खुशी के दाम

खुशियों का मूल मंत्र बस इतना-सा ही है। इससे भी आगे बढक़र देखें तो खुशी एक ऐसी जरूरत है जिसके लिए पैसे खर्च नहीं होते। गर्मियों में शीतल हवा में बैठना और सर्दियों में गुनगुनी धूप में बैठकर विटामिन-डी लेना मुफ्त है। पेड़-पौधों, फूलों-पत्तियों का आनंद लेना मुफ्त है। किसी को गले लगाना मुफ्त है। किसी को दो मीठे बोल बोल देना मुफ्त है। किसी की बात सुन लेना मुफ्त है। सैर करना मुफ्त है। कसरत करना मुफ्त है। प्राणायाम मुफ्त है। ध्यान करना मुफ्त है। अपनी छोटी-छोटी सफलताओं पर खुश होना मुफ्त है। अपने बच्चों की देखभाल करना, उन्हें समय देना, उनकी प्यारी-प्यारी बातें सुनना मुफ्त है। अपने लक्ष्य की तरफ टिके रहना मुफ्त है। खुश रहना और खुश रखना मुफ्त है…

एक अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि देश में हर सात में से एक भारतीय गंभीर मानसिक बीमारी से पीडि़त है। इस अध्ययन के मुताबिक 2017 में प्रत्येक सात में से एक भारतीय अलग-अलग तरह के मानसिक विकारों से पीडि़त रहा जिसमें अवसाद और व्यग्रता सर्वाधिक प्रमुख थे। मानसिक विकार के कारण शरीर में होने वाली बीमारियां 1990 से 2017 के बीच दोगुनी हो गईं। इन मानसिक विकारों में अवसाद, व्यग्रता, विकास संबंधी अज्ञात बौद्धिक विकृति, आचरण संबंधी विकार आदि शामिल हैं। अवसाद और व्यग्रता सबसे आम मानसिक विकार हैं और उनका प्रसार भारत में बढ़ता जा रहा है और दक्षिणी राज्यों तथा महिलाओं में इसकी दर ज्यादा है। अध्ययन में कहा गया कि अधेड़ लोग अवसाद से ज्यादा पीडि़त हैं। अवसाद का संबंध भारत में आत्महत्या के कारण होने वाली मौतों से भी है। इसके अलावा इस अध्ययन में सामने आई सबसे दिलचस्प बात बाल्यावस्था में मानसिक विकारों के बोझ में सुधार की धीमी गति और देश के कम विकसित राज्यों में आचरण संबंधी विकार हैं, जिसकी ठीक से जांच-पड़ताल किए जाने की जरूरत है।

स्पष्ट है कि अधिकांश व्याधियों की जड़ आत्मग्लानि, क्रोध या अस्त-व्यस्तता जनित तनाव ही है और हमें एक समाज के रूप में आगे बढक़र इसके इलाज के लिए काम करने की आवश्यकता है। समस्या यह है कि चिकित्सा विज्ञान के पास इसका कोई पक्का इलाज नहीं है और इसके लिए जिस जानकारी की आवश्यकता है, वह देश में कम ही लोगों के पास है। गलाकाट प्रतियोगिता, दिखावे वाला जीवन, खानपान की अनियमितता आदि ने मिलकर हमारे जीवन में जहर घोल दिया है। आज के संदर्भ में यह एक महत्वपूर्ण सवाल है कि गलाकाट प्रतियोगिता का सामना कैसे किया जाए, कैसे अपनी पहचान बनाई जाए और इस प्रतियोगिता के बावजूद खुश कैसे रहा जाए? मेरा जवाब था कि प्रतियोगिता अच्छी बात है, लेकिन प्रतियोगिता किसी दूसरे से नहीं, बल्कि खुद से होनी चाहिए। हम सब में कुछ न कुछ खूबियां हैं और कुछ कमियां भी हैं, कुछ कमजोरियां भी हैं। हम अपनी कमियों को समझें, कमजोरियों को समझें और उन्हें दूर करने की कोशिश करें। मान लीजिए मुझमें दस कमियां हैं जो मुझे पता हैं तो मुझे पहले कोई एक कमी चुननी चाहिए, उस पर थोड़ा-थोड़ा काम करना चाहिए, धीरे-धीरे उससे छुटकारा पाना चाहिए, हर रोज बस एक प्रतिशत, एक प्रतिशत का बदलाव हर रोज, बस। युद्ध नहीं छेडऩा है, प्यार से, धीरे-धीरे उस कमी को दूर करना है। वजन कम करना हो तो पहले महीने एक किलो भी कम हो जाए तो बहुत बढिय़ा है। यह नहीं होना चाहिए कि जिम जाना शुरू कर दिया, जॉगिंग शुरू कर दी, डाइट बदल दी और दो हफ्ते बाद तंग आ गए तो फिर से पिजा और बर्गर खाकर कोक पी लिया। युद्ध नहीं करना है, बस एक प्रतिशत का बदलाव लाना है हर रोज।

