लोहड़ी का त्योहार

By: Jan 8th, 2017 12:05 am

मकर संक्रांति के एक दिन पहले जब सूरज ढल जाता है तब घरों के बाहर बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं। जनवरी की तीखी सर्दी में जलते हुए अलाव अत्यंत सुखदायी व मनोहारी लगते हैं। स्त्री तथा पुरुष सज-धजकर अलाव के चारों ओर एकत्रित होकर भांगड़ा नृत्य करते हैं। चूंकि अग्निदेव ही इस पर्व के प्रमुख देवता हैं, इसलिए चिवड़ा, तिल, मेवा, गजक आदि की आहुति भी अलाव में चढ़ाई जाती है। नगाड़ों की ध्वनि के बीच नृत्य देर रात तक चलता रहता है। इसके बाद सभी एक-दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हैं तथा आपस में भेंट बांटते हैं और प्रसाद वितरण भी होता है। प्रसाद में पांच मुख्य वस्तुएं होती हैं। तिल, गजक, गुड़, मूंगफली तथा मक्का के दाने। आधुनिक समय में लोहड़ी का पर्व लोगों को अपनी व्यस्तता से बाहर खींच लाता है। लोग एक-दूसरे से मिलकर अपना सुख-दुःख बांटते हैं। यही इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य भी है।


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