राम मंदिर : नया अध्याय: कुलदीप चंद अग्निहोत्री, वरिष्ठ स्तंभकार

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

यह इन्हीं संघर्षों का परिणाम था कि पांच सौ साल के बाद भारतीयों ने बाबर की भारत विजय के इस ग़ज़ट नोटिफिकेशन को डीनोटिफाई कर दिया। समस्त भारतीयों की ओर से नरेंद्र मोदी ने पांच अगस्त 2020 को उस स्थान पर एक बार फिर राम जी के घर-मंदिर को पुनः बनाने के लिए भूमि पूजन कर दिया है। यह संकल्प पूरे भारत का था, यही कारण है कि इस राष्ट्रीय उत्सव को सभी भारतीयों ने पांथिक भेदभाव भुला कर हर्ष पूर्वक मनाया। लेकिन मुगल विरासत की कुछ टूटी-फूटी रेखाएं अभी भी इधर-उधर दिखाई दे रही हैं। उनको समझ लेना चाहिए कि मुगलों का पौधा इस भारत भूमि पर पुनः नहीं उग सकता क्योंकि काल का रथ पांच सौ साल में बहुत आगे आ गया है। अब जबकि राम मंदिर बनना निश्चित हो गया है, अब भारत को राम राज्य की कल्याणकारी धारणा की ओर बढ़ना चाहिए…

पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण हेतु भूमि पूजन किया । जिस स्थान पर राम मंदिर बने जा रहा है, वहां शताब्दियों पहले भी राम मंदिर था। राम मंदिर यानी राम का घर था। रामचंद्र जी के पिता दशरथ अयोध्या के राजा थे। राम का राज्याभिषेक होने ही वाला था कि किसी पारिवारिक विवाद के कारण उन्हें चौदह साल के लिए बनवास में जाना पड़ा। वे बनवास में जाने से इंकार भी कर सकते थे, लेकिन अपने पिता के वचनों की रक्षा के लिए उन्होंने बनवास का रास्ता स्वेच्छा से चुना। उनके पिता दशरथ भी चाहते थे कि उनका बेटा बनवास जाने की बजाय, उनके वचनों को भंग कर दे। लेकिन राम नहीं माने। रामचंद्र जी के साथ उनकी पत्नी सीता भी स्वेच्छा से ही बनवास में रहीं। ऐसे उदाहरण इतिहास में कम ही मिलते हैं। यहीं तक नहीं।

राम के बनवास पर जिस भाई भरत को राज्य मिला था, वह भी राजगद्दी पर राम की खड़ाऊं रख कर ही चौदह साल काम चलाता रहा। बनवास काल में ही लंका के राजा रावण ने सीता जी का अपहरण कर लिया। रामचंद्र जी ने स्थानीय विभिन्न समाजों के लोगों को एकत्रित करके, लंका पर धावा बोला और सीता को मुक्त करवाया। लेकिन लंका को अपने राज्य में न  मिला कर रावण के भाई को ही राज्य दे दिया। वापस अयोध्या आकर रामचंद्र जी ने अनेक साल राज्य किया। उनके शासन की गुणवत्ता के कारण ही उनकी शासन व्यवस्था को रामराज्य कह कर उसका आज भी उदाहरण दिया जाता है। समय अपने प्रवाह से चलता रहता है। राम की वंश परंपरा चलती रही। दशगुरु परंपरा के दशम गुरु श्री गोबिंद सिंह जी ने अपनी आत्मकथा में रामचंद्र जी की वंश परंपरा का विस्तार से वर्णन किया है। उनके अनुसार पंजाब या सप्तसिंधु क्षेत्र के वेदी व सोढी राम की वंश परंपरा में से ही हैं। थाईलैंड के वर्तमान नरेश भी अपने वंश को राम की वंश परंपरा का ही मानते हैं। भारत के लोग या कहें तो जम्हूद्वीप के लोग अपने पुरखे श्री रामचंद्र  जी के अयोध्या स्थित प्राचीन घर या मंदिर में आकर एक बार जरूर माथा निभाते थे। यह राम मंदिर संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधता था। उस वक्त भारत की भी दुनिया में तूती बोलती थी। उसे विश्व गुरु माना जाता था। लेकिन वक्त बदलते देर नहीं लगती।

