धर्म का स्थूल भाग

By: Jan 21st, 2017 12:05 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

इसमें मनुष्य एवं अलौकिक पुरुषों के जीवन के उपाख्यान आदि होते हैं। इसमें सूक्ष्म दार्शनिक तत्त्व, मनुष्यों या अतिप्राकृतिक पुरुषों के थोड़े बहुत काल्पिक जीवन के उदाहरणों द्वारा समझाए जाते हैं। तीसरा है, आनुष्ठानिक भाग। यह धर्म का स्थूल भाग है। इसमें पृजा-पद्धति, आचार, अनुष्ठान, विविध शारीरिक अंग-विन्यास, पुष्प, धूप-धूनी, प्रभृति नाना प्रकार की इंद्रियाग्राह्य वस्तुएं हैं। इन सबको मिलाकर आनुष्ठानिक धर्म का संगठन होता है। तुम देख सकते हो कि सारे प्रसिद्ध धर्मों में ये तीन विभाग हैं। कोई धर्म दार्शनिक भाग पर अधिक जोर देता है, कोई अन्य दूसरे भागों पर। पहले दार्शनिक भाग की बातें लेनी चाहिए। प्रश्न उठता है कोई सार्वभौतिक दर्शन है या नहीं। अभी तक तो नहीं। प्रत्येक धर्म वाले अपने मतों की व्याख्या करके उसी को एकमात्र सत्य कहकर उसमें विश्वास करने के लिए आग्रह करते हैं। वे सिर्फ इतना ही किसी भयानक स्थान में अवश्य जाएंगे। कोई- कोई तो दूसरों को अपने मत में लाने के लिए तलवार तक काम में लाते हैं। वे ऐसा दुष्टता से करते हों, सो नहीं। मानव-मस्तिष्कप्रसूत धर्मांधता नामक व्याधिविशेष की प्रेरणा से वे ऐसा करते हैं। ये धर्मांगध सर्वथा निष्कपट होते हैं, मनुष्यों में सबसे अधिक निष्कपट। किंतु संसार के दूसरे पागलों की भांति उनमें उत्तरदायित्व नहीं होता। यह धर्मांधता द्वारा जगाया जाता है। उसके द्वारा क्रोध उत्पन्न होता है।, स्नायु-समूह अतिशय तन जाता है और मनुष्य शेर जैसा हो जाता है। विभिन्न धर्मों के पुराणों में क्या कोई सादृश्य या ऐक्य है! क्या ऐसा कोई सार्वभौतिक पौराणिक तत्त्व है, जिसे सभी धर्म वाले ग्रहण कर सकें? निश्चय ही नहीं है। सभी धर्मों का अपना-अपना पुराण-साहित्य है, किंतु सभी कहते हैं ‘केवल हमारी पुराणोक्त कथाएं उपकथा मात्र नहीं हैं।’मेरा उद्देश्य अपनी कही बातों को उदाहरण द्वारा समझाना मात्र है, किसी धर्म की समालोचना करना नहीं। ईसाई विश्वास करते हैं कि ईश्वर पंडुक (एक प्रकार का कबूतर) का रूप धारण कर पृथ्वी में अवतीर्ण हुआ था। उनके निकट  यह ऐतिहासिक सत्य है पौराणिक कहानी नहीं। हिंदू लोग गऊ को भगवती के आविर्भाव के रूप में मानते हैं। ईसाई कहता है कि इस प्रकार का विश्वास इतिहास नहीं है,यह केवल पौराणिक कहानी और अंधविश्वास मात्र है। यहूदी समझते हैं, यदि प्रतीक एक मंजूषा या संदूक के रूप में बनाई जाए, जिसके दो पल्लों में दो देवदूतों की मूर्तियां हों, तो उसे मंदिर के सबसे पवित्र स्थान में स्थापित किया जा सकता है। वह जिहोवा की दृष्टि से परम पवित्र होगा, किंतु यदि किसी सुंदर स्त्री या पुरुष की मूर्ति हो, तो वे कहते हैं यह एक वीभत्स प्रतिमा है, इसे तोड़ डालो। हमारा पौराणिक सामंजस्य यही है। यदि कोई खड़ा होकर कहे हमारे अवतारों ने इस आश्चर्यजनक कामों को किया तो दूसरे लोग कहेंगे, यह केवल अंधविश्वास मात्र है। किंतु उसी समय वे लोग कहेंगे कि हमारे अवतारों ने उसकी अपेक्षा और भी अधिक आश्चर्यजनक व्यवहार किए थे और वे उन्हें ऐतिहासिक सत्य समझने का दावा करते हैं। मैंने जहां तक देखा है, इस पृथ्वी पर ऐसा कोई नहीं है, जो इन सब मनुष्यों के मस्तिष्क में रहने वाले इतिहास और पुराण के सूक्ष्म पार्थक्य को पकड़ सके।


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