पशुपालन था किरात जाति के लोगों का व्यवसाय

By: Jan 4th, 2017 12:05 am

किरात जाति हिमालय के दक्षिण क्षेत्र में हिमाचल होते हुए कश्मीर तक तथा उसके नीचे मोहनजोदड़ो तक फैल गई। यह जाति पशुपालक थी और इसमें जन व्यवस्था थी। सिंधु सभ्यता काल में ये जातियां हिमाचल की तराइयों में यत्र-तत्र बसती थीं…

प्रागैतिहासिक हिमाचल

एक दूसरी जाति के नाम का भी उल्लेख मिलता है, जिसे किरात (मंगोल) कहा जाता है। ये लोग कोल जाति के बाद आए। ये पूर्व की ओर ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियों के किनोर-किनारे आए। इन्होंने असम, भूटान, नेपाल में बड़ी बस्तियां बसाईं और यह जाति हिमालय के दक्षिण क्षेत्र में हिमाचल होते हुए कश्मीर तक तथा उसके नीचे मोहनजोदड़ो तक फैल गई। यह जाति पशुपालक थी और इसमें जन व्यवस्था थी। सिंधु सभ्यता काल में ये जातियां हिमाचल की तराइयों में यत्र-तत्र बसती थीं। ऋग्वैदिक ऋषि वशिष्ठ ने उन्हें ‘शिश्नदेव’ कहा है। शिश्नदेव का अर्थ है ‘लिंग को देवता मानकर पूजने वाले।’ यजुर्वेद अथा अथर्ववेद में इस जाति का उल्लेख पर्वतीय गुफाओं के निवासियों के रूप में आया है। किरातों को पहाड़ी तलहटियों से भगाने वाले आर्य थे। उनको विलीन करने वाले और उत्तर की ओर भगाने वाले आर्य नहीं, बल्कि उन्हीं के मध्य-एशिया के भाई-बंधु खश थे, जो मैदानों में नहीं, अपितु पहाड़ में काशगर, हिंदुकुश, कश्मीर और शायद खशधर और खरशाली (हिमाचल प्रदेश) में अपने खश नाम की छाप छोड़ कर आगे बढ़े गए। वे किरातों की भूमि नेपाल तक प्रवेश कर गए। यह प्रवेश शांतिपूर्वक नहीं रहा होगा, क्योंकि दोनों जातियां पशुपालक थीं। किरातों और खशों में आरंभ में युद्ध हुए होंगे। किरात जिन उपत्यकाओं को छोड़ते गए, खश उन पर अधिकार करते गए। जिन किरातों ने आत्मसमर्पण किया वे कालांतर में खशों के बीच ही विलीन हो गए। इस जाति का वर्णन कई संस्कृत गं्रथों में मिलता है। महाभारत में किरातों को हिमालय के निवासी बताया गया है। ये लोक फल-फूलों का आहार करते थे और मृगछाला पहनते थे। वन पर्व के अध्याय 140 में भी किरातों और तगणों के निवास का वर्णन मिलता है। मनु ने भी किरातों का वर्णन किया है। मनु ने लिखा है कि ये लोग कर्म न करने से शूद्र हो गए हैं। हिमवान के इन किरातों की जानकारी महाकवि कालिदास (चौथी शताब्दी) को भी थी। उन्होंने रघु द्वारा किरातों को परास्त करने का उल्लेख किया है। रघुवंश में ही किन्नरों का उल्लेख आता है। एक इतिहासकार ने एक शोध लेख में सिद्ध किया है कि रघुवंश का यह किन्नर प्रदेश रामपुर बुशहर के ऊपरी भाग में है, जिसे हम आज किन्नौर जिला के नाम से जानते हैं। स्वर्गीय राहुल सांकृत्यायन के विचारों में किन्नरों और किरातों के पारस्परिक संबंधों के बारे में ठीक से कुछ बताना आसान नहीं। किन्नरों का देश एक समय हिमाचल में गंगा के पठार से पश्चित में सतलुज और चंद्रभागा (चिनाव) के पठार तक फैला हुआ था और किरात गंगा के पठार के पूर्वी छोर को साथ समेटते हुए सारे नेपाल तक फैले थे।


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