गजलें

By: Jan 16th, 2017 12:05 am

हजारों दीप मैंने बुझते जलाए हैं, गिला किसका।

मैंने वंदे तो क्या पत्थर हंसाए हैं ,गिला किसका।

गगन जब था मुसीबत में तो टूटा इस तरह सारा,

मैंने सूरज सितारे चांद बचाए हैं ,गिला किसका।

मेरे आंसू ने कीमत इस तरह अदा की है,

जरूरत पड़ने पर पर्वत उठाए हैं, गिला किसका।

नदी के छलकते पानी में खड़ कर देखा है हमने,

हमेशा दुश्मनों के डूबे साए हैं, गिला किसका।

मैंने जीवन की सारी धूप में छायों में उत्कंठा में,

कभी आंसू कभी नगमे चुराए हैं गिला किसका,

चढ़े तूफान के भीतर घटा घनघोर बन-बनकर,

कि हमने लहर ऊपर गीत गाए हैं गिला किसका,

तेरे पैरों की नाजुकता तू इक बारी तो आ कर देख,

मुलायम मखमली बिस्तर बिछाए हैं गिला किसका।

मोहब्बत को वो पुल बन कर तो देखे, सुमन हमने भी,

किनारे से किनारे तक सजाए हैं गिला किसका,

मोहब्बत आजमा बेशक, कि हमने भी तो यह आंसू,

पलक पर आने से पहले छुपाए हैं गिला किसका,

धनुष से तीर निकले फिर कभी वापिस नहीं आते,

मैंने वो तीर सब वापिस बुलाए हैं गिला किसका।

बढ़ा कर हाथ हमने दोस्ती की मुहर लगा दी है,

उन्होंने ने भी कदम आगे बढ़ाए हैं गिला किसका,

यह जीवन है मेरे बालम, यह सारा खेल किस्मत का,

कभी अपने भी हो जाते पराए हैं गिला किसका।

 

नेताओं की खेल सियासत समझ गया है चाचा,

बिन तकड़ी के करते तिजारत समझ गया है चाचा।

रंग-बिरंगे भेस बनाकर खाकर रिश्वतखोरी,

लूट लिया है सारा भारत समझ गया है चाचा।

अपना आप बचाकर चल आशा न रख दूजे पर,

रखवाले करते न हिफाजत समझ गया है चाचा।

मतलब की दुनिया सारी, मतलब की मर्यादा,

कहने को है यार मोहब्बत समझ गया है चाचा।

आया मौसम वोटों का, मदिरा नेता से पीकर,

किसने की है यार शरारत समझ गया है चाचा।

वोटें लेकर गांव में नेता पांच वर्ष नहीं आते,

नेताओं की खचरी आदत समझ गया है चाचा।

गुलशन में तो अकसर होती तीखे कांटों वाली,

सुंदर फूलों से नजाकत समझ गया है चाचा।

लोगों में तो बुद्धि आती जाती रहती है,

आंदोलन की आए आफत समझ गया है चाचा।

नकल सिफारिश बेरोजगारी रिश्वत कैसे छूटे,

ठगी महंगाई और गुरबत समझ गया है चाचा।

रिश्ते नाते सूली टंग कर अनुशासनहीन बने,

कुरसी के लिए बगावत समझ गया है चाचा।

देश लिए न सोचे कोई, सोचे घर की खातिर,

लेकर उल्फत देते नफरत समझ गया है चाचा।

‘बालम’ के कहने पर अब तो वोटर नहीं है बिकता,

हक अनुशासन साथ शराफत समझ गया है चाचा।

—बलविंदर ‘बालम’ गुरदासपुर ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)


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