जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू…

मैं फिर से दोहराता हूं कि हमारी कामना के फलीभूत होने का सीक्रेट, यानी रहस्य यह है कि हम इच्छा करें, सपने देखें, और ग्रेटेस्ट सीक्रेट यह है कि हम जिस चीज के सपने देख रहे हों, उसे पाने के लिए सार्थक प्रयत्न भी करें, क्योंकि असली काम तो काम ही है। इसके बिना जो कुछ है वो केवल मुंगेरी लाल के हसीन सपने, या यूं कहें कि शेखचिल्ली के सपनों के समान है, जिसका अंत निराशा और हताशा में होने की संभावना सबसे ज्यादा है। महाकवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने महाकाव्य ‘पद्मावत’ में तो और भी खुलकर कहा है .. ‘जौ लहि आप हेराई न कोई, तौ लहि हेरत पाव न सोई’, यानी, यदि हम कुछ पाना चाहते हैं तो हमें उसे पाने के प्रयास में इतना डूब जाना होगा कि हम खुद को भुला दें, बस इच्छित वस्तु को पाने के प्रयत्न में ही लगे रहें, तभी हमें हमारी इच्छित वस्तु मिलेगी और हमारा सपना साकार होगा। इस सारे विश्लेषण का मतलब एक ही है कि हम जो चाहते हैं, उसे पा सकना संभव तो है, पर उसके लिए आवश्यक प्रयत्न करना जरूरी है…

‘तुम अगर किसी चीज को पूरी शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात उसे तुमसे मिलाने में लग जाती है!’ फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में शाहरुख खान का यह डायलॉग इतना प्रसिद्ध हुआ कि बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ गया। किसी भी फिल्म का डायलॉग बनने से बहुत पहले गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के अध्याय ‘बालकांड’ में इसी बात को इस तरह से कहा था : ‘जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू, सो तेंहि मिलहीं न कछु संदेहू’, यानी, अगर किसी व्यक्ति का किसी अन्य व्यक्ति अथवा वस्तु पर सच्चा प्रेम हो तो वह व्यक्ति या वस्तु उसे मिल कर ही रहेगी, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है। आज के जमाने में इसे ‘लॉ ऑव अट्रैक्शन’ कहा जाता है और दुनिया भर में करोड़ों लोग इसके दीवाने हैं। रॉण्डा बर्न की पुस्तक ‘द सीक्रेट’ की असीमित लोकप्रियता इसका प्रमाण है। अपनी पहली पुस्तक के प्रति लोगों की इस दीवानगी का लाभ उठाकर रॉण्डा बर्न ने अपनी अगली पुस्तक ‘द ग्रेटेस्ट सीक्रेट’ भी छपवा ली और न केवल दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गईं बल्कि रातों-रात अमीर भी हो गईं और अब जीवन भर इन पुस्तकों की बिक्री से होने वाली आमदनी में से अपनी रॉयल्टी की भी हकदार हो गईं। ‘लॉ ऑव अट्रैक्शन’ का प्रचार करने वाले लोगों का कहना है कि हम जो चाहेंगे, हमें मिलेगा ही मिलेगा। अगर हम उनके इस दावे को स्वीकार करके यह सोच लें कि हमें बीएमडब्ल्यू कार मिल जाए और अपने घर में हर तरफ बीएमडब्ल्यू कार के फोटो चिपका लें, सारा दिन उन तस्वीरों को देखते रहें और बीएमडब्ल्यू के बारे में ही सोचते रहें तो पक्का मानिए कि अगले सात जन्मों तक भी हमें बीएमडब्ल्यू नहीं मिलेगी।

सच यह है कि ‘लॉ ऑव अट्रैक्शन’ का प्रचार कि जो चाहोगे, वो सिर्फ सोचने से ही मिल जाएगा, एक अधूरा सच है, गलत प्रोपेगैंडा है। मेरी निगाह में यह अनैतिक प्रचार है जो लाखों लोगों को निराश करेगा, और कइयों को तो बर्बाद भी कर देगा। इसी तरह का एक मिथक यह भी है कि ‘ज्ञान एक शक्ति है।’ मैं इसे मिथक इसलिए कह रहा हूं क्योंकि यह भी एक अधूरा सच है जिसने कइयों को नुकसान किया है। ज्ञान खुद में शक्ति नहीं है, पर यह सच है कि हम अपने ज्ञान का सदुपयोग करके उसे शक्ति में बदल सकते हैं। ज्ञान शक्ति बनता है उसके सदुपयोग से। किसी विद्वान ने एक बार कहा था कि यदि आप टीवी पर समाचार नहीं देखते तो आपके पास जानकारी नहीं है, लेकिन अगर आप समाचार देखते हैं तो आपके पास गलत जानकारी है। आज के जमाने में यह एक कड़वा सच है। ‘लॉ ऑव अट्रैक्शन’ का भ्रामक ढंग से प्रचार भी इसी कैटेगरी में आता है। रॉण्डा बर्न की समझदारी या चतुराई इस बात में है कि उन्होंने ‘लॉ ऑव अट्रैक्शन’ के प्रति लोगों की दीवानगी को पहचाना और वक्त के रुझान का फायदा उठाकर एक किताब लिखी और प्रसिद्धि और पैसे दोनों पा लिए। उनकी पहली किताब लोगों को बहका कर गलत आशाएं जगाएगी और अगली किताब में तो कुछ भी ऐसा नहीं है जो किसी को लाभ पहुंचा सके। विश्व प्रसिद्ध ब्राजीलियन लेखक पाअलो कोल्हो ने अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त पुस्तक ‘द ऐलकैमिस्ट’ के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि अगर आप किसी चीज को पूरी शिद्दत से चाहते हैं तो सारी कायनात आपको उससे मिलवाने के लिए आपको राह सुझाती है, सही लोगों से मिलवाती है, लेकिन प्रकृति द्वारा सुझाई गई राह पर चलना हमें ही है, सही लोगों से मुलाकात होने पर उनके ज्ञान और सहयोग का लाभ लेकर काम हमें ही करना है। घर बैठे रहकर बीएमडब्ल्यू कार की तस्वीरें देखने से कुछ नहीं होगा, बीएमडब्ल्यू कार का ध्यान करने के साथ-साथ उसे पाने के लिए आवश्यक मेहनत करना हमारी जिम्मेदारी है।

