त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

By: Jan 21st, 2017 12:07 am

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंगत्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र-प्रांत के नासिक जिला में है। यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। इन्हीं पुण्यतोया गोदावरी के उद्गम-स्थान के समीप त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करके त्र्यंबकेश्वर नाम से विख्यात हुए। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग हैं जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव, इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। शिवपुराण के ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिए चौड़ी-चौड़ी सात सौ सीढि़यां बनी हुई हैं। इन सीढि़यों पर चढ़ने के बाद ‘रामकुंड’ और ‘लक्ष्मणकुंड’ मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुंचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं। यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।  इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा हुआ। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चांदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है। कहा जाता है ‘प्राचीनकाल में त्र्यंबक गौतम ऋषि की तपोभूमि थी। अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर शिव से गंगा को यहां अवतरित करने का वरदान मांगा। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी का उद्गम हुआ। तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के यहां विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा। महाराष्ट्र में नासिक जनपद के त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को सांस्कृतिक विश्व धरोहर घोषित किया जा सकता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ) ने इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं।


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