खाना पियो, पानी खाओ

हमारी लार जितना अधिक पेट में जाएगी, वह उतना ही शरीर को न्यूट्रल बनाएगी, यानी अम्लीय अवस्था का समाधान करेगी, पेट में अम्ल होने से जलन होती है, खट्टे डकार आते हैं जबकि हमारी लार ही उनका इलाज है। भोजन चबा-चबाकर खाने तथा पानी घूंट-घूंट कर पीने से उनमें ज्यादा से ज्यादा लार मिलती है जो मुफ्त में प्राकृतिक ढंग से हमारी एसिडिटी का इलाज करती है। लार में बहुत से जीवाणु होते हैं जो हमारे शरीर के लिए तो ठीक हैं, परंतु थूक देने पर दूसरों के लिए बीमारी का कारण बनते हैं। इसीलिए कहा गया है कि थूकना नहीं चाहिए। थूकने के बजाय लार को निगल लेना न केवल हमारे लिए लाभदायक है, बल्कि उससे गंदगी भी नहीं होती और हम दूसरों के लिए बीमारी का कारण भी नहीं बनते। आपने देखा होगा कि चोट लग जाने पर जानवर जख्म को चाट-चाट कर अपनी लार से ही ठीक कर लेते हैं। लार के इन औषधीय गुणों का लाभ उठाने के लिए हमें बस थोड़े से अनुशासन की आवश्यकता है…

हाल ही में मुझे भारतीयों के स्वास्थ्य के बारे में कुछ ऐसी बातें जानने को मिलीं जिन्होंने मेरे मन-मस्तिष्क को झकझोर डाला। डेढ़ अरब के आसपास वाली आबादी के हमारे देश का 65 प्रतिशत से भी ज्यादा भाग ऐसे लोगों का है जिन्हें कोई न कोई बीमारी है। जवानी के दिन जीवन के आनंद और स्वास्थ्य के दिन होते हैं, लेकिन गलत जीवनचर्या, गलत खानपान और अस्वस्थ आदतों के कारण आज हमारा युवावर्ग भी विभिन्न बीमारियों का शिकार है। कुछ लोग कुपोषण के शिकार हैं और बहुत से दूसरे मोटापे के कारण बीमारियों से घिरे हैं। कई डाक्टरों, वैद्यों, प्राकृतिक चिकित्सकों और योगाचार्यों से लंबी बातचीत और अपने जीवन के कुछ अनुभवों के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि थोड़े से संयम और अनुशासन से हम अपने जीवन का नक्शा बदल सकते हैं। हम बचपन से ही सुनते आए हैं कि आधा पेट भोजन करना, दुगुना पानी पीना, शारीरिक श्रम करना और हंसते रहना अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। दूसरा सूत्र हम यह सुनते आए हैं कि खाना चबा-चबा कर खाना चाहिए। इन दोनों सूत्रों को विस्तार से समझने की आवश्यकता है। खाना स्वादिष्ट हो तो हम अक्सर भूख से भी ज्यादा खा लेते हैं। पहला सूत्र हमें बताता है कि भूख से ज्यादा भोजन करना स्वास्थ्यकर नहीं है।

यहां हमें संयम की आवश्यकता होती है कि हम भोजन के स्वाद के लालच में न पड़ें और आवश्यकता से अधिक न खाएं। इसी सूत्र के अगले भाग में कहा गया है कि हम भोजन से दुगुना पानी पीयें, पर इसका विस्तार सूत्र में नहीं दिया गया है। पानी के साथ सावधानी यह आवश्यक है कि भोजन के बीच अथवा भोजन के तुरंत बाद पानी न पीयें, बल्कि भोजन से लगभग एक घंटा पहले या भोजन के डेढ़ घंटे बाद पानी पीयें। भोजन के साथ यदि आवश्यकता हो तो दो-तीन घूंट पानी पीयें तथा भोजन के तुरंत बाद भी गला साफ करने के लिए सिर्फ दो-तीन घूंट ही पानी पीयें। भोजन के बीच में तथा तुरंत बाद गटागट पानी पीना पाचन के लिए अच्छा नहीं है। जिन लोगों को भोजन के साथ ज्यादा प्यास लगती है वे बिना नमक वाली छाछ अथवा बिना चीनी या नमक मिलाये मौसम के अनुसार किसी फल का ताजा रस ले सकते हैं। इससे उनकी पानी की प्यास बुझ जाएगी। इसी सूत्र के साथ यह समझना भी आवश्यक है कि भोजन का समय निर्धारित होना चाहिए और दिन के भोजन को तीन या चार बार के बीच ही बांटना चाहिए। पश्चिम की यह धारणा कि थोड़ी-थोड़ी देर में थोड़ा-थोड़ा खाते रहना चाहिए, भारतीयों की शारीरिक रचना और मौसम के अनुकूल नहीं है। पहले सूत्र के ही विस्तार में आगे शारीरिक श्रम की बात कही गई है। कुछ लोग जॉगिंग करते हैं, दौड़ते हैं, टहलते हैं, सैर करते हैं या अलग-अलग व्यायाम करते हैं। स्वास्थ्य विज्ञान का स्पष्ट मत है कि सवेरे के समय योग अथवा बहुत हल्का व्यायाम करना चाहिए, भारी व्यायाम सवेरे के लिए माफिक नहीं है। शाम को सूरज ढलने से पहले ब्रिस्क वॉक (तेज-तेज चलना) सर्वाधिक स्वास्थ्यकर है। दोपहर के भोजन के बाद कम से कम 20 मिनट का विश्राम स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। रात के भोजन से पहले की सैर तो व्यायाम है जबकि भोजन के बाद का टहलना मनोरंजन है।