अगर हम बीएमडब्ल्यू कार का ध्यान करेंगे और उसे पाने के लिए मेहनत भी आरंभ कर देंगे तो प्रकृति उसके लिए सही संयोग जोड़ेगी, सही लोगों से मिलने के अवसर पैदा करेगी। प्रकृति की, ब्रह्मांड की, परमात्मा की भूमिका यहीं तक है, काम तो हमें करना ही है। पाअलो कोल्हो ने अपनी पुस्तक ‘द ऐलकैमिस्ट’ के माध्यम से जो कहा, उसे ही ‘द फिफ्थ माउंटेन’ में अपने प्राक्कथन में दोहराते हुए कहा है कि जब आप किसी चीज को पूरी शिद्दत से चाहते हैं तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने में लग जाती है, लेकिन उस दौरान हमें कई पायदान चढऩे होंगे, जिन्हें शायद हम समझ न पाएं, पर उनका मकसद होगा कि हम वो सीख सकें जो हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचाने में सहायक होंगे। पाअलो कोल्हो ने इच्छा के साथ-साथ प्रयत्न की अहमियत का भी जिक्र किया है। यही पूरा सच है। भारतवर्ष का प्राचीन ज्ञान कहीं भी कर्म की महत्ता को नहीं नकारता, जबकि ‘लॉ ऑव अट्रैक्शन’ का भ्रामक सिद्धांत आपको पूरा सच नहीं बताता।

हां, अगर हम ‘लॉ ऑव अट्रैक्शन’ के सिद्धांत से प्रेरणा लेकर इसमें कर्म भी जोड़ लें तो यूं समझिए कि हमारे हाथ में अलादीन का चिराग आ गया जो हमारी मनचाही इच्छा पूरी तो करेगा, पर पहले हमें उस इच्छा के लाभ के काबिल बनाएगा। परमात्मा की दुकान में पेड़ नहीं मिलते, बीज मिलते हैं। उन बीजों को जमीन देना और उनके उग आने पर खाद-पानी देना हमारा काम है। मैं फिर से दोहराता हूं कि हमारी कामना के फलीभूत होने का सीक्रेट, यानी रहस्य यह है कि हम इच्छा करें, सपने देखें, और ग्रेटेस्ट सीक्रेट यह है कि हम जिस चीज के सपने देख रहे हों, उसे पाने के लिए सार्थक प्रयत्न भी करें, क्योंकि असली काम तो काम ही है। इसके बिना जो कुछ है वो केवल मुंगेरी लाल के हसीन सपने, या यूं कहें कि शेखचिल्ली के सपनों के समान है, जिसका अंत निराशा और हताशा में होने की संभावना सबसे ज्यादा है। महाकवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने महाकाव्य ‘पद्मावत’ में तो और भी खुलकर कहा है .. ‘जौ लहि आप हेराई न कोई, तौ लहि हेरत पाव न सोई’, यानी, यदि हम कुछ पाना चाहते हैं तो हमें उसे पाने के प्रयास में इतना डूब जाना होगा कि हम खुद को भुला दें, बस इच्छित वस्तु को पाने के प्रयत्न में ही लगे रहें, तभी हमें हमारी इच्छित वस्तु मिलेगी और हमारा सपना साकार होगा। इस सारे विश्लेषण का मतलब एक ही है कि हम जो चाहते हैं, उसे पा सकना संभव तो है, पर उसके लिए आवश्यक प्रयत्न करना, खुद को उस वस्तु के काबिल बनाना आवश्यक है, तभी हमारी कामना फलीभूत होगी। इस सच को समझने में ही हमारी भलाई है।

पीके खु्रराना

हैपीनेस गुरु, गिन्नीज विश्व रिकार्ड विजेता

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