सरकार से हो भ्रष्टाचार मुक्ति की शुरुआत

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

यदि आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली लागू हो जाए, तो यह चुनाव सुधार की ओर एक बड़ा कदम होगा और हर जायज-नाजायज तरीके से वोट खरीदने की आवश्यकता ही समाप्त हो जाएगी। सिस्टम यदि मजबूत हो, तो नैतिक मापदंडों से जीता हुआ उम्मीदवार अपने बाद के जीवन में भी ईमानदार रह सकता है। सवाल यह है कि सिस्टम की मजबूती के लिए क्या करना आवश्यक है? तो उत्तर यही है कि सबसे पहले तो चुनावी भ्रष्टाचार पर रोक लगनी चाहिए…

भ्रष्टाचार हमारे जीवन में यूं समा गया है कि उसे अलग से देख पाना संभव ही नहीं लगता। भारतीय शासन व्यवस्था ऐसी बन गई है कि हम भ्रष्टाचार रहित जीवन की कल्पना भी नहीं कर पाते। जीवन के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार है, रोजमर्रा के हर काम में भ्रष्टाचार है। लाइन तोड़ने से लेकर जीवन के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार पसरा हुआ है। मैं हमेशा से इस बात का कायल रहा हूं कि सिस्टम की खामियों की वजह से भ्रष्टाचार बढ़ता है। मेरे जीवन के विभिन्न अनुभव इसी सत्य के प्रमाण हैं। मैं पहले भी कह चुका हूं कि हर देश में लगभग 10 प्रतिशत लोग ईमानदार होते हैं, 10 प्रतिशत लोग बेईमान होते हैं और शेष 80 प्रतिशत लोग समाज की स्थितियों के अनुसार ढल जाते हैं। यदि सिस्टम मजबूत हो, बेईमानी पर तुरंत सजा होती हो, तो ये लोग बेईमानी की कोशिश नहीं करते, लेकिन यदि बेईमान लोग बेईमानी के बावजूद कानून से बच निकलते हों, तो ये 80 प्रतिशत लोग भी बेईमान हो जाते हैं। यही कारण है कि भ्रष्टाचार पर रोकथाम के लिए सिस्टम की मजबूती की ओर ध्यान देना आवश्यक है। हमारे देश में लागू सिस्टम की हजारों-हजार खामियों ने ही यहां भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। हमारे देश की चुनाव प्रक्रिया ही ऐसी है, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। हमारे देश में अकसर 60-70 प्रतिशत मतदान होता है, यानी चुनी गई सरकार को 30 प्रतिशत जनता ने वोट नहीं दिया। जिन लोगों ने मतदान किया उनमें से भी बहुत से लोग विपक्षी अथवा स्वतंत्र उम्मीदवारों को वोट देते हैं। विजयी उम्मीदवार सिर्फ इसलिए चुन लिया जाता है, क्योंकि उसे सबसे ज्यादा वोट मिले। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि कोई उम्मीदवार सिर्फ एक वोट के अंतर से जीता। यानी, जिन लोगों ने विजयी उम्मीदवार के खिलाफ वोट दिया, उनके वोट बेकार चले गए, क्योंकि उनके मनपसंद का उम्मीदवार विधायक नहीं बन पाया।

इसे ‘फर्स्ट पास्ट दि पोस्ट’ का नियम कहा जाता है। इस प्रकार सिर्फ एक वोट ज्यादा पाने वाला व्यक्ति सभी शक्तियों का स्वामी बन जाता है और हारा हुआ उम्मीदवार एकदम अप्रासंगिक हो जाता है। परिणाम यह है कि चुनाव जीतना ही सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाता है, इसलिए उम्मीदवार जीत सुनिश्चित करने के लिए हर तरह के जायज और नाजायज तरीके अपनाते हैं। इसके विपरीत ‘प्रपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन’ यानी आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिस्टम में विभिन्न दलों को उनके वोट प्रतिशत के हिसाब से सीटें दी जाती हैं और उनकी सूची के वरीयता क्रम के अनुसार उम्मीदवारों को सदन में जगह मिलती है।

