कविताएं

By: Jan 23rd, 2017 12:05 am

आहट

रात जाने को है सुबह आने को है।

जिंदगी कोई आहट सुनाने को है।।

देखी दरियादिली तेरे दीदार की।

दिल पे छुरियां हजारों चलाने को हैं।।

मरघटों के हैं सन्नाटे मेरे लिए।

बैंड-बाजा-बाराती सताने को हैं।।

दिल जला मुझको कहते हैं कहते रहें।

कोई मेरे कहां काम आने को हैं।।

हूं ख्याली बना, देखूं तेरे ही ख्वाब।

ख्वाब तेरा तो खुद को ठगाने को है।।

ठोकरें तेरी दीवाना मुझको करें।

ठहरा ठाकुर हमारे ठिकाने का है।।

तेरी जर्रानबाजी का है शुक्रिया।

उलफतें दुनियादारी निभाने को है।।

गीत छेड़ा है मैंने तुम्हारे लिए।

मुझको लगता कि तूं आज आने को है।।

थम गए सिलसिले रंजोगम के जनाब।

जान जाने लगी है जो तूं आने को है।।

कैसे संभलू-संभालू दिलकश अदा।

आज झगड़े यह कातिल मिटाने को है।।

इश्क में देखो आशिक मेरा आशियां।

फूंकाने को बिजलियां गिराने को है।।

नहीं हैरत कोई जो है बदली वफा।

बेवफाई खुद को दोहराने को है।।

तेरे पहलू में मरने बेहतर कहीं।

हो वतन पर फिदा जान लुटाने को है।।

पुकार

पुकारती वसुंधरा,

चले चलो, चले चलो।

मिटाओ नापाक को ,

बढ़े चलो बढ़े चलो।।

शांति पाठ हों न आज,

अब नहीं पुचकार हो।

तांडवी नर्तन करो,

हुंकार-ललकार हो।।

बैठकर बगल में जो,

नोचते हैं दाढि़यां

गाल पर तमाचा एक,

और आज धरे चलो।।….

शठ सुने नहीं पुकार,

सोहते न पुष्प-हार।

प्रच्छन्न हो सर्वदा,

वार पर करता वार।।

जागी है जवानियां,

भूले क्यों कहानियां।

सावधान दुष्ट-मित्र,

इष्ट बन ना अब पलो।।..

एक तेरा धर्म है,

युद्ध करना कर्म है।

सहनशक्ति सीमा तक,

अब वार ही मर्म है।

अब शत्रु-चीत्कार हो,

प्रहार जोरदार हो।

सीमा है निहारती,

अब की बार ना टलो।।…..

— नवीन शर्मा ‘नवीन’ गांव/पत्रालय गुलेर तह. देहरा, जि. कांगड़ा

 


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