गंधकयुक्त है तत्तापानी चश्मे का पानी

By: Feb 8th, 2017 12:15 am

तत्तापानी चश्मे का पानी प्राकृतिक गंधक युक्त है। इस चश्मे के उद्भव के बारे में प्रचलित है कि एक बार जब स्थानीय राजा रुद्राजीत ने महर्षि जम्दग्नि से कामधेनु गाय को छीनना चाहा तो उस समय जम्दग्नि पुत्र परशुराम, मणिकर्ण तीर्थ के तप्त कुंड में स्नान कर रहे थे…

गर्म पानी के चश्मे

यज्ञ में उनकी उपस्थिति को अनिवार्य मानते हुए जब भगवान राम ने ऋषि शृंगी और अनुज लक्ष्मण को गुरु वशिष्ठ को लाने भेजा, तो यहां पर चारों तरफ बर्फ जमी हुई थी। गुरु वशिष्ठ ने जब ऋषि शृंगी और लक्ष्मण को देखा तो उन्होंने लक्ष्मण को आदेश दिया कि वह धरती पर अग्नि बाण छोड़ें। गुरु आज्ञा का पालन करते हुए लक्ष्मण ने जब धरती पर अग्नि बाण छोड़ा तो धरती से गर्म पानी का चश्मा फूट पड़ा। तब से आज तक लगातार गर्म पानी की धारा यहां से बह रही है। कुल्लू घाटी के सभी देवता वशिष्ठ कुंड में स्नान करने आते हैं, लेकिन ऋषि वशिष्ठ स्वयं बर्फ सी ठंडी भृगु झील में स्नान करते हैं।

कलथ : यह स्थान मनाली से चार किलोमीटर, कुल्लू की ओर सड़क के निकट ब्यास नदी के दायीं ओर है। कलथ स्रोत का जल न अधिक गर्म है और न अधिक ठंडा। जल का तापमान नहाने के अनुकूल है। सड़क के किनारे एवं निकट होने के कारण सारा दिन नहाने वालों का तांता लगा रहता है। इस जल में लौह अयस्क की मात्रा अधिक है। पेट की गैस और गठिया के लिए यहां का जल गुणकारी है।

बैहना : बाहरी सराज में सतलुज के किनारे लूहरी के निकट, आनी-लूहरी सड़क पर यहां गर्म जल का स्रोत स्थित है। यहां का पानी गुनगुना है। इस के नीचे नहाया जा सकता है।

तत्तापानी : यह सतलुज नदी के दाएं किनारे पर शिमला से 51 किलोमीटर तथा नालदेहरा से 29 किलोमीटर दूर जिला मंडी में स्थित है। इस चश्मे का पानी प्राकृतिक गंधक युक्त है। इस चश्मे के उद्भव के बारे में प्रचलित है कि एक बार जब स्थानीय राजा रुद्राजीत ने महर्षि जम्दग्नि से कामधेनु गाय को छीनना चाहा तो उस समय जम्दग्नि पुत्र परशुराम, मणिकर्ण तीर्थ के तप्त कुंड में स्नान कर रहे थे। उन्हें एकदम योग माया से आभास हुआ कि उनके पिता श्रेष्ठ पर संकट आन पड़ा है। वह एकदम तप्त कुंड से निकले और जम्दग्नि  आश्रम पहुंच राजा रुद्राजीत को मौत के घाट उतार दिया। परशुराम जब आश्रम पहुंचे थे, तो उनकी धोती मणिकर्ण के गर्म पानी से गीली ही थी। उन्होंने आश्रम स्थल पर ही धोती को निचोड़ा और जो जल धोती से निकला वह आश्रम भूमि पर भू-गर्भ में समा गया। महर्षि जम्दग्नि ने अपने पुत्र की वीरता की स्मृति को बनाए रखने के लिए इस भू-गर्भित गर्म पानी को अपनी अलौकिक शक्ति से स्थायी जल स्रोत के रूप में स्थापित कर दिया। सतलुज की शीतल जलधारा के साथ यह गर्म पानी का चश्मा विद्यमान है।


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