निवेश आकर्षण बनाम रोजगार सृजन

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

यह सही है कि यदि चपड़ासी के कुछ पदों के लिए हजारों युवक इच्छुक हों तो यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। ऐसा क्यों है कि चपड़ासी के पद के लिए बेकरार उच्च शिक्षित युवा मेहनत का कोई और काम करने से कतराएं? दरअसल, हमारी मानसिकता ही गलत है। हमारी शिक्षा हमें श्रम का महत्त्व नहीं सिखाती। हमारी शिक्षा हमें श्रम को सम्मान देना नहीं सिखाती। इसी तरह हमारी शिक्षा हमें धन से धन कमाने की शिक्षा नहीं देती…

मोदी सरकार ने एफडीआई के मामले में एक बड़ा यू-टर्न लेते हुए सिंगल ब्रांड रिटेल में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दे दी है। विदेश के हर दौरे के समय मोदी निवेशकों को भारतवर्ष में निवेश का निमंत्रण देते हैं और उनके लिए रेड कार्पेट बिछाने का वादा करते हैं। यह उनकी बड़ी सफलता है कि देश में लगातार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का पैसा आ रहा है। सेवा क्षेत्र में तो एफडीआई का प्रभाव साफ-साफ नजर आता है, जहां 139 अरब डालर के कुल विदेशी निवेश में से अकेले इसी सेक्टर में 23 अरब डालर का निवेश आया है। उल्लेखनीय है कि 370 अरब डालर के विदेशी मुद्रा भंडार के साथ हम आरामदेह स्थिति में हैं।

विपक्ष में रहते हुए मोदी मनरेगा का विरोध करते थे, एफडीआई का विरोध करते थे, महंगाई दूर करने की बात करते थे, हर साल दो करोड़ युवकों को रोजगार देने की वकालत करते थे। वे सब अब पुरानी बातें हैं। प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने कांग्रेस से भी एक कदम आगे बढ़कर सिंगल ब्रांड रिटेल में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति की घोषणा की है, जबकि कांग्रेस के समय में यह सीमा 49 प्रतिशत थी। हमें यह समझना होगा कि विदेशी धन का अत्यधिक निवेश दोधारी तलवार है। एक तरफ तो इससे बड़े-बड़े उद्योग लगना संभव होता है, विकसित तकनीक का प्रयोग संभव होता है, कुछ लोगों के लिए ऊंची नौकरियों का संयोग बनता है, ग्राहकों को उच्च गुणवत्ता का सामान मिलता है और कुछ मामलों में ग्राहक को सस्ता सामान भी उपलब्ध होता है। लेकिन बड़े उद्योगों और व्यवसाय के बड़े फॉर्मेट का नुकसान इस रूप में भी दिखाई देता है कि छोटे और पारंपरिक व्यावसायियों के लिए व्यवसाय अलाभप्रद होता जा रहा है और बहुत से परिवार इसलिए बेरोजगार हो जाते हैं क्योंकि वे वॉलमार्ट जैसे बड़े फार्मेट वाले व्यवसाय का मुकाबला नहीं कर पाते।

सिंगल रिटेल ब्रांड में शत-प्रतिशत विदेशी निवेश कोई अच्छा फैसला नहीं है। भविष्य में यह बहुत खतरनाक सिद्ध हो सकता है। इसके बजाय सरकार को प्रवासी भारतीयों द्वारा विभिन्न भारतीय उद्योगों और उद्यमों में धन के निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिए और उसके लिए नियमों को आसान बनाना चाहिए, ताकि देश में विदेशी मुद्रा भी आए और निवेश करने वाले तथा निवेश स्वीकार करने वाले दोनों पक्ष भारतीय हों तो दोनों पक्षों की पहली निष्ठा देश के प्रति होने की संभावनाएं होंगी। फिलहाल इस तरह के निवेश में कई सरकारी अड़चनें हैं, टैक्स है और इनमें सुधार की बहुत गुंजाइश है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एक बड़ी टैक्सटाइल मिल लगने से अगर कुछ सौ लोगों को रोजगार मिलता है तो हथकरघा उद्योग में लगे कितने परिवार बेरोजगार हो जाते हैं। इस प्रकार जहां एक छोटी मात्रा में नए रोजगार पैदा हो रहे हैं, वहीं बहुत बड़ी संख्या में रोजगार में लगे लोगों का रोजगार छिन भी रहा है और यह हर सेक्टर में हो रहा है। दुख की बात यह है कि विदेशी निवेश के अनियंत्रित आगमन से स्वरोजगार में लगे बहुत से लोग मजदूरी करने को विवश हुए हैं। सरकार को इस बात में फर्क करना चाहिए कि किन उद्योगों में तकनीक आवश्यक है और दूसरे कौन से ऐसे उद्योग हैं जो श्रम पैदा करने वाले हैं। इसी तरह बाजार में उत्पादों के बीच अंतर करने की जरूरत है यानी मशीनों द्वारा बने माल और हाथ से तैयार माल पर टैक्स में अंतर होना चाहिए, ताकि लघु उद्योगों पर मार न पड़े। लब्बोलुआब यह कि विदेशी निवेश से पहले उद्योगों में रोजगार का ऑडिट आवश्यक है, तभी हम किसी सही निर्णय पर पहुंच सकेंगे।

