‘मोदी कांग्रेस’ में परिवारवाद !

By: Jan 20th, 2017 12:05 am

बुजुर्ग कांग्रेसी नेता नारायण दत्त तिवारी भाजपा में शामिल हुए। यह जितनी बड़ी खबर थी, उतनी ही हास्यास्पद और सवालिया भी। लेकिन मीडिया में छीछालेदर के बाद सूत्रों के जरिए खबर आई कि तिवारी नहीं, उनके बेटे रोहित शेखर भाजपा में शामिल हुए हैं। अलबत्ता तिवारी जी भाजपा का समर्थन जरूर करेंगे। रोहित को उत्तराखंड में हल्द्वानी सीट से भाजपा उम्मीदवार बनाया जा सकता है। एक और पैराशूटी प्रत्याशी…! दरअसल जो शख्स चेतना और करियर से कांग्रेसी रहा हो, जीवन के छह दशक कांग्रेस को दिए हों, ऊंचे पद कांग्रेस से ही हासिल किए हों, वह करीब 91 साल की उम्र में महज एक दलबदलू की तरह भाजपा के समर्थन में…! हैरानी के साथ हंसी और क्षोभ का एहसास भी होता है। यह चुनाव का मौसम है। भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में जीत हासिल करना एक मकसद को पाना है, राजनीतिक मजबूरी भी है और प्रधानमंत्री मोदी के प्रति भ्रम को बचाए रखने की अंतिम कोशिश भी है। लिहाजा भाजपा हरेक हथकंडे अपना रही है। सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस-सभी प्रमुख दलों से दलबदलू भाजपा में शामिल हुए हैं और यह क्रम अब भी जारी है। मीडिया में सुर्खियां छपने लगी हैं-उत्तराखंड में सोनिया कांग्रेस और मोदी कांग्रेस में मुकाबला। कारण, पहाड़ी राज्य में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता दल बदल कर भाजपा में शामिल हो गए हैं और उत्तर प्रदेश में भी यही हुआ है, लिहाजा नया नामकरण ‘मोदी कांग्रेस’ कर दिया गया है। बहरहाल संदर्भ तिवारी जी का लेते हैं। बेशक तिवारी जी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन वह आपातकाल का दौर था, इंदिरा गांधी जैसी ताकत कांग्रेस का नेतृत्व कर रही थी। बाद में राजीव गांधी का युग आया, जब लोकसभा में कांग्रेस की 400 से अधिक सीटें थीं। एनडी तिवारी उस दौर में मुख्यमंत्री रहे और राजीव कैबिनेट में वित्त ओर विदेश मंत्री रहे। तिवारी आखिरी बार 1988-89 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, जो राजीव गांधी युग का अस्तकाल था। उसके बाद से लेकर आज तक कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 30 सीटें कभी नहीं जीत पाई है। वह 10-14 फीसदी वोट की पार्टी बनकर रह गई है। राहुल गांधी ने ‘27 साल, यूपी बेहाल’ का जो नारा दिया था, उसकी शुरुआत 1989 से ही होती है। उसके बाद का दौर मुलायम सिंह, कांशीराम-मायावती और भाजपा का रहा है। बहरहाल आज का उत्तर प्रदेश बिलकुल भिन्न है। यदि भाजपा की रणनीति यह है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में तिवारी जी की शख्सियत और पुराने प्रभाव को भुनाया जाए, तो भाजपा मुगालते में है, हम इतना दावा कर सकते हैं। आज के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में तिवारी जी प्रासंगिक नहीं रहे हैं। हैरानी तो यह है कि भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार सरीखे कद्दावर, लेकिन उम्रदराज, नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में रखकर हाशिए पर धकेल रखा है और 91 साल के तिवारी जी का स्वागत भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कर रहे हैं। चर्चा तो यह है कि तिवारी जी बाद में भाजपा में आ जाएंगे। फिलहाल भाजपा के ‘साथ’ हैं। उन्हें अपने बेटे की राजनीति शुरू करानी है। इसी तरह बहुगुणा, आर्य, रावत, पंत आदि कई परिवार भाजपा में शामिल हो गए हैं। उन्हें टिकट भी मिल गया है। अब वे ‘मोदी कांग्रेस’ के परिवारवाद के हिस्सा हैं, लेकिन काडर के जो लोग सालों से दरी बिछाते रहे हैं, भीड़ जुटाते रहे हैं, पार्टी के प्रचार में रात-दिन लगे रहे हैं, उन्हें इस परिवारवाद में नजरअंदाज किया जा रहा है। नतीजतन कई सीटों पर बगावत की खबरें आ रही हैं। यह भाजपा का चाल, चरित्र, चेहरा नहीं है। भाजपा परिवारवाद का घोर विरोध करती रही है, लेकिन चुनावी मजबूरी ऐसी है कि अब उसे भी ‘मोदी कांग्रेस’ नामकरण धारण करना पड़ रहा है। तो फिर कांग्रेस और भाजपा में बुनियादी अंतर सिमटते जा रहे हैं। जो आयातित नेता भाजपा में आए हैं, उनकी अपेक्षाएं ऐसी हैं कि पूरी सत्ता का गोवर्धन मानो उन्हीं की हथेली पर स्थित हो! बसपा से आए स्वामी प्रसाद मौर्य अपने 70 उम्मीदवारों के लिए टिकट चाह रहे हैं। परिवार में कुछ रूठा-रूठी भी दिख रही है। कमोबेश यह राजनीति भाजपा की कभी देखी नहीं गई। अब इस परिवारवाद की नियति क्या होगी, उस पर हमारी निगाहें लगी हैं।

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App