षड्यंत्र की रणनीति का नया दौर

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

भाजपा में जहां किसी को मनमर्जी से कुछ भी बोलने की इजाजत नहीं है, वहां अब ऐसा क्यों होने लगा है? तो जवाब यह है कि यह भाजपा की रणनीति का हिस्सा है कि बेतुके लेकिन संवेदनशील मुद्दों या नीतिगत विषयों से संबंधित ऊल-जलूल बयान उछाले जाएं। मोदी जानते हैं कि टीआरपी का भूखा मीडिया इन बयानों को तुरंत लपक लेता है। परिणाम यह होता है कि वास्तविक मुद्दे पीछे हो जाते हैं। मीडिया और जनता गैरजरूरी सवालों से सिर टकराने लग जाते हैं। जनहित के मुद्दों पर सरकार अपनी जवाबदेही से बच जाती है…

आज का युग महाज्ञानी राजनीतिज्ञों का युग है। इनके सामने वैज्ञानिक, इतिहासविद और विद्वजन सभी नतमस्तक हैं। ये मनमर्जी से पाठ्यक्रम बदल रहे हैं, इतिहास बदल रहे हैं और ऐतिहासिक तथ्यों  पर नित नए, अजीबो-गरीब और बेतुके बयान दे रहे हैं। ये सत्ता में हैं, इसलिए देशभक्त हैं। ये सत्ता में हैं, इसलिए इनके बयान सुर्खियां बन जाते हैं। ये सत्ता में हैं, इसलिए इनके विचारों से असहमत हर व्यक्ति देशद्रोही है। ये सत्ता में हैं, इसलिए इनका दावा है कि जनता ने शेष सब को अस्वीकार किया है। हालांकि ये यह नहीं बताते कि मात्र 30-35  प्रतिशत मत लेकर ही विधायक या सांसद बना जा सकता है, और चुनाव में जीत दर्ज कर चुके उम्मीदवार को भी 65-70 प्रतिशत जनता ने अस्वीकार कर दिया था। ये सत्ता में हैं, इसलिए मनचाहे कानून बना सकते हैं। बड़ी बात यह है कि ये सत्ता में हैं। भाजपा जब से सत्ता में आई है, इस तरह के बयानों का नया दौर शुरू हो गया है, मानों ये राजनीतिज्ञ नहीं बल्कि सर्वज्ञ हैं। ये सब कुछ जानते हैं, या यूं कहिए कि सब कुछ ये ही जानते हैं। इसलिए यह कहना पड़ रहा है कि आज का दौर महाज्ञानी राजनीतिज्ञों का दौर है और उनके षड्यंत्र की रणनीति का नया दौर है। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देव ने महाभारत काल में इंटरनेट और सेटेलाइट होने का बयान देकर, सारे विश्व के वैज्ञानिकों को उनकी औकात बता दी। स्वरोजगार पर नरेंद्र मोदी के बयान को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने नवयुवकों को गाय पालने या पान की दुकान खोलने की राय देकर युवाओं को रोजगार देने के लिए बनी सभी सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों और संस्थाओं की धज्जियां उड़ा दीं। कभी कोई राजनीतिज्ञ किसी मस्जिद को शिवालय बता डालता है, कोई लव-जिहाद का मुद्दा उठाता है, कोई गौरक्षा को लेकर कुछ भी कह डालता है।

कोई सज्जन तो ताजमहल पर ही विवाद खड़ा कर देता है। और यह सब कुछ जनहित में हो रहा है, देशभक्ति से ओत-प्रोत होकर हो रहा है। समस्या यह नहीं है कि इन अनावश्यक मुद्दों पर फालतू के बयान दिए जा रहे हैं। समस्या कुछ और है। समस्या यह है कि ऐसे बेतुके बयानों को बहुत तरजीह दी जा रही है। मीडिया द्वारा इन बयानों को बढ़-चढ़कर प्रकाशित-प्रसारित किया जा रहा है। इन बयानों को लेकर बहस चल रही है। बहस पर फिर आगे बहस चल रही है। यह सिलसिला अनंत है। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्या आप जानते हैं कि भाजपा के छोटे-बड़े नेता ऐसे बयान क्यों दे रहे हैं? इन बेतुके बयानों की एक खासियत है, जो ऐसे सारे बयानों पर लागू होती है। वह खासियत यह है कि इन बयानों से तुरंत विवाद खड़ा हो जाता है। क्योंकि ये बयान अकसर किसी संवेदनशील मुद्दे से संबंधित होते हैं। या वह मुद्दा ऐसा होता है जिसे संवेदनशील बनाया जा सकता है, या फिर ऐसे बयान किसी नीति के बारे में होते हैं। बयान आता है, तो मीडिया सरगर्म हो जाता है। बयान, बयान पर बहस, बहस पर बहस का सिलसिला चल निकलता है। पहला सवाल है कि मीडिया को इससे मिलता क्या है? जवाब सीधा है कि हर विवादास्पद मुद्दा चर्चा का विषय बन जाता है और दर्शकगण या पाठकगण उसमें उलझ जाते हैं।

