बेलगाम सत्ता पर लगे विपक्ष की नकेल

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

यह अत्यंत खेद की बात है कि प्रधानमंत्री के विरोध को देशद्रोह का दर्जा दिया जाने लगा है। सरकार की यह मनमानी इसलिए चल रही है कि देश में प्रभावी विपक्ष नहीं है। सत्ता में भाजपा हो, कांग्रेस हो या कोई अन्य दल हो, मजबूत विपक्ष ही यह सुनिश्चित कर सकता है कि सरकार की गलत नीतियों की पोल खुलती रहे, सरकार की मनमानी न चल पाए और लोकतंत्र सही अर्थों में लोकतंत्र बने…

राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष हो गए हैं और 16 दिसंबर को वह औपचारिक रूप से अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाल लेंगे। जब तक आप यह लेख पढ़ रहे होंगे, तब तक गुजरात में दूसरे चरण का मतदान आरंभ हो चुका होगा या आरंभ होने वाला होगा। उसके बाद अगले दो दिनों में गुजरात और हिमाचल प्रदेश की विधानसभा चुनावों का परिणाम भी आ जाएगा। तब पता चलेगा कि हवा का रुख किस ओर है। अपने नए अवतार में राहुल गांधी ने कुछ करिश्मा दिखाया है या सारे जोड़-तोड़ के बावजूद मोदी ही भारी पड़े हैं। दोनों विधानसभा चुनावों के परिणाम के बारे में टिप्पणी किए बिना भी यह तो कहा ही जा सकता है कि देश को मजबूत विपक्ष की आवश्यकता है। सरकार किसी भी दल की हो, विपक्ष में कोई भी दल हो, विपक्ष मजबूत होना ही चाहिए। गुजरात में राहुल गांधी को मिला समर्थन यह उम्मीद अवश्य जगाता है विपक्ष को कितना ही कमजोर मान लिया जाए, उसे खत्म नहीं किया जा सकता।

हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनावों की बात करें, तो हमें कुछ अन्य तथ्यों की ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। पहले तो चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनावों की तिथियां अलग-अलग कर दीं, जिससे भाजपा को ऐसी बढ़त मिली जिसे अंग्रेजी में ‘अनफेयर एडवांटेज’ कहा जाता है। जी हां, यह वस्तुतः एक अन्यायपूर्ण लाभ था जो भाजपा को दिया गया।

चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों का परिणाम घोषित कर दिया, जबकि हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम गुजरात विधानसभा चुनाव परिणाम के साथ ही 18 दिसंबर को घोषित किए जाएंगे। चुनाव आयोग का यह दोहरा रवैया सबकी समझ से बाहर है। भाजपा सत्ता में है और प्रधानमंत्री के पास नई योजनाओं की घोषणा करने का पूरा अधिकार है। प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव आयोग को प्रभावित करके यह लाभ लिया और गुजरात की जनता को लुभाने का हरसंभव प्रयत्न किया, परंतु वह यह भूल गए कि केवल गुजरात ही ऐसा प्रदेश था जहां जीएसटी का सर्वाधिक प्रबल और सक्रिय विरोध हुआ। इसी तरह विभिन्न आंदोलनों से उभरकर तीन युवा हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर ने भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाई। नोटबंदी और जीएसटी के अलावा निजीकरण के कारण अस्पतालों और शिक्षा संस्थानों के बढ़ते खर्च ने गुजरात की जनता को परेशान कर रखा है। गुजरात की जनता में अलग-अलग कारणों से नाराजगी स्पष्ट है। राहुल गांधी के नए अंदाज के भाषण और चुटीले ट्वीट भी जनता को प्रभावित न करते, या शायद इस हद तक प्रभावित न करते यदि जनता में भाजपा के प्रति नाराजगी न होती। गुजरात चुनावों में भाजपा का पसीना छुड़वाने में राहुल के करिश्मे से भी ज्यादा बड़ी भूमिका वहां की जनता की है, जिसने जता दिया कि गुजरात में विकास पागल हो गया है।

