हिमाचल का कद्दावर चेहरा

By: Feb 11th, 2017 12:02 am

आंकड़ों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति में हिमाचली कदमों का कामयाब सफर उस हकीकत की मंजिल है, जहां यह प्रदेश आज खड़ा है। पंजाब से उत्तर प्रदेश तक निकली देश की राजनीति जो बटोर रही है, उससे कहीं भिन्न शिलालेख हिमाचल में पहले से दर्ज हैं। प्रभाव के इसी दौर की नुमाइश में प्रदेश की पैरवी का एक समारोह परिवहन सेवाओं की बेहतरी है। बेशक राजनीति में आपसी विरोध के तर्क नुक्ताचीनी करें, लेकिन कौन यकीन करेगा कि हिमाचल में वोल्वो बसों का संचालन गांव-कस्बों से शुरू हो चुका है। अपने मुकाबले में यह प्रदेश हर उस स्तर को छूने का प्रयास कर रहा है, जो किसी न किसी तरह संभव है। जवाहर लाल मिशन के तहत आई बसों की भूमिका में परिवहन मानदंड बदले और शहरी परिवहन की तहजीब में लो-फ्लोर बसों का आगमन गांव तक हुआ। कुछ इसी तरह शिक्षण संस्थानों की परिपाटियां दिखाई देती हैं। इसे हम हिमाचल का कद्दावर चेहरा भी तो मान सकते हैं कि यहां हरियाणा से कहीं पहले निजी विश्वविद्यालयों की शुमारी में छात्र समुदाय को देखा गया, तो अब सरकारी कालेजों की संख्या पंजाब से कहीं अधिक हो गई। गांव के खेत से नजदीक खड़ा है कालेज और इसी हिसाब से रूसा को अमलीजामा पहनाते हिमाचल ने मंडी में क्लस्टर विश्वविद्यालय की रूपरेखा तैयार कर ली। हिमाचल के कद से कहीं अधिक इंजीनियरिंग कालेज और अब तो मेडिकल कालेज भी इसी रफ्तार से बढ़ रहे हैं। यानी शिक्षा को चिन्हित करते इरादों की प्रतिस्पर्धा में भी यह प्रदेश आगे है और यही दस्तूर छात्र समुदाय के क्षितिज तय कर रहा है। पिछले कुछ सालों में पढ़ाई के पड़ोस में स्थित शिक्षण संस्थानों या विश्वविद्यालयों में हिमाचली बच्चे छाए, तो इधर निजी स्कूलों में सीबीएसई या आईसीएसई की मैरिट भी दिखाई दी। सफलता की हर ऊंचाई पर हिमाचली बेटी का तसदीक होता चेहरा और खुशनसीब अभिभावकों की मेहनत का सेहरा अगर यह प्रदेश पहन रहा है, तो प्रभावशाली होने की चुनौतियां सदा बढ़ती रहेंगी। यह इसलिए भी क्योंकि सैन्य अधिकारियों के रूप में बेटियां आगे बढ़ीं, तो फिल्मी दुनिया के उच्च शिखर पर इनका डंका बजा। कमोबेश राज्य की जनता ने निजी रूप से हर सफलता का व्यावसायिक व व्यावहारिक रूप अंगीकार किया और यही क्षमता एक हिमाचली बाजार और व्यापार को समृद्ध कर रही है। प्रमुख शहरों की तुलना में गांव-देहात तक खुलते रिटेल स्टोर और ब्रांड वस्तुओं की खरीददारी का बढ़ता क्रेज आखिर जन क्षमता का आरोहण ही माना जाएगा। उपभोक्ता मामलों में हिमाचल का ग्राफ चढ़ रहा है तो प्रति व्यक्ति आय की तरक्की में सरकार की भूमिका अछूती कैसे हो सकती। यानी बाजार में रौनक का हिसाब, गृह निर्माण में उछाल और शहरीकरण के विस्तार में हिमाचली तरक्की का विश्लेषण होगा तो प्रशासनिक तौर पर प्रदेश की छवि को हम बेहतर ही पाएंगे। इसलिए केंद्रीय योजनाओं को स्वीकार करने से इनके कार्यान्वयन तक के सफर में यह प्रदेश अव्वल रहता है। जिस कौशल से स्मार्ट सिटी जैसी परियोजनाओं को हासिल करने में राज्य अग्रणी रहा, उसे समझना होगा और यह भी कि बहस के हर बिंदु पर जनता जागरूक है। बेशक राजनीतिक आकार में उत्तर प्रदेश कई गुना आगे दिखाई देगा, लेकिन राज्य की इकाई में हिमाचल का प्रभावशाली पक्ष रेखांकित होता है। विडंबना यही है कि अब राजनीतिक नेतृत्व को युवा क्षमता के आलोक में मानसिकता बदलनी होगी, ताकि उन संदर्भों में तरक्की हो जहां अगली पीढ़ी का भविष्य तय होगा। राजनीतिक चेहरों से कहीं आगे और देश-विदेश की हर सफलता के साथ जो लोग हिमाचल को प्रगतिशील-प्रभावशाली बनाते हैं, उन्हें यह प्रदेश अंगीकार करे तो उन्नति के मायने बदल सकते हैं। प्रवासी हिमाचलियों का एक बड़ा कुनबा देश व विदेश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी धाक जमाने के बाद लौट कर कुछ अपने प्रदेश को देना चाहता है। क्या हम उन्हें बुलाएंगे।


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