परवरिश के सामान्य सूत्र

By: Feb 18th, 2017 12:05 am

बाल्यकाल में जिन आदतों की नींव लग जाती है। वह ही सारे जीवन भर अपना प्रभाव डालती रहती है। वस्तुतः बाल्यकाल संपूर्ण जीवन की नींव है। बच्चों की कोमल मनोभूमि पर पड़े हुए विभिन्न प्रभाव उनके मानस पटल पर चित्रवत अंकित हो जाते हैं। अच्छा या बुरा जैसा भी प्रभाव बच्चों पर पड़ता है, वैसे ही वे बन जाते हैं…

बच्चों के शारीरिक और मानसिक जीवन का गठन बहुत कुछ अभिभावकों पर निर्भर करता है। पालन-पोषण से संबंध रखने वाले बहुत सी बातें भी बच्चों के जीवन में महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। वैसे प्रत्येक बच्चे के स्वभाव, संस्कार, मूल प्रवृत्तियों में अपनी कुछ न कुछ विशेषताएं ठीक उसी तरह होती हैं, जैसे सबके अलग-अलग चेहरे, अंगूठे की अलग-अलग छाप। फिर भी मां-बाप द्वारा बच्चों का पालन-पोषण उनके विकास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। अच्छी तरह खाद-पानी देकर, काट-छांट करके माली पौधों को अधिक उपयोगी और फलदायी बना सकता है। उपेक्षा, साज-संभाल के अभाव में मूल्यवान पौधा भी सूख जाएगा या अविकसित, भौंडा रह जाएगा, जिससे मधुर फलों की कोई आशा नहीं जा सकती। इसी तरह बच्चों का ठीक-ठीक पालन-पोषण किया जाए, उनकी शिक्षा का समुचित ध्यान रखा जाए, तो मनुष्य की शक्ल में पैदा होने वाला प्रत्येक बालक उत्कृष्ट और महान व्यक्ति बन सकता है। इसके विपरीत ठीक-ठीक पालन न होने पर बालकों के निर्माण में ध्यान न देने से होनहार बालक भी अविकसित रह जाते हैं। बाल्यकाल में जिन आदतों की नींव लग जाती है, वह ही सारे जीवन भर अपना प्रभाव डालती रहती है। वस्तुतः बाल्यकाल संपूर्ण जीवन की नींव है। बच्चों की कोमल मनोभूमि पर पड़े हुए विभिन्न प्रभाव उनके मानस पटल पर चित्रवत् अंकित हो जाते हैं। अच्छा या बुरा जैसा भी प्रभाव बच्चों पर पड़ता है, वैसे ही वे बन जाते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों पर अच्छा प्रभाव पड़े, उन्हें अच्छाइयों की प्रेरणा मिले। यह सब मां-बाप के ऊपर ही निर्भर है। बच्चों का पालन-पोषण एक महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्त्व है, इसे पूर्ण करने के लिए उन्हें काफी समझदारी,ज्ञान,विचारशीलता से काम लेना आवश्यक है। कई माता-पिता बच्चों पर आवश्यकता से अधिक प्यार स्नेह-लाड़ करते हैं। हालांकि बच्चों के लिए स्नेह, प्यार-दुलार की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी उन्हें खिलाने-पिलाने की। अभिभावकों के लाड़-प्यार से बच्चों का मानसिक विकास होता है, उनके जीवन में सरसता पैदा होती है, उसका व्यक्तित्व पुष्ट बनता है, किंतु अमर्यादित लाड़-प्यार से बच्चों को कोई काम नहीं करने दिया जाता, उनकी अनुचित मांगों को पूरा करने में कोई कसर नहीं रखी जाती है, तब उनके तनिक से रूठने-मचलने या दूसरे बच्चों की शिकायत पर परेशान हो जाना मां-बाप की ऐसी भूल है, जिनसे बच्चों में अनेकों बुराइयां, खराब आदतें पैदा हो जाती हैं। ऐसे बच्चे आत्मनिर्भर, स्वावलंबी नहीं बन पाते, वे अपने प्रत्येक काम की पूर्ति दूसरों से चाहते हैं। परावलंबन, आलस्य, आरामतलबी, फिजूलखर्ची, आवारागर्दी आदि बुराइयां मां-बाप की उन सामान्य सी भूलों से ही पैदा होती हैं, जो बच्चों के लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा में उन्होंने लाड़-प्यार वश की होती हैं। यह एक आम बात है कि लाड़ले बच्चे अकसर बिगड़ जाते हैं। ऐसे बच्चों में जिंदगी के कठिन दिनों में चलने की शक्ति नष्ट हो जाती है। प्रत्येक बालक में अपनी एक जन्म-जात प्रतिभा होती है, एक विशेषता होती है। बच्चे की इस मूलभूत प्रतिभा को ध्यान में रखकर उसी दिशा में उसे बढ़ाया जाए, तो वह एक दिन असाधारण की स्थिति प्राप्त कर सकता है। इसके विपरीत यदि बालक को उसकी मूल प्रवृत्ति-प्रतिभा के विपरीत चलाया जाएगा, तो यह विशेष सफलता, विकास की स्थिति प्राप्त करने में असमर्थ रहेगा। यह बेचारा सामान्य सी घिसी-पिटी जिंदगी ही व्यतीत करेगा, ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि माता-पिता बच्चे की मूल प्रवृत्ति, मूल प्रतिभा को जानें और उसी के अनुरूप उसे विकसित होने की दिशा, साधन सुविधाएं प्रदान करें। जो मां-बाप अपने ही दृष्टिकोण से अपने इच्छानुसार बच्चे का भविष्य देखना चाहते हैं, वे बड़ी भूल करते हैं। इंजीनियर का लड़का इंजीनियर बने, कलाकार का कलाकार और वकील का लड़का भी वकालत करे, यह कोई नियम नहीं है। रुचि, प्रतिभा, मूल प्रवृत्ति में अभिभावक और बच्चे के कार्यक्रमों में असमानताएं रहनी स्वभाविक ही हैं। अतः एकाकी निर्णय, एकाकी दृष्टिकोण से बच्चे के भावी जीवन की रूपरेखा न बनाए जाए। संगीत प्रतिभायुक्त बच्चों को क्लर्क-राजनीतिज्ञ बनाना, चिंतनशील दार्शनिक विचारक बच्चों को तराजू तौलने की दुकान पर बैठाना, अभिभावकों की बड़ी भारी भूल है। इससे बच्चों की मूलभूत प्रतिभा का विकास नहीं होता।


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