समय का चक्र है। अरब क्षेत्र में एक नई आंधी उठी। अरब जो अलग-अलग कबीलों में रह कर आपस में लड़ते-भिड़ते रहते थे, उन्हें हज़रत मोहम्मद ने एक सूत्र में ही नहीं पिरो दिया बल्कि उनमें एक नई ऊर्जा भी जगा दी। अरबों ने इरान और मध्य एशिया पर हमले शुरू कर दिए। उन्हें पराजित ही नहीं किया बल्कि उन्हें मतांतरित भी किया। यह अलग बात है कि मध्य एशिया के जिन तुर्कों, मुगल मंगोलों को मतांतरित किया था, उन्होंने ही बाद में अरबों की खाट खड़ी कर दी। परंतु उन्होंने नए जुनून में हिंदुस्तान पर भी हमले शुरू किए। ऐसा ही हमला आज से लगभग पांच सौ साल पहले मध्य एशिया के एक तुर्क-मंगोल बाबर ने किया। उसने पूर्व के तुर्क शासक लोधियों को पराजित कर हिंदुस्तान के बड़े भूभाग पर कब्जा जमा लिया। लेकिन बाबर यहीं नहीं रुका। उसे पता था कि भारतीयों को भीतर से हताश व पराजित करना है तो इनके पुरखों के प्रतीकों को नष्ट करना चाहिए। प्रतीकों के नष्ट होने से क़ौम का मन भीतर से टूटता है। इसलिए उसने अपने सेनापति को आदेश दिया कि अयोध्या में भारत के सबसे प्राचीन प्रतीक राम के घर-मंदिर को गिरा दिया जाए।

उस पर एक नया ढांचा खड़ा कर दिया जाए, ताकि भारतीय मुगल वंश की सत्ता को चुनौती न दे सकें। तब मीरबाकी ने राम का मंदिर गिरा कर उसके स्थान पर नया ढांचा खड़ा कर दिया। बहुत अरसा बाद कुछ लोगों ने इस ढांचे को बाबरी मस्जिद कहना शुरू कर दिया। लेकिन यह मस्जिद नहीं थी। यदि बाबर को मस्जिद ही बनानी होती तो वह अयोध्या में कहीं भी बना सकता था। परंतु बाबर को तो मस्जिद बनानी ही नहीं थी। उसे तो राम का मंदिर तोड़ना था। भारत पर अपनी विजय की अधिसूचना जारी करने का यह मध्यकालीन तरीका था। इसीलिए मैं इस ढांचे को बाबर की ओर से भारत विजय पर जारी किया गया ग़ज़ट नोटिफिकेशन मानता हूं। लेकिन बाबर भारतीय मानस को भीतर से पढ़ने में धोखा खा गया। इस ग़ज़ट नोटिफिकेशन से भारतीयों का मनोबल टूटा नहीं, बल्कि और मजबूत हो गया। पिछले पांच सौ साल में इस संघर्ष में न जाने कितने  भारतीयों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इस लड़ाई को एसटीएम  यानी सैयद-तुर्क-मुगल मंगोल मूल के मुसलमानों, जो विदेशी हमलावरों के साथ आकर यहां बस गए थे, ने मंदिर-मस्जिद की लड़ाई बनाने की कोशिश की। इसमें उन्होंने उन भारतीयों को भी शामिल करने की कोशिश की जो कभी काल प्रवाह में मतांतरित हो गए थे।

लेकिन इन भारतीयों ने मोटे तौर पर इस संघर्ष को न तो मंदिर-मस्जिद का प्रश्न माना और न ही उन्होंने एसटीएम का साथ दिया। यह इन्हीं संघर्षों का परिणाम था कि पांच सौ साल के बाद भारतीयों ने बाबर की भारत विजय के इस ग़ज़ट नोटिफिकेशन को डीनोटिफाई कर दिया। समस्त भारतीयों की ओर से नरेंद्र मोदी ने पांच अगस्त 2020 को उस स्थान पर एक बार फिर राम जी के घर-मंदिर को पुनः बनाने के लिए भूमि पूजन कर दिया है। यह संकल्प पूरे भारत का था, यही कारण है कि इस राष्ट्रीय उत्सव को सभी भारतीयों ने पांथिक भेदभाव भुला कर हर्ष पूर्वक मनाया। लेकिन मुगल विरासत की कुछ टूटी-फूटी रेखाएं अभी भी इधर-उधर दिखाई दे रही हैं। उनको समझ लेना चाहिए कि मुगलों का पौधा इस भारत भूमि पर पुनः नहीं उग सकता क्योंकि काल का रथ पांच सौ साल में बहुत आगे आ गया है। अब जबकि मंदिर का निर्माण निश्चित हो गया है, इससे भारतीय जनमानस की एकता जरूर बढ़ेगी। भारत को अब कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के साथ राम राज्य की ओर बढ़ना है।

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com