यानी, अगर सदन में कुल 100 सीटें हों और भाजपा को सारे प्रदेश में 34 प्रतिशत मत मिलें, तो विधानसभा में उसके 34 सदस्य होंगे। यही नियम चुनाव लड़ रहे शेष दलों पर भी लागू होगा। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सन् 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 31.3 प्रतिशत मत मिले थे और उसके 282 उम्मीदवार विजयी रहे थे। जबकि यदि आनुपातिक प्रतिनिधित्व का नियम लागू होता, तो उसके केवल 169 उम्मीदवार ही सांसद हो पाते। कांग्रेस को 19.5 प्रतिशत मत मिले थे और उसके 44 उम्मीदवार विजयी रहे थे, जबकि आनुपातिक प्रतिनिधित्व के नियम के अनुसार उसके 105 उम्मीदवार सांसद बन जाते। तेलुगु देशम पार्टी को 2.5 प्रतिशत मत मिले और उसके 16 उम्मीदवार विजयी रहे, जबकि बहुजन समाजवादी पार्टी को 4.3 प्रतिशत मत मिले, लेकिन लोकसभा में उसका खाता भी नहीं खुल पाया। इन सब कमियों का मिला-जुला असर यह है कि केवल कुछ वोट अधिक लेकर भी सत्तासीन दल को अधिक सीटें मिली होती हैं। जनप्रतिनिधि चुनाव जीतने के लिए हर जायज-नाजायज तरीका अपनाते हैं, गरीब बस्तियों में शराब-कंबल बांटना, चुनाव से कुछ समय पहले ही मतदाताओं के लिए नई सुविधाओं की घोषणा करना, धर्म, जाति, भाषा अथवा क्षेत्र के नाम पर धु्रवीकरण करना, लाइसेंस देना, रिश्वत देना, वोट खरीदना आदि सभी तरीके अपनाए जाते हैं। हर दल यही करता है, इसलिए कोई किसी पर उंगली नहीं उठा पाता। जब चुनाव जीतने के लिए ही भ्रष्टाचार से शुरुआत होती हो, तो चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि से शुचिता की अपेक्षा रखना फिजूल है। यदि आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली लागू हो जाए, तो यह चुनाव सुधार की ओर एक बड़ा कदम होगा और हर जायज-नाजायज तरीके से वोट खरीदने की आवश्यकता ही समाप्त हो जाएगी। सिस्टम यदि मजबूत हो, तो नैतिक मापदंडों से जीता हुआ उम्मीदवार अपने बाद के जीवन में भी ईमानदार रह सकता है।

सवाल यह है कि सिस्टम की मजबूती के लिए क्या करना आवश्यक है? तो उत्तर यही है कि सबसे पहले तो चुनावी भ्रष्टाचार पर रोक लगनी चाहिए। आनुपातिक प्रतिनिधित्व की खासियत यह है कि इससे किसी एक दल अथवा गबंधन को अनुचित लाभ नहीं मिल पाता और हम ‘विनर टैक्स इट ऑल’ की स्थिति के शिकार होने से बच जाते हैं। लेकिन यह भ्रष्टाचार से मुक्ति का सिर्फ पहला कदम है। देश से भ्रष्टाचार के पूर्ण सफाए के लिए हमें पूरी तस्वीर को दिमाग में रखना होगा। चुनाव सुधार के साथ-साथ न्यायपालिका के कामकाज में सुधार के लिए ‘न्यायिक मानकीकरण एवं उत्तरदायित्व विधेयक’, जनहित में विभिन्न घोटालों का पर्दाफाश करने वाले ह्विसल ब्लोअर्स के लिए ‘जनहित कार्यकर्ता सुरक्षा विधेयक’, सरकारी कर्मचारियों द्वारा जनता के काम सही समय पर होना सुनिश्चित करने के लिए ‘जनसेवा विधेयक’, नए बनने वाले कानूनों में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ‘जनमत विधेयक’ तथा किसी अप्रासंगिक अथवा गलत कानून को जनता द्वारा निरस्त करवा पाने के लिए ‘जनाधिकार विधेयक’ तथा जनता के मनपसंद का कोई नया कानून बनाने के लिए ‘जनप्रिय विधेयक’ लाए जाने चाहिएं।

उपरोक्त सभी प्रस्तावित कानूनों का मंतव्य है कि प्रशासनिक कामों में जनता की भागीदारी सुनिश्चित हो। प्रशासनिक निर्णयों में जनसामान्य की सक्रिय भागीदारी भ्रष्टाचार की रोकथाम का सर्वाधिक प्रभावी उपाय है। लोकतंत्र तो है ही लोक का तंत्र, जहां तंत्र भी लोक की सेवा के लिए बनाया जाता है। हमें यह सुनिश्चित करना है कि तंत्र, लोक पर हावी न हो, वह लोक की सेवा के लिए हो, लोक उसका दास न हो। यह स्पष्ट है कि यदि हम चाहते हैं कि सरकारें ठीक से काम करें, तो हमें सहभागितापूर्ण लोकतंत्र की अवधारणा को स्वीकार करना होगा, जिसमें न केवल विपक्ष को प्राप्त मतों के अनुसार आनुपातिक प्रतिनिधित्व मिले, बल्कि प्रशासनिक निर्णयों में जनता की सहभागिता के भी पर्याप्त अवसर हों। उसके लिए संविधान में जो भी संशोधन आवश्यक हों वे किए जाएं, ताकि हमारा लोकतंत्र मजबूत होकर सचमुच जनता की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व कर सके।

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