किसान आंदोलन और रोशनी एक्ट : कुलदीप चंद अग्निहोत्री, वरिष्ठ स्तंभकार

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

अब फिर अनुच्छेद 370 को लेकर आवाज उठी है जिसकी वापसी के कुछ झंडे आंदोलन में भी देखे जा रहे हैं। अनुच्छेद 370 हटने के बाद प्रदेश का सबसे बड़ा घोटाला, सरकारी भूमि हड़पने का घोटाला पकड़ में आया है। इसकी पद्धति इस प्रकार रखी गई कि किसी पर आंच तक न आए। पहले सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करो। फिर कानून बना कर कब्जे को वैध घोषित कर दो। लेकिन यह काम मोटे तौर पर जम्मू में करो ताकि वहां की जनसंख्या का अनुपात बदला जा सके। लेकिन इसमें एक ध्यान जरूर रखा गया कि कश्मीर के सभी मोटे मगरमच्छों ने भी इसी घोटाले के अंतर्गत जम्मू की सरकारी जमीनों पर कब्जा कर लिया। अब जो नाम निकल कर सामने आ रहे हैं, वे चौंकाने वाले  हैं। अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार तो हैं ही, कांग्रेस के अनेक नेताओं ने भी बहती गंगा में हाथ ही नहीं धोए, बल्कि पूरी तरह डुबकियां लगाईं…

पिछले दिनों भारत सरकार ने कृषि मामलों को लेकर तीन अधिनियम बनाए थे। पंजाब में उनको लेकर विरोध के कुछ स्वर उठे। किसान संगठनों का कहना था कि इन नए अधिनियमों से किसानों का नुकसान हो सकता है। पंजाब में किसानों के मोटे तौर पर तीस-पैंतीस संगठन हैं। ये सभी संगठन किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए संघर्ष करने की बात करते हैं। इन संगठनों का दावा है कि इनका राजनीति से कुछ लेना-देना नहीं है। तब यह रहस्य आज तक समझ नहीं आया कि हित समान होने के बावजूद ये संगठन अलग क्यों हैं? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यही रहस्य आंदोलन की दिशा और दशा तय कर रहा है। कांग्रेस के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने इस रहस्य को और भी अच्छी तरह स्पष्ट किया है। उनका एक लंबा वीडियो सोशल मीडिया में घूम रहा है। बिट्टू का कहना है कि इस आंदोलन को कुछ राष्ट्र विरोधी तत्त्वों ने हाईजैक कर लिया है। बिट्टू ने इसमें खालिस्तानी तत्त्वों का खास तौर पर जिक्र किया। उन्होंने अमृतसर और रोपड़ जिला के कुछ गांवों का भी जिक्र किया, जहां से ये लोग ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने कहा कि जो असली किसान हैं, वे तो अपने ट्रैक्टर ट्रालियों में पीछे रह गए हैं और दूसरे लोगों ने आगे बढ़कर आंदोलन पर कब्जा कर लिया है। इस मामले को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी आपस में भिड़ गए हैं। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी आंदोलन में शरीक है। जिन दिनों केजरीवाल की पार्टी पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ रही थी, उन दिनों उनको जिन तत्त्वों का समर्थन मिल रहा था, उसे लेकर पार्टी को शक की नजर से देखा जाने लगा था।

शायद वही शक एक बार फिर कैप्टन अमरेंद्र सिंह और केजरीवाल को आमने-सामने ले आया है। कैप्टन ने आंदोलन से देश की सुरक्षा को लेकर भी चिंता जाहिर की है। यहां रवनीत सिंह बिट्टू और कैप्टन एक ही चिंता अलग-अलग भाषा में जाहिर कर रहे प्रतीत होते हैं। अब इसमें कोई शक ही नहीं कि आंदोलन तो किसानों का ही है, लेकिन इसमें परोक्ष रूप से राजनीतिक दल किसानों के वेश में शिरकत करने लगे हैं। यही कारण है कि अनुच्छेद 370 को बहाल करने की मांग भी की जाने लगी है। शाहीन बाग वाले भी रंग बदल कर पहुंचने लगे हैं। लेकिन सभी की चिंता किसान हित को लेकर नहीं है। उनकी चिंता किसी भी तरीके से भारत सरकार को घुटने टेकने के लिए मजबूर करना है। यही कारण है कि बात इस प्रश्न पर नहीं हो रही कि इन कानूनों में क्या गुण हैं और क्या अवगुण हैं, जि़द इस बात की है कि कानून वापस ले लिए जाएं।