इससे समस्या हल हो जाएगी। समय लगेगा, मेहनत लगेगी, पर समस्या हल हो जाएगी। ऐसा करेंगे तो किसी और से प्रतियोगिता की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी, किसी अन्य से ईष्र्या की भावना नहीं जगती और खुशियों का झरना अनायास ही फूट पड़ता है। रिश्तों में मजबूती लाने और मधुरता लाने के लिए यह समझना आवश्यक है कि लोग सिर्फ सोचते ही नहीं हैं, उनमें भावनाएं भी हैं। विचारों और भावनाओं का यह खेल ही हमारा जीवन बनाता है। हम लोगों के विचारों को ही न सुनें, उनकी भावनाओं को भी समझें। मेरा सदाबहार मंत्र ‘सिर पर बर्फ, मुंह में चीनी’ का आशय ही यही है कि हम सामने वाले की किसी बात पर फट पडऩे के बजाय हम अगर रुक जाएं, सामने वाले के शब्दों से आगे जाकर उनकी भावना को समझें, तो अक्सर हमारे विचार बदल जाते हैं, गिला खत्म हो जाता है और हमारी वाणी में अनायास ही मिठास आ जाती है। सवाल यह भी है कि हम खुशी (हैपीनेस) से आनंद (ज्वाय) और आनंद से परम आनंद (ब्लिस) की ओर कैसे बढ़ें, के जवाब में मैंने कहा कि पैसा कमाना जीवन के लक्ष्यों में से एक होना चाहिए, शिक्षित होना और सफलता पाना, नाम कमाना एक लक्ष्य होना चाहिए, पर यह सब कुछ नहीं है। जीवन के बहुत से सच विरोधाभासी हैं। पैसा इस विरोधाभास का सबसे बढिय़ा उदाहरण है। पैसा जीवन में बहुत कुछ है, पर सब कुछ नहीं है। पैसे की कीमत बहुत है, पर जीवन का अंत होने वाला है तो पैसा एकदम अर्थहीन है। मृत्यु एक शाश्वत सत्य है और यह एक ऐसी दीवार है जिसके पार कुछ नहीं जा सकता, वहां धन की महत्ता समाप्त हो जाती है। यह सच हमें जितनी जल्दी समझ आ जाए उतना ही अच्छा। यह सच, सच होने के बावजूद हमारे लिए सिर्फ एक थ्योरी है, एक सिद्धांत मात्र है जो हमारे जीवन में नहीं उतरा। अगर यह सच समझ में आ जाए तो फिर हमारा जीवन हमेशा के लिए बदल जाता है और परिणाम यह होता है कि रंजिशें, दुश्मनियां, प्रतियोगिताएं, ईष्र्या, गिला, गुस्सा आदि सब खत्म हो जाते हैं। सार यह है कि जब खुश रहना हमारी आदत बन जाए तो वह पहला चरण है, वह हैपीनेस है। जब हम दूसरों की खुशी की वजह बन जाते हैं तो वह आनंद है, ज्वाय है, वह दूसरा चरण है और जब हम यह समझ लेते हैं कि धन का महत्व एक सीमा तक ही है और सारी दूषित भावनाओं से मुक्त हो जाते हैं तो हम परमानंद की स्थिति पा लेते हैं। वह ब्लिस है।

खुशियों का मूल मंत्र बस इतना-सा ही है। इससे भी आगे बढक़र देखें तो खुशी एक ऐसी जरूरत है जिसके लिए पैसे खर्च नहीं होते। गर्मियों में शीतल हवा में बैठना और सर्दियों में गुनगुनी धूप में बैठकर विटामिन-डी लेना मुफ्त है। पेड़-पौधों, फूलों-पत्तियों का आनंद लेना मुफ्त है। किसी को गले लगाना मुफ्त है। किसी को दो मीठे बोल बोल देना मुफ्त है। किसी की बात सुन लेना मुफ्त है। सैर करना मुफ्त है। कसरत करना मुफ्त है। प्राणायाम मुफ्त है। ध्यान करना मुफ्त है। अपनी छोटी-छोटी सफलताओं पर खुश होना मुफ्त है। अपने बच्चों की देखभाल करना, उन्हें समय देना, उनकी प्यारी-प्यारी बातें सुनना मुफ्त है। अपने लक्ष्य की तरफ टिके रहना मुफ्त है। खुश रहना और खुश रखना मुफ्त है। हमने खुद ही जीवन को कंप्लीकेट कर लिया है, दुरुह बना लिया है, वरना जीवन बहुत सहज है, बहुत आसान है और खुश रहने का कोई मोल नहीं है। खुशी के कोई दाम नहीं हैं, खुश रहना सचमुच मुफ्त है। इसके विपरीत उदास होना मुफ्त नहीं है, क्रोध करना मुफ्त नहीं है, डर जाना मुफ्त नहीं है, चिंता में रहना मुफ्त नहीं है, डिप्रेशन में जाना मुफ्त नहीं है। इन सबसे सेहत खराब होती है, शरीर के सैल मर जाते हैं, इच्छाशक्ति कमजोर हो जाती है, दवाइयों का सहारा लेना पड़ जाता है। पॉजिटिव जीवन मुफ्त है, नेगेटिव जीवन में खर्च लगता है। यह पूरी तरह से हम पर निर्भर करता है कि हम कैसा जीवन चुनते हैं।

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता

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