बसपा की ‘सोशल’ रणनीति !

By: Feb 22nd, 2017 12:05 am

बसपा के संस्थापक नेता कांशीराम प्रेस, मीडिया को ‘मनुवादी’ मानते थे। उनकी दलील थी कि बसपा की सोच और बहसों को मीडिया तोड़-मरोड़ कर छापता है। उस दौर में बसपा प्रेस के किसी भी विमर्श में हिस्सा नहीं लेती थी और सोशल मीडिया तो तब था ही नहीं। अब बसपा में मायावती का दौर है। हालांकि प्रेस से उनके रिश्ते गहरे और आत्मीय नहीं हैं, लेकिन अखबारों के दफ्तरों और खासकर समाचार ब्यूरो में कांग्रेस, भाजपा, वामदलों की तरह बसपा भी एक नियमित बीट है। यानी बसपा प्रमुख मायावती तो प्रेस कान्फ्रेंस करती हैं और कुछ इंटरव्यू भी देती हैं। बदलाव सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। बसपा की चुनावी रणनीति सोशल मीडिया के जरिए भी प्रचार पा रही है और अपनी समर्थक जमातों तक बात पहुंच रही है। सोशल मीडिया में फेसबुक, व्हाट्स ऐप, ट्विटर के जरिए 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने व्यापक प्रचार किया और उसके सुखद नतीजे भी सामने आए। अब लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के ‘वार रूम’ सजाए जाते हैं, तो वे सोशल मीडिया के ही प्लेटफार्म हैं। उत्तर प्रदेश चुनाव में यह बदलाव बसपा ही नहीं, कई छोटे दलों के संदर्भ में भी दिखाई दिया है। सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर अकसर बसपा का यह नारा पढ़ा-देखा जा सकता है-‘बहन जी को आने दो…।’ यानी प्रचार किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में बहन मायावती की सरकार बनी, तो कानून-व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह सुधर जाएगी। गुंडे, माफिया जेलों में होंगे। दंगे नहीं होंगे। सरकार विकास के मुद्दों पर फोकस रखेगी। सोशल मीडिया के जरिए यह भी वोटरों तक बात पहुंचाई जा रही है कि शिक्षा और रोजगार के अवसरों का विस्तार किया जाएगा। गौरतलब है कि अकेले उत्तर प्रदेश में ही करीब दो करोड़ युवा पंजीकृत बेरोजगार हैं। यह सरकारी आंकड़ा है, हकीकत इससे भी ज्यादा भयावह हो सकती है। लेकिन बसपा और मायावती खासकर रोजगार को लेकर इस आश्वासन से बचते लगते हैं कि उनकी सरकार सालाना कितने नौजवानों को नौकरी या रोजगार मुहैया कराएगी। हालांकि बसपा में चुनावी घोषणा-पत्र जारी करने का रिवाज नहीं है। कांशीराम इसे ‘फिजूल’ मानते थे, लेकिन अब छोटी-छोटी दस्तावेजी पुस्तिकाएं छापी और बांटी जा रही हैं। मौजूदा चुनावों में मायावती के प्रमुख भाषणों का भी संकलन किया जाएगा। यही पार्टी के घोषणा और दृष्टि, नीति-पत्र हैं। यानी अब बसपा ने अपनी चुनावी रणनीति बदलनी शुरू कर दी है। मायावती की बसपा जातिवादी और सांप्रदायिक भी है। मायावती ने जातीय गणित के आधार पर ही टिकट बांटे हैं। पूरे चुनाव में वह सरेआम मुसलमानों के वोट मांगती रही हैं, जो सांप्रदायिक भी है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन भी। बसपा की तो रणनीति बदल रही है, लेकिन नेताओं की जुबान इतनी जहरीली, भद्दी, असभ्य, अमर्यादित हो गई है कि निजता के स्तर पर टिप्पणियां की जा रही हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी बहुजन समाज पार्टी की नई परिभाषा दी है-बहनजी संपत्ति पार्टी। मायावती भी पलट कर प्रधानमंत्री को ‘दलित-विरोधी व्यक्ति’ करार देती हैं। हदें और भी लांघी गई हैं कि सपा नेता राजेंद्र चौधरी प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को ‘आतंकवादी’ मानते हैं और आरएसएस को एक खास तरह का ‘कोढ़’! एक कांग्रेसी नेता ने प्रधानमंत्री और भाजपा के लिए ‘सांप’ शब्द का इस्तेमाल किया है। मुद्दों के तौर पर गाय, बैल, गधे दौड़ रहे हैं। विकास कहीं पीछे छूट गया है मानो जनता को वह चाहिए ही नहीं! क्या हमारे लोकतंत्र में अब इसी तरह चुनाव लड़े जाएंगे?


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App