भारत का इतिहास

By: Feb 15th, 2017 12:05 am

भारत विभाजन को महात्मा गांधी का विरोध

मार्च, 1947 में लॉर्ड माउंटबेटेन को नया वायसराय बनाकर भारत भेजा गया। वह 22 मार्च को भारत पहुंचे। माउंटबेटेन शीघ्र ही इस नतीजे पर पहुंचे कि सांप्रदायिक दंगों को यदि और भी अधिक विकराल रूप धारण करने से रोकना है, तो भारतीय हाथों में सत्ता सौंपने में और भी जल्दी करनी चाहिए। उन्होंने अंततः इस काम के लिए 15 अगस्त, 1947 की तारीख तय की। कांग्रेस भी धीरे-धीरे समझने लगी थी कि विभाजन होकर ही रहेगा। कांग्रेस कार्यकारिणी ने अपने 8 मार्च के प्रस्ताव में मांग की थी कि पंजाब और बंगाल का ऐसा विभाजन कर दिया जाए, जिसके द्वारा मुस्लिम बहुल क्षेत्र अन्य क्षेत्रों से अलग कर दिए जाएं। 28 अप्रैल को संविधान सभा में बोलते हुए डा. राजेंद्र प्रसाद ने भी कुछ ऐसा इशारा किया कि हो सकता है भारतीय संघ में सभी प्रांत शामिल न हों, ऐसी स्थिति में हम आग्रह करेंगे कि देश के सभी भागों पर एक ही सिद्धांत लागू होना चाहिए और किसी भी भाग पर उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई संविधान लादा नहीं जाना चाहिए। इसका अर्थ होगा न केवल भारत का विभाजन अपितु कुछ प्रांतों का भी विभाजन। प्रांतों के विभाजन के सुझाव का जिन्ना ने कड़ा विरोध किया। आधे पंजाब और आधे बंगाल वाले ‘कुरा लगे हुए’ पाकिस्तान को तो वे वर्षों पहले ठुकरा चुके थे। भारतीय राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत करने तथा देश की तत्कालीन स्थिति का निकट से अध्ययन करने के बाद लार्ड माउंटबेटेन भी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि देश का विभाजन ही एकमात्र उपाय है। अतः एटली के 20 फरवरी, 1947 के वक्तव्य के दायरे में उन्होंने भारत-विभाजन की एक योजना तैयार की, विवशता की स्थिति में कांग्रेस ने भी इस योजना को मान लिया। गांधी जी अंत तक विभाजन के विरुद्ध रहे। उन्होंने कड़े शब्दों में यहां तक कहा कि यदि सारा भारत भी आग की लपटों में घिर जाए, फिर भी पाकिस्तान नहीं आ सकेगा। अथवा भारत का विभाजन मेरे शव पर ही हो सकेगा। माउंटबेटेन ने नेहरू और पटेल को समझा-बुझाकर तैयार कर लिया था। बाद में ब्रिटेन में विरोधी दल के नेताओं से परामर्श करने के बाद, ब्रिटिश सरकार ने 3 जून, 1947 को एक ताजा नीति संबंधी वक्तव्य दिया। 3 जून के इस वक्तव्य में दी गई योजना में भारत के विभाजन की अनिवार्यता को स्वीकार कर लिया गया था और साथ ही बंगाल और पंजाब के विभाजन की अनिवार्यता पर भी जोर दिया गया था। अतः ऐसी व्यवस्था की गई थी कि भारत तथा पाकिस्तान नामक दो पृथक डोमीनियनों की स्थापना हो तथा बंगाल और पंजाब का विभाजन कर दिया जाएगा।


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