अब ईवीएम पर घमासान

पीके खुराना

( पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं )

ईवीएम मशीन को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। मायावाती, केजरीवाल और कांग्रेस के विभिन्न नेताओं ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाए हैं। मायावती ने सबसे पहले बयान दिया कि उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भाजपा कैसे जीती, जबकि उसने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दी थी और मुसलमान भाजपा से या तो नाराज हैं या डरे हुए हैं। केजरीवाल ने कहा है कि पंजाब में कई बूथों पर जहां उसके मतदाताओं की संख्या बीस से भी अधिक है, उसे सिर्फ दो या तीन मत मिलना कैसे संभव है…

चुनाव खत्म हो गए, पर शोर-शराबा जारी है। कोई जीत का जश्न मना रहा है, कोई उदासी के अंधेरों में घिरा बैठा है और कोई हार पर खिसियाया हुआ है। इसी बीच करारी हार का एक खलनायक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम को भी बनाया जा रहा है। यह कहा जा रहा है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में गड़बड़ी की गई है और उसके कारण किसी एक दल के वोट किसी दूसरे दल में चले गए। यह भी कहा जा रहा है कि किसी एक बूथ पर मतदान की संख्या से अधिक मत पाए गए हैं, तो ऐसा क्यों हुआ? ईवीएम को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। मायावाती, केजरीवाल और कांग्रेस के विभिन्न नेताओं ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाए हैं। मायावती ने सबसे पहले बयान दिया कि उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भाजपा कैसे जीती, जबकि उसने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दी थी और मुसलमान भाजपा से या तो नाराज हैं या डरे हुए हैं। केजरीवाल ने कहा है कि पंजाब में कई बूथों पर जहां उसके मतदाताओं की संख्या बीस से भी अधिक है, उसे सिर्फ दो या तीन मत मिलना कैसे संभव है? जहां मायावती और कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं, वहीं अरविंद केजरीवाल ने गड़बड़ी के आरोप लगाने के साथ-साथ ईवीएम के साथ वीवीपैट सिस्टम (वोटर-वेरिफाइड पेपर आडिट ट्रेल) लगाने की मांग की है। दिल्ली में कांग्रेस के नेता अजय माकन ने तो यह भी कह दिया है कि अगले माह दिल्ली में होने वाले महानगरपालिका चुनावों में ईवीएम के बजाय पेपर बैलेट का प्रयोग होना चाहिए। भारतवर्ष में चुनावों में ईवीएम का प्रयोग सन् 1999 के चुनावों से आरंभ हुआ। इससे वोटों की गिनती में न केवल आसानी होती है, बल्कि समय भी बहुत कम लगता है। लेकिन समय-समय पर इसकी कारगुजारी और विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं। सत्ता में आने से पहले बहुत से भाजपा नेताओं ने भी इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं।

इस सिलसिले में दिल्ली उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न राजनीतिक दलों की मांग को स्वीकार करते हुए आदेश दिया था कि हर ईवीएम के साथ एक पिं्रटर लगाया जाए, ताकि मतदाता अपने मत के सही प्रयोग के बारे में आश्वस्त हो सके। वोटर-वेरिफाइड पेपर आडिट ट्रेल यानी वीवीपैट कहे जाने वाले इस प्रबंधन को सन् 2014 के मतदान के समय एक प्रयोग के रूप में आठ संसदीय चुनाव क्षेत्रों में लागू भी किया गया था। अब कांग्रेस ने दोबारा से पेपर बैलेट के प्रयोग की मांग की है, जबकि केजरीवाल ने कहीं ज्यादा तर्कसंगत होते हुए यह कहा है कि पांच राज्यों के हालिया विधानसभा चुनावों में ईवीएम के प्रयोग पर शंकाएं उठी हैं। हालांकि अब इन नतीजों को रद्द करना या दोबारा चुनाव करवाना संभव नहीं है। ऐसे में हुए ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका के मद्देनज़र चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ईवीएम पर मतदाताओं का विश्वास बरकरार रहे और इसके साथ वीवीपैट सिस्टम लागू किया जाए। यह सच है कि ईवीएम से छेड़छाड़ संभव है, क्योंकि इस बीच अमरीका में मिशिगन विश्वविद्यालय के कुछ शोधकर्ताओं ने भारतीय इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को ‘हैक’ करने का तरीका खोज निकाला है और यह दावा किया है कि इससे मतदान के परिणाम को प्रभावित किया जा सकता है। इन शोधकर्ताओं ने पहले एक ईवीएम के साथ अपना बनाया एक उपकरण जोड़ दिया और फिर एक मोबाइल फोन से ईवीएम को संदेश भेजकर मतदान के परिणाम में सेंध लगा ली। भारतीय चुनाव आयोग के अधिकारियों ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि ऐसा इसलिए संभव नहीं है, क्योंकि मतदान आरंभ होने से पहले उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों को हर मशीन दिखाई जाती है और वे इस पर अपनी मुहर भी लगा सकते हैं, ताकि बाद में गड़बड़ी की आशंका न रहे।