पहले सूत्र का अंतिम भाग खुश रहने यानी तनावरहित रहने, चिंतित न होने, भावनाओं के आवेग में परेशान न होने, हताश न होने की सलाह देता है कि हम जीवन में रचनात्मक और धनात्मक रहें। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि अकारण हंसने से भी उदासी दूर होती है, अत: हंसना और हंसते रहना अच्छी बात है। इसी सूत्र में एक बात और जोड़ी जानी आवश्यक है। यह हमारे देश के वातावरण और शरीर की प्रकृति के अनुकूल है कि हम लंच और ब्रेकफास्ट को आपस में बदल लें, यानी सवेरे भरपेट भोजन करें और दोपहर को हल्का भोजन लें। इससे दिन भर चुस्ती का आलम बना रहेगा और शरीर भी स्वस्थ रहेगा। हमारे देश में बहुत से बच्चे सवेरे कुछ भी खाये बिना स्कूल, कालेज चले जाते हैं तथा कामकाजी लोग कार्यालय या दुकान आदि पर चले जाते हैं, कुछ लोग सिर्फ दूध आदि लेकर चले जाते हैं। यह ध्यान रखने योग्य है कि सवेरे दूध लेना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, उसकी जगह फलों का ताजा रस लेना बेहतर है और सवेरे का नाश्ता न करना गलत आदत है। सवेरे उठने के आधे घंटे के अंदर-अंदर कोई फल खा लेना या ड्राई फ्रूट लेना स्वास्थ्यवर्धक होता है। दूध रात को लेना चाहिए और दूध के साथ कोई खट्टा फल नहीं लेना चाहिए, इसमें एक ही अपवाद है कि दूध के साथ आंवले का मुरब्बा लेना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना गया है। भोजन के बाद आइसक्रीम आदि कोई ठंडी चीज खाना बहुत हानिकारक है। कुछ मीठा खाना ही हो तो हलुवा, गुलाब जामुन आदि कुछ गर्म चीज लेनी चाहिए। दूसरा सूत्र कहता है कि भोजन चबा-चबाकर खाना चाहिए। मनीषियों ने तो इसे इस प्रकार कहा है कि जितने मुख में दांत हैं, उतनी बार भोजन को चबाना चाहिए। कुछ लोग मुंह में ग्रास डालते ही अगला ग्रास तोड़ लेते हैं, इससे ऐसी आदत बन जाती है कि हम भोजन को पूरा नहीं चबाते और शीघ्र ही निगल लेते हैं।

इसीलिए कहा गया है कि ‘खाना पियो’, यानी उसे इतना चबा लो कि वह तरल बन जाए। हम भोजन को जितना चबाएंगे, वह उतना ही स्वादिष्ट लगेगा और स्वास्थ्यकर भी होगा। इसी सूत्र का अगला भाग कहता है कि ‘पानी खाओ’। इस पूरे सूत्र को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। पानी खाओ का अर्थ है कि पानी कभी भी गटागट न पियें, बल्कि घूंट-घूंट करके और बहुत धीरे-धीरे पियें। हमारे पेट में अम्ल (एसिड) होता है और हमारे मुंह में बनने वाली लार क्षारीय है। हमारी लार जितना अधिक पेट में जाएगी, वह उतना ही शरीर को न्यूट्रल बनाएगी यानी अम्लीय अवस्था का समाधान करेगी, पेट में अम्ल होने से जलन होती है, खट्टे डकार आते हैं जबकि हमारी लार ही उनका इलाज है। भोजन चबा-चबाकर खाने तथा पानी घूंट-घूंट कर पीने से उनमें ज्यादा से ज्यादा लार मिलती है जो मुफ्त में प्राकृतिक ढंग से हमारी एसिडिटी का इलाज करती है। लार में बहुत से जीवाणु होते हैं जो हमारे शरीर के लिए तो ठीक हैं, परंतु थूक देने पर दूसरों के लिए बीमारी का कारण बनते हैं। इसीलिए कहा गया है कि थूकना नहीं चाहिए। थूकने के बजाय लार को निगल लेना न केवल हमारे लिए लाभदायक है, बल्कि उससे गंदगी भी नहीं होती और हम दूसरों के लिए बीमारी का कारण भी नहीं बनते। आपने देखा होगा कि चोट लग जाने पर जानवर जख्म को चाट-चाट कर अपनी लार से ही ठीक कर लेते हैं। लार के इन औषधीय गुणों का लाभ उठाने के लिए हमें बस थोड़े से अनुशासन की आवश्यकता है। यह याद दिलाना आवश्यक है कि खाना पीयें, पानी खायें, समय पर सैर करें ताकि स्वस्थ बनें और खुश रहें।

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता

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