गणेश पुराण

By: Feb 18th, 2017 12:05 am

दैत्य ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। इसके उत्तर में विष्णुजी ने कालंदड नाम के अस्त्र का प्रयोग किया। इसके प्रयोग से इतनी तेज हवा चली कि धरती कांपने लगी।  इसके उत्तर में दैत्यों ने नारायणास्त्र का प्रयोग करना चाहा, तो वैसे ही विष्णुजी ने अपना चक्र हाथ में लिया और ग्रसन दैत्य का गला काट दिया…

इससे कालनेमि को बहुत क्रोध आया वह अश्विनी कुमारों को पकड़ने के लिए उनकी ओर दौड़ा। तब उसे अपनी ओर आते हुए देखकर वह दोनों रथ से कूद कर भागने लगे और इंद्र के पास आ गए। कालनेमि भी अश्विनी कुमार का पीछा करते हुए इंद्र के पास आ गया और उसने कहा कि देवताओं की पराजय हो गई है। दानव लोग हिम्मत बांधकर फिर से युद्ध करने लगे। देवताओं में पराजित होने की मानसिकता फैल गई। यह देखकर सूर्य ने गरुड़जी को बुलाया और जैसे ही गरुड़जी आकाश में उपस्थित हुए, तो सभी दानव उनके तेज से विस्मित हो गए। वह सब गरुड़जी को ही अपना निशाना बनाने लगे। किंतु गरुड़जी ने अपने तीखे पंखों से दानवों को घायल करना प्रारंभ कर दिया, लेकिन धीरे-धीरे वह भी कमजोर पड़ने लगे। जब विष्णुजी ने यह देखा कि गरुड़जी भी दुर्बल हो रहे हैं, तो उन्होंने विभिन्न बाणों का प्रहार करके दानवों को तेज से हीन किया। इस तरह कालनेमि और विष्णुजी में युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में कालनेमि का गौरव कम हुआ और वह कमजोर पड़ने लगा।  कालनेमि और विष्णु के युद्ध में कालनेमि को दुर्बल देखकर, पहले तो उनका सारथी भाग गया, लेकिन बाद में निमि नाम का दैत्य विष्णु से लड़ने आ गया। उसके इस साहस को देखकर अन्य दैत्य भी वहां पर एकत्रित हो गए और अनेक अस्त्र-शस्त्रों से युद्ध करने लगे। सबने विष्णुजी को घेर लिया, लेकिन दैत्यों के द्वारा छोड़े गए सभी शस्त्र विष्णु जी के शरीर का स्पर्श करते ही शांत हो जाते थे। फिर कुछ समय बाद एक साथ ही विष्णु ने एक बाण महिषासुर की छाती में, बारह जंबासुर पर और 20 निमि पर छोड़े। किंतु इससे न घबराकर निमि ने भाले से विष्णु के धनुष को काट डाला और महिषासुर ने हाथ पर प्रहार करके बाणों को नीचे गिरा दिया। इस युद्ध में गरुड़जी घायल हुए। विष्णुजी ने गदा फेंकी तो वह भी छिन्न- भिन्न हो गई। फिर मुदगर फेंका, लेकिन उसे भी दैत्यों ने प्रभावहीन कर दिया। फिर इसके बाद विष्णु ने अपनी शक्ति से जंबासुर पर प्रहार किया, लेकिन उसे जंबासुर ने अपने हाथ से रोक लिया फिर विष्णुजी ने दूसरा धनुष लिया और बाणों की झड़ी लगा दी।  सभी सैनिक त्रस्त होकर इधर-उधर भागने लगे। दैत्य ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। इसके उत्तर में विष्णुजी ने कालंदड नाम के अस्त्र का प्रयोग किया। इसके प्रयोग से इतनी तेज हवा चली कि धरती कांपने लगी।  इसके उत्तर में दैत्यों ने नारायणास्त्र का प्रयोग करना चाहा, तो वैसे ही विष्णुजी ने अपना चक्र हाथ में लिया और ग्रसन दैत्य का गला काट दिया। यह देखते ही अन्य दैत्य सैनिक भयंकर रूप से युद्ध करने लगे और अनेक अस्त्र- शास्त्रों को लेकर विष्णुजी पर टूट पड़े। उन्होंने मिलकर युद्ध करते समय विष्णुजी पर तेज आक्रमण किया। किंतु विष्णुजी ने बड़ी आसानी से उनके शस्त्रों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।


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