यह टीआरपी का खेल है। दूसरा सवाल है कि उलटे-सीधे बयान देने वाले राजनेता को इससे क्या हासिल होता है? जवाब यह है कि संबंधित राजनेता को पब्लिसिटी मिलती है। वह राजनेता छोटा हो, तो थोड़ा बड़ा बन जाता है, और बड़ा हो तो और ज्यादा बड़ा हो जाता है। लेकिन तीसरा और सबसे बड़ा सवाल यह है कि भाजपा ऐसा क्यों होने दे रही है? ऐसे बिना सिर-पैर के बयान देने वालों पर कोई अंकुश क्यों नहीं लगता? भाजपा में जहां किसी को मनमर्जी से कुछ भी बोलने की इजाजत नहीं है, वहां अब ऐसा क्यों होने लगा है? तो जवाब यह है कि यह भाजपा की रणनीति का हिस्सा है कि बेतुके लेकिन संवेदनशील मुद्दों या नीतिगत विषयों से संबंधित ऊल-जलूल बयान उछाले जाएं।

मोदी जानते हैं कि टीआरपी का भूखा मीडिया इन बयानों को तुरंत लपक लेता है और उस पर चर्चा आरंभ हो जाती है। परिणाम यह होता है कि वास्तविक संवेदनशील मुद्दे पीछे हो जाते हैं, उनकी अहमियत खत्म हो जाती है, मीडिया और जनता गैरजरूरी सवालों से सिर टकराने लग जाते हैं। जनहित के वास्तविक मुद्दों पर सरकार अपनी जवाबदेही से बच जाती है। यही कारण है कि बयानबाजी की इस कवायद में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव देव या गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी अकेले नहीं हैं, बल्कि इसमें कई केंद्रीय मंत्री, सांसद, विधायक या पार्टी के पदाधिकारी भी शामिल हैं। बिप्लव देव कहते हैं कि महाभारत के समय इंटरनेट जैसी तकनीक थी। फिर उन्होंने सन् 1997 में डायना हेडेन के विश्व सुंदरी बनने पर सवाल किया, इसके बाद उन्होंने मेकेनिकल इंजीनियरों को सिविल सेवा में न जाने की अनमोल सलाह दे डाली। वे यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षित युवाओं को सरकारी नौकरियों के लिए राजनीतिक दलों के चक्कर काटने के बजाय पान की दुकान खोलनी चाहिए या गाय पाल कर डेयरी उद्योग में करियर बनाना चाहिए। अब जब त्रिपुरा जैसे छोटे से राज्य का मुख्यमंत्री नंबर बना रहा हो, तो गुजरात माडल का वारिस मुख्यमंत्री कैसे चुप रहता? विजय रुपाणी ने नारद मुनि की तुलना सर्च इंजन गूगल से की और कहा कि नारद मुनि को पूरी दुनिया के बारे में जानकारी होती थी। उनके सहयोगी, गुजरात विधानसभा के स्पीकर ने कहा कि अंबेडकर ब्राह्मण थे।

लब्बोलुआब यह कि इस बेतुकी बयानबाजी को मीडिया की तरजीह मिलती है, ऐसे बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो जाते हैं और उन पर प्रशंसा या आलोचना होने लगती है। ये अनावश्यक बातें मुद्दा बन जाती हैं और जो मुद्दे हैं, वे कहीं पीछे छूट जाते हैं। सच है, मोदी को यूं ही राजनीति और रणनीति का माहिर नहीं कहा जाता। यह सर्वज्ञात तथ्य है कि भाजपा के आईटी सेल से पार्टी कार्यकर्ताओं को कुछ विषयों को मुद्दा बनाने का निर्देश दिया जाता है। वे सभी लोग रट्टू तोते की तरह ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर बयान दाग देते हैं। बड़ी संख्या में देश के अलग-अलग भागों से अलग-अलग लोग ट्वीट करते हैं, तो वह ट्विटर पर ‘ट्रेंड’ करने लगता है। इस प्रकार वह मुद्दा मीडिया और जनता की निगाह में सबसे पहले आता है और खबर बन जाता है, बहस का विषय बन जाता है। यह भाजपा की रणनीति है। खेद की बात है कि मीडिया इस षड्यंत्र का शिकार है, जनता इस षड्यंत्र का शिकार है और सरकार मजे कर रही है।

ईमेलःindiatotal.features@gmail. com

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