बेनकाब होती जिंदगी

पीके खुराना

वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार

गूगल अब सिर्फ एक सर्च इंजन ही नहीं रह गया है, बल्कि यह एक डेटा और इंटरनेट कांग्लोमेरेट बन चुका है। यह एक ऐसा दैत्य है, जो हमें लगता है कि बोतल में बंद है, पर दरअसल अब यह बोतल से बाहर है और हमारे जीवन को कई तरह से प्रभावित कर रहा है। गूगल भिन्न-भिन्न कंपनियों का अधिग्रहण करके इस काबिल हो चुका है कि यह हमारे जीवन के हर पहलू पर निगाह रख रहा है। हमारे स्मार्ट फोन जानते हैं कि हम कब कहां हैं, किस से बात करते हैं, कितनी बार बात करते हैं और कितनी देर बात करते हैं…

तकनीकी प्रगति ने हमारे जीवन में क्रांति सी ला दी है और हमारे जीवन को कदरन आसान बना दिया है। कम्प्यूटर का आविष्कार एक बड़ा मील का पत्थर था, फिर इंटरनेट ने इसमें एक और क्रांति ला दी, हालांकि इंटरनेट की क्रांति ज्यादातर शहरों तक सीमित रही। इसी तरह गूगल के जादुई प्रभाव ने भी हमारे कामकाज को बहुत आसान बना दिया है। गूगल अब विश्व का सर्वाधिक उन्नत सर्च इंजन तो है ही, जो हमें हमारी मनचाही जानकारी तुरंत उपलब्ध करवाता है, पर यह उससे कहीं ज्यादा बड़ी कंपनी है, जो हमारे जीवन के हर पहलू को अपनी तीसरी आंख से देख रही है। बाद में मोबाइल फोन आए, तो हमारे कामकाज के तरीके में एक और बड़ा बदलाव आया तथा मोबाइल फोन व इंटरनेट के जुड़ जाने से जीवन फिर बदला। अब स्मार्टफोन के कारण मोबाइल ऐप्स ने तो मानो जादू ही कर दिया है। हम कहीं भी रहें, स्मार्ट फोन के जरिए हमारा आफिस हमारे साथ चलता है।

दरअसल, अब हमारी जिंदगी स्मार्ट फोन से चलती है। स्मार्ट फोन के सहारे हम दुनियाभर के अखबार पढ़ सकते हैं, खरीद-फरोख्त कर सकते हैं, किसी शो, बस, रेल, हवाई जहाज आदि की टिकट बुक करवा सकते हैं, शेयर खरीद और बेच सकते हैं, फोन बैंकिंग के माध्यम से धन का लेन-देन कर सकते हैं। स्मार्ट फोन की ही तरह प्लास्टिक मनी, यानी क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड भी हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं। हमारी जेब में क्रेडिट कार्ड अथवा डेबिट कार्ड होने का मतलब है कि हमारा बैंक हमारे साथ चलता है। प्लास्टिक मनी का ही जलवा है कि बैंक में जमा हमारे धन के लेन-देन के लिए अब हमें बैंक जाने की आवश्यकता नहीं रही। नोटबंदी के बाद से क्र्रेडिट कार्ड तथा डेबिट कार्ड का चलन और भी बढ़ा है। स्मार्ट फोन और क्रेडिट-डेबिट कार्ड के कारण हमारे जीवन को पर लग गए हैं, लेकिन फोन और क्रेडिट कार्ड के ही कारण हमारा जीवन बेनकाब और असुरक्षित भी हो गया है। इसे जरा विस्तार से समझने की आवश्यकता है। गूगल अब सिर्फ एक सर्च इंजन ही नहीं रह गया है, बल्कि यह एक डेटा और इंटरनेट कांग्लोमेरेट बन चुका है। यह एक ऐसा दैत्य है, जो हमें लगता है कि बोतल में बंद है, पर दरअसल अब यह बोतल से बाहर है और हमारे जीवन को कई तरह से प्रभावित कर रहा है। गूगल भिन्न-भिन्न कंपनियों का अधिग्रहण करके इस काबिल हो चुका है कि यह हमारे जीवन के हर पहलू पर निगाह रख रहा है। हमारे स्मार्ट फोन जानते हैं कि हम कब कहां हैं, किस से बात करते हैं, कितनी बार बात करते हैं और कितनी देर बात करते हैं। हमारे क्रेडिट कार्ड के कारण बैंकों को मालूम है कि हमारी खरीददारी का तरीका क्या है, हम कितनी खरीददारी करते हैं, कहां से खरीददारी करते हैं, कितनी बार और कितने मूल्य के सामान की खरीददारी करते हैं। इस प्रकार इंटरनेट, स्मार्ट फोन और क्रेडिट कार्ड ने मिलकर हमारा जीवन आसान किया है, पर हमारी निजता भी समाप्त कर दी है। निजता पर हमला कई और तरीकों से भी होता है। आज हम तरह-तरह की मार्केटिंग कंपनियों के कॉल से परेशान रहते हैं। अजनबी फोन नंबरों से हर दिन हमें न जाने कितने फोन आते हैं। हम झुंझलाएं, बच निकलने की कोशिश करें, फोन काट दें, तो भी दोबारा फोन आ जाता है। विज्ञापनी फोन कॉल्स के इस अतिक्रमण के लिए बहुत हद तक हम खुद भी जिम्मेदार हैं। किसी मॉल या शोरूम में जा कर उनकी गेस्ट बुक भर कर, किसी अच्छे रेस्त्रां में उनको फीडबैक देकर हम उन्हें अपने संपर्क सूत्र यानी मोबाइल नंबर, ई-मेल, जन्म तिथि आदि सार्वजनिक कर देते हैं। फेसबुक पर स्टेटस अपडेट करते हुए भी हम अपनी लोकेशन का पता बताते हैं, अपनी रुचियों की जानकारी देते हैं और अपनी निजता को खुद ही बेपर्दा करते हैं। एमेजन, फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों के कारण देश में स्मार्टफोन और ई-कामर्स दोनों का बाजार अविश्वसनीय तेजी से बढ़ा है और मोबाइल से लेन-देन में तेजी आई है। इनसान के बजाय मशीनें आपस में ज्यादा बातें कर रही हैं और प्राइवेसी की समस्या और भी गहरी हो गई है। यहां तक तो ठीक था, पर अब हमारी निजता ही नहीं, हमारा धन भी चोरों-ठगों-हैकरों के निशाने पर है।