इंटरनेट विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं कि वोटिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ये मशीनें इंटरनेट से कनेक्टेड नहीं होतीं। लिहाजा इसमें किसी साइबर क्राइम की कोई तरकीब काम नही करेगी, लेकिन इसमें गड़बड़ी की संभावना को नकारा नही जा सकता, क्योंकि हर ईवीएम एक तरह का कम्प्यूटर ही है और काउंटिंग के दौरान या पहले इसके लागरिद्म या मैकेनिज्म को छेड़ा जा सकता है।  चूंकि यह एक स्टैंड-अलोन मशीन है, अतः इसमें छेड़छाड़ के लिए एक-एक मशीन से अलग-अलग छेड़छाड़ करनी पड़ेगी। दुग्गल का मानना है कि अभी तक भारत में सफल तौर पर चल रही ये वोटिंग मशीनें सुरक्षित हैं, लेकिन फिर भी साइबर सुरक्षा नीति के मद्देनजर इसकी सुरक्षा परतों पर दोबारा विचार करने में कोई बुराई नहीं है। भारतीय लोकतंत्र की बहुत सी रिवायतों पर बहुत से सवाल उठाए जाते रहे हैं। उसके बावजूद कांग्रेस की यह मांग कि अगले माह दिल्ली में होने वाले महानगर पालिका चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के बजाय पेपर बैलेट का प्रयोग किया जाए, सही नहीं है। समय की सूइयों को वापस मोड़ना संभव नहीं है, उचित भी नहीं है। इस चुनाव में भी पंजाब में जहां सत्तासीन अकाली-भाजपा गठबंधन को हराकर कांग्रेस एक दशक बाद सत्ता में लौटी है और गोवा में भी वह अकेले सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में उभरी है। यह हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली की मजबूती और सफलता का प्रमाण है।

लेकिन यह कहने में भी कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि लोकतंत्र से जुड़ी हर प्रक्रिया में तकनीक पर आधारित वैज्ञानिक उपकरणों का अधिकतम प्रयोग अंततः पारदर्शिता लाने में सफल होगा तथा लाभदायक ही होगा। हां, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यदि किसी उपकरण में कोई कमी है तो उसमें तुरंत सुधार किया जाए। लोकतंत्र की सफलता में पारदर्शिता और विश्वसनीयता बरकरार रखना मूलभूत शर्त है। ऐसे में यदि कहीं कोई शक है या शक की गुंजाइश है, तो उसे दूर किया ही जाना चाहिए। अरविंद केजरीवाल का यह मत अतर्कसंगत नहीं है कि पारदर्शिता बरकरार रखने के लिए ईवीएम के साथ वीवीपैट सिस्टम लागू किया जाए, ताकि मतदान में गड़बड़ी की आशंका न रहे। ऐसी किसी मांग को हार की खीझ के साथ जोड़कर देखने के बजाय खुले दिमाग से यह सोचना चाहिए कि मतदाताओं का मत सर्वोपरि है और मतदान की किसी भी गड़बड़ी या गड़बड़ी आशंका की रोकथाम लोकतंत्र के ही हित में है। इसका किसी धर्म, समाज, संप्रदाय या राजनीतिक दल से कोई लेना-देना नहीं है। चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना ही चाहिए कि ईवीएम में कोई गड़बड़ी न की जा सके और इसके लिए जो भी कदम उठाने आवश्यक हों, उठाए जाएं। आशा की जानी चाहिए कि चुनाव आयोग इस ओर जल्दी ध्यान देगा।

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