विचार

बाजारवाद का दौर है। पब्लिक एकदम नई चीज पसंद करती है। चाहे राजनीति हो, चाहे चाय पकौड़े की दुकान। राजनीति में कुछ नया दिखता है तो पब्लिक एकदम से दीवानी हो जाती है। पकौड़े की दुकान में कोई नई आइटम आ जाती है तो ग्राहक खिंचे चले आते हैं। अब चुनावों का मौसम है तो नई-नई गारंटियां दी जा रही हैं। पुरानी गारंटियां पब्लिक भूल रही हैं, इसलिए पुरानी गारंटियां कैंसिल हो रही हैं और नई गारंटियां ध्यान आकर्षित कर रही हैं। पब्लिक अब 10 गारंटियां भूल गई है। उसे इतना याद है कि गोबर खरीद

हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हैं। भ्रष्टाचार इस कद्र फैला है जो कानून के जरिए अब समाप्त होना भी मुश्किल ही लगता है। भ्रष्टाचार भावी पीढ़ी के कैरियर को भी ग्रहण लगा रहा है और मेहनतकश युवाओं के कैरियर के सपनों को भी चकनाचूर कर रहा है। हाल ही में कोलकाता में शिक्षा के क्षेत्र में घोटाले की खबर सुर्खियों में है। हालांकि इस भर्ती की नियुक्तियों को हाईकोर्ट ने रद्द कर दि

स्ंाविधान की धारा 21 के अंतर्गत व्यक्तिगत जीवन व स्वतंत्रता का विशेष मौलिक अधिकार है, जो कि अपातकाल में भी समाप्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह न्यायशात्र का भी यही सिद्धांत है कि जब तक किसी दोषी को सजा न हो जाए, तब तक उसे निर्दोष ही समझा जाना चाहिए। इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (अब नागरिक सुरक्षा संहिता) में

आम चुनाव, 2024 के संदर्भ में बागी उम्मीदवारों की भी चर्चा की जानी चाहिए। बागी उम्मीदवार किसी भी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र के अभाव के संकेत होते हैं। राजनीतिक दल अपने ही नेताओं, प्रत्याशियों की राजनीतिक बगावत के कारण दोफाड़ तक हो जाते हैं। जनाधार विभाजित हो जाते हैं। काडर और समर्थक भी बंट जाते हैं, लेकिन कई बार यह बगावत अपरिहार्य लगती है। चुनाव लडऩे और सांसद, विधायक बनने की महत्वाकांक्षा औसत राजनीतिक कार्यकर्ता के भीतर होती है, नती

धर्मपुर बस डिपो की चलती बस के टायर ही नहीं खुले, बल्कि पथ परिवहन निगम प्रबंधन की ढीली चूलें भी सामने आ गई हैं। लापरवाही का नजराना किसे मिला, यात्रियों को जो-बाल-बाल बच गए या चालक को- जो सारी नालायकी का जिम्मेदार बना दिया गया। अब अपनी जांच के ढीले पुर्जों को दुरुस्त करने की दृष्टि से एचआरटीसी प्रबंधन ने धर्मपुर बस डिपो के मुख्य व कार्यकारी मुख्य मैकेनिक निलंबित कर दिए, तो चालक संघ ने आंदोलन का शंखनाद करते हुए यह मांग कर डाली कि जांच के फंदे में आरएम और डीएम को भी निलंबन की सूची में डालें। आश्चर्य यह कि जिस बस को जोगिंद्रनगर से अमृतसर जाना था, उसकी चालन क्षम

अभी तक सीपीएम के बारे में यह माना जाता था कि वह विचारधारा पर आधारित पार्टी है। लेकिन वह अपने विदेशी स्वभाव के कारण सौ साल बीत जाने पर भी हिंदुस्तान में अपने पैर नहीं जमा सकी। समाप्ति के इस अंतिम चरण में उसने भी किसी न किसी तरह ‘सांस चलती रहे’ के सूत्र को आधार मान कर कांग्रेस के साथ गठबंधन करके अपनी स्थिति हास्यास्पद बना ली है...

राजनीतिक परिस्थितियां हमेशा हर मुख्यमंत्री को कांगड़ा की चुनौतियों के समक्ष खड़ा कर देती हैं और प्रदेश के मौजूदा मुखिया भी इस दौर से गुजर रहे हैं। कांगड़ा की दीवार-कांगड़ा के दीदार और जुल्म की राह पर रार कल थी और आज भी है। कांगड़ा यूं तो सत्ता का एतबार है और राजनीतिक मशक्कत की सफलता का त्योहार है, लेकिन सरकारें बनते ही यह असंतुलित हो रहा है। खासतौर पर मुख्यमंत्री पद की दौड़ में यह जिला लाचार, बीमार और शिकार ही साबित हुआ। वाईएस परमार के दौर में पंडित सालिग राम को परास्त करने वाले हों या वीरभद्र सिंह के दौर में मेजर विजय सिंह मनकोटिया के पथ को नष्ट करने वाले नेताओं का कांगड़ी

हमारे देश और समाज में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक बुराइयों ने जो पैर पसारे हैं, उसकी वजह लोगों में बढ़ती भौतिकतावादी और आधुनिकता की तृष्णाएं और बेवजह की इच्छाएं भी हैं। झूठी शान के लिए कुछ लोग अनैतिक कार्यों में संलिप्त हो रहे हैं। इनसानियत से गिर रहे हैं। देश की राजनीति में जो दोष आए हैं, उसकी वजह भी यह है कि कुछ लोग राजनी

कांग्रेस में छोटे-छोटे टाइम बम होते है। वे जब भी फटते हैं, तो कांग्रेस का बड़ा नुकसान होता है। अमरीका में बसे सत्य नारायण गंगा राम पित्रोदा (सैम पित्रोदा) ऐसे ही बम हैं। वह कई संवेदनशील और राष्ट्रीय घटनाओं पर अनाप-शनाप बोलते रहे हैं। वह ‘इंडियन ओवरसीज कांग्रेस’ के अध्यक्ष हैं। जब भी केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की सरकार बनी है, उसमें उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है। मनमो