इसलिए जब कहीं लगता है कि सरकार व आंदोलनकारियों में समझौता हो सकता है तो आंदोलन की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले तत्त्व सक्रिय हो जाते हैं। कल जब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह आंदोलन के समग्र स्वरूप पर बातचीत करने के लिए देश के गृह मंत्री से मिलने पहुंचे तो राजनीति की रोटियां सेंकने वालों को चिंता हो गई कि कहीं कोई हल ही न निकल आए। राहुल गांधी ने तुरंत बयान जारी किया कि या जिसका भाव कुछ ऐसा था कि यदि इन अधिनियमों को वापस लिए बिना कोई समझौता हो जाता है तो यह सरकार के समक्ष समर्पण माना जाएगा। इससे सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कुछ राजनीतिक दल आंदोलन की आड़ में अपनी खोई साख फिर से प्राप्त करना चाहते हैं। अब फिर अनुच्छेद 370 को लेकर आवाज उठी है जिसकी वापसी के कुछ झंडे आंदोलन में भी देखे जा रहे हैं। अनुच्छेद 370 हटने के बाद प्रदेश का सबसे बड़ा घोटाला, सरकारी भूमि हड़पने का घोटाला पकड़ में आया है। इसकी पद्धति इस प्रकार रखी गई कि किसी पर आंच तक न आए। पहले सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करो। फिर कानून बना कर कब्जे को वैध घोषित कर दो। लेकिन यह काम मोटे तौर पर जम्मू में करो ताकि वहां की जनसंख्या का अनुपात बदला जा सके। लेकिन इसमें एक ध्यान जरूर रखा गया कि कश्मीर के सभी मोटे मगरमच्छों ने भी इसी घोटाले के अंतर्गत जम्मू की सरकारी जमीनों पर कब्जा कर लिया।

अब जो नाम निकल कर सामने आ रहे हैं, वे चौंकाने वाले  हैं। अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार तो हैं ही, कांग्रेस के अनेक नेताओं ने भी बहती गंगा में हाथ ही नहीं धोए, बल्कि पूरी तरह डुबकियां लगाईं। लेकिन सरकारी जमीनों पर कब्जा करने को इन्होंने रोशनी एक्ट कहा, जबकि अपनी प्रकृति में यह अंधेरा एक्ट था जो प्रदेश के गरीब लोगों की आड़ में उनकी रोशनी छीन रहा था। लेकिन इसी रोशनी से उत्पन्न हुए अंधेरे में अब्दुल्ला परिवार और सैयद परिवार एक और काम में लगे रहे। यह काम था म्यांमार से आने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को योजनाबद्ध तरीके से जम्मू में बसाना। अब जांच से पता चल रहा है कि इसके लिए पूरा एक नैटवर्क सक्रिय था और इसमें प्रदेश सरकार पूरी तरह सहायता कर रही थी। लगभग पांच हजार से ज्यादा परिवार जम्मू में बसाए जा चुके हैं।

सबसे पहला प्रश्न तो यही था कि म्यांमार से चल कर ये रोहिंग्या मुसलमान जम्मू ही क्यों आते थे? रास्ते में इतने प्रदेश पड़ते थे, वहां इनको क्यों नहीं ठहराया जाता था? जाहिर है रोहिंग्या को ठहराने के साथ-साथ अब्दुल्ला परिवार व सैयद परिवार जम्मू का जनसंख्या अनुपात भी बदलना चाहते थे। लेकिन इसकी ओर किसी का ध्यान न जाए, इसके लिए सैयद और अब्दुल्ला मिलकर चीखते रहते थे कि केंद्र सरकार कश्मीर का जनसंख्या अनुपात बदलना चाहती है। रोहिंग्या परिवारों से अब जब पूछताछ हो रही है तो सचमुच चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। रोहिंग्या को जम्मू में केवल बसाया ही नहीं जा रहा था, बल्कि उनके राशनकार्ड बनाने के लिए भी पूरा इंतजाम किया गया था। यह सब कुछ अनुच्छेद 370 की आड़ में हो रहा था। रोशनी एक्ट के अंधेरों में इस पूरे षड्यंत्र को अंजाम दिया जा रहा था।

 ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com