फेसबुक से विश्व की लगभग आधी आबादी का व्यक्तिगत ब्यौरा लीक होना या चोरी हो जाना, अब आम है। हमसे जुड़ी इन जानकारियों को विभिन्न मार्केटिंग कंपनियों को बेच दिया जाता है। आज यह ब्यौरा भी धन है। मार्केटिंग कंपनियों में कहा जाता है कि ‘डेटा इज मनी’। दरअसल अधिकतर सरकारी एजेंसियां, टेलीकॉम कंपनियां और बैंक आदि अपना काम आगे अलग-अलग कंपनियों को ठेके पर देते हैं। इन कंपनियों के कर्मचारी ‘उधार के सिपाही’ हैं, जो कुछ पैसों के लिए किसी भी तरह की जानकारी बांटने, बेचने आदि के लिए स्वतंत्र हैं। बहुत सी मार्केटिंग कंपनियों ने ऐसे लोगों की टीम बना रखी है, जो विभिन्न मॉल्स तथा ऐसे ही अन्य स्रोतों से उनके ग्राहकों की जानकारी इकट्ठी करते हैं। इससे हमारी जिंदगी बेनकाब तो हुई ही है, कुछ और असुरिक्षत भी हो गई है। हैकरों का आतंक अलग से चिंता का विषय है, कभी ये फेसबुक से जानकारियां चुराते हैं, कभी किसी बैंक के रिकार्ड चुरा लेते हैं और कभी हमारे क्रेडिट कार्ड का दुरुपयोग करना आरंभ कर देते हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी संवेदनशील जानकारी सार्वजनिक न करें और सोशल मीडिया व इंटरनेट के प्रयोग के समय प्राइवेसी सेटिंग्स का ध्यान रखें तथा क्रेडिट कार्ड अथवा डेबिट कार्ड के प्रयोग के समय आवश्यक सावधानियां बरतें।

यह सचमुच अजीब है कि एक ग्राहक के रूप में हम अपने ही अधिकारों से वाकिफ नहीं हैं और ठगे जाने से बचने के लिए कोई प्रयास करने को तैयार नहीं हैं। हम एक तरह से बेनकाब होते जा रहे हैं और चोरों, ठगों व हैकरों का शिकार बन रहे हैं। वे कई साधनों से हमारे पासवर्ड और हमसे संबंधित सारा ब्यौरा ढूंढ निकालते हैं और फिर इस जानकारी का दुरुपयोग करके हमें लूट लेते हैं। हमारी निजता में सेंध आज एक बेइलाज समस्या है। दुनिया में ठगों की कमी नहीं है, इन छोटे-बड़े ठगों का ध्यान हमेशा हमारी जेब पर है और अपनी जेब तथा अपनी निजता की सुरक्षा करना हमारी ही जिम्मेदारी है।  

ई-मेलः indiatotal.features@gmail