जनसंख्या बम
( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )
है पहाड़ सी समस्या, सब मुश्किल का मूल,
जनसंख्या ने तोड़ दी, सभी प्रगति की चूल।
जो मर्जी कुछ भी करें, होएंगे बर्बाद,
भारत भी एक देश था, जग रखेगा याद।
कुछ ही समय में रेंगते, घूमेंगे इनसान,
बेटे की ही चाह है, पढ़े-लिखे हैवान।
चले डूबने जानकर, आत्मदाह की चाह,
अगर नहीं हम चाहते, क्योंकर निकले राह।
गांव फैल कस्बे बने, बढ़ती जाती भीड़,
महानगर कस्बे बने, विषय बड़ा गंभीर।
बस की छत पर भीड़ है, कैसी रेलमपेल,
भीड़, भीड़ ही भीड़ है, भरी खचाखच रेल।
एक किलो राशन मिला, बैठे लोग हजार,
छीना झपटी हो रही, होती मारामार।
कीट केंचुए रेंगते, नहीं आ रहा होश,
फौज बढ़ाने का नशा, बने हुए बेहोश।
धरती छोटी पड़ गई, नहीं बची कुछ आस,
अब अनाज दाना नहीं, आओ चर लें घास।
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