरकार ने कहा कि फाई ने जांच में जरूरत से भी ज्यादा सहयोग किया है, इसलिए उसकी सजा और कम कर दी जाए। कि़स्सा कोताह यह कि सैयद गुलाम नबी फाई को कुल मिला कर सोलह महीने सजा काटनी पड़ी, उसमें वे महीने भी शामिल थे जो उसने जमानत मिलने पर घर में रह कर काटे थे। जेल से बाहर निकल कर वह एक बार फिर कश्मीर को लेकर भारत विरोधी कामों में जुट गया था। लगभग वही तकनीक कनाडा और अमेरिका एक बार फिर भारत विरोधी आतंकवादियों को पालने पोसने और क़ानून के अनुसार भारत में दी जाने वाली सजा से बचाने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। गुरपतवन्त पन्नू का मामला कुछ इसी प्रकार का मालूम हो रहा है। भारत ने भी इस पूरे प्रकरण में जांच शुरू कर दी है। लेकिन दुर्भाग्य है कि कनाडा इसमें सहयोग नहीं दे रहा है। कहा जाता है कि अमेरिका इसमें सहयोग करने के लिए तैयार है, लेकिन पन्नू की गतिविधियों की कितनी जानकारी वह भारत को मुहैया करवाएगा, इसकी प्रतीक्षा करनी होगी।

परन्तु इसे संयोग ही कहना चाहिए कि जिस समय अमेरिका भारत पर आरोप लगा रहा था कि पन्नू को मारने की साजिश में भारत का कोई अनाम अधिकारी भी शामिल था, उसी समय उत्तरी कोरिया ने काफी गम्भीरता से कहा कि अमेरिका उसके राष्ट्रपति की हत्या की साजिश रच रहा है। यह भी संयोग ही कहा जाएगा कि पन्नू की हत्या की साजिश की सूचना भी एक अखबार के माध्यम से ही लीक की गई और किम योंग को अमेरिका द्वारा मारने की कोशिश की सूचना भी एक अखबार दि डेली बीस्ट ने ही सार्वजनिक की। पन्नू के मामले में तो अनाम भारतीय अधिकारी लिख कर अमेरिका कहानी लिख रहा है, लेकिन किम योंग की हत्या की साजिश में शामिल अमेरिकी अनाम तो नहीं हो सकता। कम से कम जो बाईडेन को तो उसका नाम पता ही होगा।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेल:kuldeepagnihotri@gmail.com