ये कहां आ गए हम?

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

इंडियन आयल कारपोरेशन कब चुपचाप अडानी के हवाले कर दिया गया, पता ही नहीं चला। हाल ही में अडानी को छत्तीसगढ़ के सरगुजा और सूरजपुर जिलों के घने जंगलों में स्थित पारसा कोयला खदान के संचालन की शुरुआती स्तर की अनुमति दे दी गई है। उल्लेखनीय है कि पर्यावरण मंत्रालय ने इसे सन् 2009 में ऐसे क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया था, जहां खनन को अनुमति नहीं दी जा सकती। इसके कुछ ही समय बाद अडानी को पांच हवाई अड्डों के संचालन का ठेका दे दिया गया। धन की कमी की दिक्कत से जूझ रही और दिवालिया होने की कगार पर पहुंची अनिल अंबानी की कंपनी को राफेल का ठेका देने का विवाद अभी ठंडा भी नहीं हुआ कि मोदी ने अपने दूसरे मित्र पर कृपा की बारिश कर दी है…

नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री के रूप में सत्तासीन हुए थे, तो उम्मीद की एक नई लहर जगी थी। हर किसी ने मान लिया था कि अच्छे दिन आने वाले हैं। मोदी तेज-तर्रार दिमाग के व्यक्ति हैं और कुशल वक्ता हैं। वह अपनी बात इस ढंग से कहने में माहिर हैं कि जनता तालियां बजाती रह जाए। इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी ने कई नई योजनाओं का सूत्रपात किया, पुरानी योजनाओं को नए सिरे से गढ़कर, उनकी पैकेजिंग दोबारा से करके उन्हें ज्यादा ग्राह्य और उपयोगी बनाने का प्रयत्न किया। कभी-कभी सिर्फ नकल भी की, लेकिन कुछ कर गुजरने की मजबूत इच्छा का प्रदर्शन किया। यह भी सही है कि हम कितनी ही योजना बना लें, किसी योजना को कितना ही ठोक-पीट कर देख लें, तो भी उसकी सफलता की गारंटी नहीं दी जा सकती। बहुत सी आंतरिक और बाह्या घटनाएं हमारी योजनाओं की सफलता-असफलता को प्रभावित कर सकती हैं।

आमतौर पर हर कोई इस बात को समझता है कि काम करने वाले किसी भी व्यक्ति से गलतियां भी हो सकती हैं, गलतियों को बर्दाश्त करने की आदत डाले बिना हम प्रगति का सही आकलन नहीं कर सकते। इस संदर्भ में देखें, तो मोदी से भी गलतियां हुईं। किसी समस्या का पूरा आकलन न कर पाना, गलती हो जाना आदि सामान्य बातें हैं। इसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जो कोई बड़ा मुद्दा बनता, लेकिन जब यह लगा कि गलती समझने के बावजूद उसे दुरुस्त करने के बजाय अपनी गलतियों को छिपाने और अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ने की कोशिश हो रही है, तो मामला बिगड़ गया। गलती करना गलत नहीं है, गलती को छिपाना गलत है, उसे सही ठहराना गलत है और उसके लिए दूसरों को दोष देना भी गलत है। मोदी ने यही गड़बड़ की। तेजी से काम करता हुआ दिखने के लिए वह गलतियां करते चले गए, और जब गलती पर गलती होने लगी तो बजाय उनको दुरुस्त करने के या तो कांग्रेस को दोषी ठहराना शुरू कर दिया या फिर असहमति व्यक्त करने वाली जनता को ही गालियां देनी शुरू कर दीं। मोदी से मोहभंग की शुरुआत यहीं से हुई। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बार-बार कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की जिद्द में हर बात के लिए कांग्रेस और इसके शासन की अवधि को निशाना बनाना शुरू कर दिया। अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए मनचाहे आंकड़े पेश करने और आंकड़ों को सही दिखाने के लिए उन्हें मापने के मानदंडों में परिवर्तन करने शुरू कर दिए। कुछ चीजें जनता को समझ में आईं, कुछ नहीं, परंतु जब जमीन पर विकास नहीं दिखा, तो मोदी का विरोध शुरू हो गया। अच्छे दिनों के सपने धूमिल हुए, तो मोदी ने भी विकास की बात करनी छोड़ दी और हिंदू-मुस्लिम और राम मंदिर के मुद्दों पर फोकस करना शुरू कर दिया, लेकिन एक सीमा के बाद जब उसमें भी आगे सफलता नहीं मिली, तो राजनीति में पाकिस्तान को घसीट लिया गया। बात यहीं खत्म नहीं हुई, यह कहा जाने लगा कि देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ कोई बात कहना अपराध है, देशद्रोह है, ऐसे लोग मोदी की आलोचना करके पाकिस्तान को शह दे रहे हैं। मोदी ही पाकिस्तान की शरारतों को रोक सकते हैं और मोदी की आलोचना पाकिस्तान का समर्थन करने के बराबर है। यह इतना खतरनाक, जहरीला और असंगत कुतर्क है कि इसे एक क्षण के लिए भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। मोदी एक चुने हुए राजनेता हैं, वह एक चुनाव घोषणा-पत्र लेकर आए थे, उन्होंने कुछ वादे किए थे। मतदाताओं ने उन वादों के आधार पर, उन वादों से प्रभावित होकर उन्हें और भाजपा के अन्य उम्मीदवारों को वोट दिए थे। अगर मतदाताओं को यह लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी के कुछ वादे पूरे नहीं हुए, तो हर मतदाता को हक है कि वह उनसे सवाल पूछे। सारी आलोचनाओं के बावजूद मोदी लगातार अपने मित्र पूंजीपतियों को बढ़ावा दे रहे हैं। इंडियन आयल कारपोरेशन कब चुपचाप अडानी के हवाले कर दिया गया, पता ही नहीं चला।