जिस प्रकार चुनाव आयोग ने भाजपा को अनफेयर एडवांटेज दिया, वैसे ही मीडिया ने भी चाहे-अनचाहे भाजपा को एक अनफेयर एडवांटेज दे दिया। उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में 16 में से 14 जगहों पर महापौर पद के लिए भाजपा के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। यह एक बड़ी जीत थी, लेकिन सच यह भी है कि इन्हीं चुनावों में मार्च, 2017 के मुकाबले भाजपा का वोट प्रतिशत 10 अंक गिर गया। दोयम दर्जे के शहरों में तो यह गिरावट 30 प्रतिशत के लगभग रही। यही नहीं, इन्हीं चुनावों में भाजपा के लगभग 45 प्रतिशत उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। इस सबके बावजूद पूरे मीडिया की ओर से सिर्फ मेयर की जीत का ही ढिंढोरा पीटा जाता रहा, जिससे गुजरात में भाजपा को एक और बढ़त का अवसर मिला। अब यदि हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भाजपा की भारी विजय होती है तो प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा प्रवक्ताओं को फिर से यह कहने का मौका मिल जाएगा कि जनता ने नोटबंदी और जीएसटी को स्वीकार कर लिया है। यही नहीं, वे यह भी कह सकेंगे कि हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश का शोर सिर्फ शोर था, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण को लेकर बताई जा रही नाराजगी फर्जी थी और भाजपा की नीतियां देश के विकास में सहायक हैं तथा विपक्ष का सारा प्रचार झूठ पर आधारित है और उनके झूठ की कलई खुल गई है। विपक्ष की मजबूती इसलिए आवश्यक है, ताकि कोई भी सरकार लापरवाह न हो सके या तानाशाह न बन सके। समस्या यह है कि इस समय मोदी के सितारे बुलंदी पर हैं और वे सत्ता में बने रहने के लिए चुपचाप विभिन्न संस्थाओं का गला घोंटते चल रहे हैं। गुजरात चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए पाकिस्तान का जिक्र करके उन्होंने अपने एक दुश्मन को देश की राजनीति में दखल देने का मौका दे दिया। किसी प्रधानमंत्री द्वारा ऐसा कुकृत्य पहली बार हुआ है। मोदी ने भाजपा को डरा रखा है, समाज को डरा रखा है, मीडिया को डरा रखा है और वह जजों को डराने की फिराक में हैं। कोई उन पर सवाल नहीं कर सकता और पत्रकारों के सवालों से बचने के लिए वह आज तक प्रेस कान्फ्रेंस करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं, जबकि उनके लिए मन की बात बताने का समय हमेशा होता है। नोटबंदी और जीएसटी ही नहीं, एक योजना के तहत उन्होंने पांच बैंकों का विलय भारतीय स्टेट बैंक में किया। वह बैंकों का घाटा पूरा करने के लिए बेल-इन का प्रावधान लाने जा रहे हैं, जिसमें जमाकर्ताओं के धन की सुरक्षा खत्म हो जाएगी। यही नहीं, भारतीय स्टेट बैंक और रिलायंस इंडस्ट्रीज की भागीदारी में रिलायंस पेमेंट बैंक की स्थापना के रास्ते खोले और यह बैंक इसी माह कामकाज शुरू कर सकता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय स्टेट बैंक अकेला ऐसा बैंक है, जो विश्व के 50 सबसे बड़े बैंकों में शामिल है और यह देश का अकेला बैंक है जो फारच्यून 500 कंपनियों में शामिल है। इस बैंक में रिलायंस की भागीदारी की शुरुआत करके वास्तव में भारत सरकार ने यह बैंक रिलायंस को सौंपने के रास्ते खोल दिए हैं।

यह कोई रहस्य नहीं है कि मोदी की दोस्ती के कारण अंबानी और अदानी के कारोबार में जबरदस्त वृद्धि हुई है और पब्लिक सेक्टर की बीएचईएल तथा बीईएल जैसी नामी संस्थाओं के हितों पर चोट की गई है। मजे की बात यह है कि उसके बावजूद मोदी और भाजपा देशभक्त हैं और उनकी किसी भी बात से असहमत होने वाले या विरोध करने वाले देशद्रोही। यह अत्यंत खेद की बात है कि प्रधानमंत्री के विरोध को देशद्रोह का दर्जा दिया जाने लगा है। सरकार की यह मनमानी इसलिए चल रही है कि देश में प्रभावी विपक्ष नहीं है। सत्ता में भाजपा हो, कांग्रेस हो या कोई अन्य दल हो, मजबूत विपक्ष ही यह सुनिश्चित कर सकता है कि सरकार की गलत नीतियों की पोल खुलती रहे, सरकार की मनमानी न चल पाए और लोकतंत्र सही अर्थों में लोकतंत्र बने।

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