सन् 2017-18 के बजट में मोदी सरकार ने मनरेगा के लिए आबंटन में भी 11 हजार करोड़ रुपए का इजाफा किया है और अब इसकी कुल धनराशि 48 हजार करोड़ रुपए हो गई है। मनरेगा के लिए यह अब तक का सबसे बड़ा आबंटन था। मनरेगा के अलावा मोदी सरकार ने रोजगार सृजन की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है, जिसकी चर्चा की जा सके, लेकिन यह मानने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि वर्तमान सरकार ने मनरेगा को लेकर दो बहुत अच्छे कदम उठाए हैं। पहला तो यह कि मनरेगा को आधार कार्ड से जोड़ दिया गया है। इससे लाभार्थियों की सही पहचान हो सकना संभव हो गया है और रोजगार के झूठे आंकड़ों पर अंकुश लगा है। दूसरा कदम यह है कि मनरेगा के तहत काम करने वाले लाभार्थियों के लिए प्रशिक्षण का प्रबंध किया गया है, ताकि काम सही समय पर हो, उनके काम की गुणवत्ता सुधरे और उनके लिए बेहतर रोजगार के अवसर संभव हो सकें। इसके साथ ही इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि विपक्ष में रहते हुए मोदी जहां हर साल दो करोड़ युवाओं को नौकरी देने की बात करते थे वह आंकड़ा कुछ लाखों तक ही सीमित रहा है। यही नहीं, मोदी सरकार के पास नए रोजगार के अवसरों के सृजन की कोई योजना भी नहीं है। क्या रोजगार के नए अवसर चूक गए हैं? क्या सरकार रोजगार दे सकती है? ऐसा क्यों है कि हम रोजगार के वांछित अवसर पैदा नहीं कर पा रहे हैं? क्या नौकरी ही रोजगार है? क्या नौकरी ही रोजगार का एकमात्र साधन है? क्या हमारे पास कुछ और विकल्प हैं? आज हमें ऐसे ज्वलंत प्रश्नों का उत्तर खोजने की आवश्यकता है।

रोजगार के नए अवसर कभी नहीं चूकते। जब आबादी बढ़ रही है, खरीददार बढ़ रहे हैं, मध्यम वर्ग संपन्नता की ओर बढ़ता दिख रहा है तो रोजगार के अवसरों की कमी होना संभव नहीं है, लेकिन हमें यह समझना होगा कि सरकार का काम नौकरी देना नहीं है। सरकारी नौकरियां सीमित होती हैं और हमेशा सीमित ही रहेंगी। नौकरी देना सरकार का काम नहीं है। हां, सरकार ऐसे नियम-कानून बना सकती है और ऐसा माहौल बना सकती है या ऐसी सुविधाएं दे सकती है, ताकि रोजगार के अवसर फलें-फूलें। यही नहीं, सिर्फ नौकरी को ही रोजगार का अवसर मान लेना भी भूल है। नौकरी, रोजगार का एक प्रकार है, रोजगार का एकमात्र साधन नहीं। कृषि, उद्यम, व्यापार ही नहीं, मजदूरी भी रोजगार के साधन हैं और इन्हें भी उसी सम्मान से देखा जाना चाहिए। हमारे देश में श्रम और श्रमिक को वैसा सम्मान नहीं दिया जाता, जैसा कि होना चाहिए।

यह सही है कि यदि चपड़ासी के कुछ पदों के लिए हजारों युवक इच्छुक हों तो यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। ऐसा क्यों है कि चपड़ासी के पद के लिए बेकरार उच्च शिक्षित युवा मेहनत का कोई और काम करने से कतराएं? दरअसल, हमारी मानसिकता ही गलत है। हमारी शिक्षा हमें श्रम का महत्त्व नहीं सिखाती। हमारी शिक्षा हमें श्रम को सम्मान देना नहीं सिखाती। इसी तरह हमारी शिक्षा हमें धन से धन कमाने की शिक्षा नहीं देती। नया बजट अब आ रहा है। यह देखना रुचिकर होगा कि मोदी-जेटली की जोड़ी इसे चुनाव के लिहाज से नारेबाजी वाला बजट बनाती है या फिर सचमुच देश के लिए दूरगामी अच्छाइयों वाला बजट बनाती है। इस जोड़ी के नजरिए पर निर्भर करेगा कि आने वाले समय में देश की अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा क्या होगी।

ई-मेल : indiatotal.features@gmail.com