हाल ही में अडानी को छत्तीसगढ़ के सरगुजा और सूरजपुर जिलों के घने जंगलों में स्थित पारसा कोयला खदान के संचालन की शुरुआती स्तर की अनुमति दे दी गई है। अडानी की कंपनी ने कुल एक लाख सत्तर हजार हेक्टेयर में फैले इस क्षेत्र में से 841 हेक्टेयर क्षेत्र की सफाई कर दी है, ताकि वह खदान में खनन का कामकाज शुरू कर सके। उल्लेखनीय है कि पर्यावरण मंत्रालय ने इसे सन् 2009 में ऐसे क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया था, जहां खनन को अनुमति नहीं दी जा सकती। इसके कुछ ही समय बाद अडानी को पांच हवाई अड्डों के संचालन का ठेका दे दिया गया। धन की कमी की दिक्कत से जूझ रही और दिवालिया होने की कगार पर पहुंची अनिल अंबानी की कंपनी को राफेल का ठेका देने का विवाद अभी ठंडा भी नहीं हुआ कि मोदी ने अपने दूसरे मित्र पर कृपा की बारिश कर दी है। आईडीबीआई और जीवन बीमा निगम द्वारा आपस में ही एक-दूसरे की फंडिंग का अजीब खेल केवल मोदी राज में ही संभव था। जेट एयरवेज को दिवालिया होने से इसलिए बचा लिया गया, क्योंकि चुनाव के समय हजारों लोगों का बेरोजगार हो जाना भाजपा के चुनावी गणित को खराब कर सकता था। करदाताओं के धन का ऐसा दुरुपयोग अनूठा ही है। यह वही राष्ट्रवादी सरकार है, जिसने पिछले दरवाजे से राजनीतिक दलों को विदेशी फंडिंग की अनुमति तो दी ही है, साथ ही इलेक्टोरल बांड के माध्यम से बेनामी दान की नई रिवायत भी शुरू की है।

सबसे बड़ी बात यह है कि इलेक्टोरल बांड किसने खरीदे, कितने के खरीदे, इसका पूरा रिकार्ड सरकार के पास होगा, जिसका अर्थ है कि यदि वे बांड सत्ताधारी दल को नहीं दिए जाते, तो उसे पता होगा कि किस उद्योगपति ने विपक्षी दलों की सहायता की है। सारी मर्यादाओं को परे धकेल कर अब प्रधानमंत्री खुद चौकीदार की टी-शर्ट बेचने में लगे हुए हैं। भाजपा की वेबसाइट मतदाताओं को समर्थन के बदले में पुरस्कारों का लालच दे रही है। यह सब कुछ खुलेआम हो रहा है, उसके बावजूद मोदी देशभक्त हैं, सवाल करने वाले देशद्रोही हैं। अब यह मतदाताओं को सोचना है कि क्या चुनाव जीतने के लिए किसी प्रधानमंत्री का इस हद तक नीचे आना उन्हें स्वीकार्य है या नहीं? तेईस मई को सब सामने आ जाएगा।

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