राशन की पुडि़या

By: Feb 21st, 2017 12:05 am

हालांकि समझा यह जाता है कि भाषण की हंडिया पर ही गरीबों के राशन की पुडि़या चढ़ती है, लेकिन हिमाचल परिवहन निगम ने राजीव थाली परोस कर कुछ प्रशंसा बटोर ली। परिवहन क्षेत्र को नित नया नाम देने में माहिर मंत्री जीएस बाली ने, राजीव थाली में जो प्रयोग परोसा उसका असर स्वाभाविक है। खाने की दर और ऐसे आतिथ्य का सलीका कुछ तो हासिल करेगा और यह भी कि ऐसे कदमों के कल्याणकारी रुख का असर नीचे तक होता है। बेशक सियासी घंटियां हिमाचल के बस स्टैंड पर बजेंगी और पच्चीस रुपए में उपलब्ध थाली पर मेहरबान कड़छी दिखाई देगी। आरंभिक शुरुआत से प्रोत्साहित निगम अब अपनी थाली कमोबेश हर बस स्टैंड पर सजाएगा, तो बाली की रसोई सबसे अलग खुशबू से भर जाएगी। हम इस प्रयोग को दो प्रयोगशालाओं में देख सकते हैं। पहली दृष्टि में एचआरटीसी की सुस्त पड़ी कैंटीनों में ग्राहक का इंतजार खत्म होगा, तो इसके कारण यात्रियों को भूख मिटाने का एक ठिकाना भी मिलेगा। हालांकि इससे पूर्व भी कई ढाबे चिन्हित हैं, लेकिन इन्होंने शिकायती रोटियां ही पकाई। जाहिर तौर पर परिवहन को पर्यटन से जोड़ने की इस कोशिश का एक छोर तो एचआरटीसी सजा लेगा, लेकिन पर्यटन निगम को भी इस अभियान को परिभाषित करना होगा। बस स्टैंड से बाहर यात्री जरूरतों की दूरियां पर्यटन निगम पाट सकता है। सत्तर के दशक में एक कोशिश हुई जब निगम ने पर्यटन कैफों की शृंखला शुरू करते हुए कुछ प्रमुख मार्गों पर भी सुविधाएं दीं, लेकिन आज ये बंद हो चुके हैं या इन्हें लीज पर दे दिया गया है। उदाहरण के लिए बैजनाथ स्थित कैफे परिसर का इस्तेमाल अब निजी तौर पर एक स्टोर के रूप में हो रहा है। ऐसे में सड़कों के किनारे यात्री सुविधाओं की संभावना तराशनी होगी, ताकि हिमाचल आने वाले यात्री पर्वतीय दुरूहता को भूल सकें। राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल हाई-वे भी ऐसी योजना को मूल रूप देने जा रहा है। सड़कों के किनारे पार्किंग, रेस्तरां, टेलीफोन बूथ, वाई-फाई, एटीएम, पेट्रोल पंप, वाहन मरम्मत केंद्र तथा टायलट जैसी सुविधाओं से लैस सुविधा केंद्र स्थापित करने के इस प्रस्ताव का ज्यादा से ज्यादा लाभ हिमाचल को उठाना चाहिए। हिमाचल में पीडब्ल्यूडी, परिवहन और पर्यटन विभाग अगर मिलकर काम करें, तो ऐसे अनेक परिसरों के मार्फत यात्री सुविधाओं के साथ-साथ निजी निवेश व स्वरोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा। बाली की थाली का एक दूसरा रंग राजनीति के लिए भी सुखद है, क्योंकि ऐसे प्रयोग से वर्तमान सरकार को साधुवाद मिलेगा और जनता हमेशा सस्ती सुविधाओं को मंजूर करती है। चुनावी वर्ष में राजीव थाली के अधिकतम इस्तेमाल से राजनीतिक ख्वाहिशों को भी खुराक मिलेगी। इससे पूर्व सस्ते अनाज के दाने चुनकर कांग्रेस ने जनता के हलक में अपना राशन उतारा था, तो एचआरटीसी भी इस यात्रा में राशन की पुडि़या यात्रियों की जेब में डाल रही है। बहरहाल राजीव थाली के साथ जुड़ा मकसद तो यही है कि बस यात्री सस्ती रोटी खाकर धन्यवाद करें, लेकिन इस मंशा को अंतरराज्यीय मार्गों पर कामयाब करने की दिशा में काफी मशक्कत की जरूरत है। परिवहन मंत्री ने एचआरटीसी के मार्फत जो रास्ता खोला है, उसका अनुसरण अन्य निगम या मंदिर ट्रस्ट भी कर सकते हैं। मिल्क फेडरेशन ने एक पहल करते हुए त्योहारी मिठाइयां बनाईं, लेकिन नियमित रूप से अपना ब्रांड स्थापित नहीं कर पाया। यह विडंबना है कि मिल्क फेडरेशन का नाता पर्यटन से नहीं जुड़ा और न ही कोई ऐसा उत्पाद उतार पाया, जो सैलानियों की पसंद बनकर पूरे प्रदेश में उपलब्ध हो। इसी तरह मंदिर ट्रस्ट भी यात्री जरूरतों के मानक स्थापित नहीं कर पाए। अगर तमाम मंदिर ट्रस्ट औद्योगिक दृष्टि से प्रसाद, धूप व अन्य सामग्री का उत्पादन करते, तो ये तमाम वस्तुएं आर्थिक मदद करतीं। बाबा बालक नाथ के रोट का प्रसाद अगर तमाम मंदिर परिसरों में सस्ती दरों से उपलब्ध हो, तो हिमाचली खुशबू का एक स्थायी धार्मिक उत्पाद बाजार की अभिलाषा पूरी करेगा। ऐसे मामलों में हिमाचल के फूड क्राफ्ट इंस्टीच्यूट व भारतीय होटल प्रबंधन संस्थान हमीरपुर का सहयोग भी अभिलषित रहेगा।


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