हिमाचल की पहली देहदानी महिला

By: Feb 19th, 2017 12:07 am

हिमाचल की पहली देहदानी महिलाचंडीगढ़ में अनाथ बच्चों का आश्रम। न उल्लास , न उमंग और न ही शोर। हर ओर नीरव और खामोश समां। लगता ही नहीं कि यहां पर बच्चे रहते हैं। चारों ओर रंग-बिरंगे फूल पर क्या कहें इन्हें देखने के लिए  इन बच्चों की नजर नहीं है। बस यही वह कारण है कि यहां पर अजीब सी खामोशी की वजह से घुटन का माहौल बन गया है। इस बार  का हमारा सफर भी यहीं से शुरू होता है। यह कहानी है  कुल्लू जिला से संबंध रखने वाली इंदिरा शर्मा हिमाचल प्रदेश की पहली महिला देहदानी हैं। और देहदान करने का इनका यह विचार भाव बनकर चंडीगढ़ के अनाथ आश्रम से उठा और घर पहुंचते-पहुंचते संकल्प में बदल गया। इंदिरा ने फैसला लिया कि वह अपनी आंखें इस आश्रम के जरूरतमंद बच्चों को दान कर देंगी, पर नियम और कानून के आगे बेबस इस समाजसेवी ने  जीते जी न सही, पर मरने के बाद पीजीआई को आंखें दान देने की ठान ली। इतना ही नहीं, अगली सुबह इंदिरा अपनी बीमार सहेली से मिलने के लिए पीजीआई पहुंचीं। यहां पर बिस्तर पर मौत से लड़ते और जिदंगी जीने की चाह रखने वाले एक किडनी के मरीज ने भावुक कर दिया। किडनी के इस रोगी के पास न तो इलाज के लिए पैसे बचे थे और न ही इतना वक्त था कि उस पर दवा और दुआ असर कर पाए। लाचार मरीज की हालत देखकर कुल्लू की यह बेटी पीजीआई प्रबंधन से मिली और बिना किसी को भी इत्तला दिए इस बेटी ने देहदान का फार्म भर दिया। 2009 और 2010 के दौरान देहदान करने वाली यह हिमाचल की पहली महिला हैं, जिन्होंने इतना साहस और जीवट दिखाकर असहाय लाचार व वक्त के मारे लोगों में जीने की चाह जगाई। इंदिरा शर्मा का कहना है कि जिदंगी की कीमत  खाट पर पड़े उस रोगी से बेहतर कौन जान सकता है, जिसे अपनी हर सांस आखिरी ही लगती है। पीजीआई में देहदान की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद कुल्लू पहुंची इंदिरा ने जब अपने इस फैसले के बारे में घर वालों को बताया, तो बवाल हो गया। देहदान जैसा शब्द सुनकर घरवाले खफा  हो गए। कई दिन तक विरोध का दौर चला, पर नेकी के आगे विरोध ने घुटने टेक दिए। घरवालों ने इंदिरा का फैसला स्वीकार कर लिया और आज उन्हें नाज है कि इंदिरा की वजह से कई और लोग दुनिया देख पाएंगे। हिमाचल की पहली इस महिला देहदानी ने लोगों को राह दिखाई है कि अपने लिए जिए तो क्या जिए। इंदिरा शर्मा के देहदान करने के बाद प्रेरणा लेते हुए आज प्रदेश की चार और महिलाएं पीजीआई और आईजीएमसी को देहदान कर चुकी हैं, जिनके देहावसान के बाद जरूरी अंगों को जरूरतमंदों को दान किया जाएगा।  इंदिरा का कहना है कि सहेली के साथ  अचानक आश्रम का वह दौरा उनके जीवन का सबसे अहम हिस्सा रहा। अनाथ आश्रम में दान देने के लिए जाना एक जरिया बन गया, जिससे अब कई जिदंगियां जुड़ गई हैं। कुल्लू में पिता कालीचरन आहलूवालिया और माता दुर्गा देवी के घर जन्मी इंदिरा शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा कटराईं स्कूल में हुई। प्लस टू करने के बाद इंदिरा शर्मा आगे की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ चली गईं। कालेज तक की पढ़ाई इंदिरा ने चंडीगढ़ से ही की। इसके बाद बीएड के लिए वह इलाहाबाद चली गईं। बीएड करने के बाद इंदिरा ने चडीगढ़ से ही बीए ऑनर किया। बचपन से राफ्टिंग का शौक रखने वाली इंदिरा की शादी मनाली के इकवाल शर्मा के साथ हुई। इकवाल शर्मा वह शख्स हैं, जो तीन बार स्केटिंग की स्टेट चैंपियनशिप जीत चुके हैं।  इनकी भी साहसिक खेलों में गहन रुचि है। इंदिरा का कहना है कि आज परिवार के सहयोग और  अपने संकल्प के कारण वह दूसरों का सहारा बनने की दिशा में अग्रसर हैं। महिलाओं को प्रेरित  और साहसिक कदम उठाने वाली हिमाचल की इस बेटी को हमारा सलाम।

— शालिनी राय भारद्वाज, कुल्लू  

मुलाकात

कन्या भ्रूण हत्या रोक लोगों को जागरूक करना मेरा मकसद है…

आपके लिए मानवीय संवेदना का अर्थ क्या है?

मेरे जीवन के साथ मानवीय संवेदनाएं जुड़ी हैं। मेरे भीतर संवेदनाएं   होने के चलते शायद मैं देहदान जैसे कार्य करने में सक्षम हुई।

कब अति व्यथित होती हैं?

जिंदगी में हमने केवल जंग लड़ना सीखा है। हार- जीत का हमने कभी सोचा ही नहीं, तो व्यथित होने का सवाल ही नहीं उठता।

देहदान तक पहुंची आपकी आतंरिक शक्ति को इस दिशा में किस घटना ने बढ़ाया?

जब अपनी सहेली को देखने के लिए चड़ीगढ़ गई, तो वहां पीजीआई में कुछ मरीजों को किडनी के लिए पैसे न होने के चलते तड़पता देख सहन न  कर सकी। इसी बीच नेत्रहीन बच्चों को देखने के बाद ही मन बना लिया कि जाने के बाद मैं दुनिया देख सकूं और देहदान के बाद किसी के काम आ सकूं।

क्या देहदानियों की पहचान में सरकारी तंत्र से कोई प्रोत्साहन मिलता है?

नहीं, आज तक तो मेरे सामने ऐसा नहीं हुआ, लेकिन अगर मैं कहूं तो मिलना चाहिए। जरूरतमंद लोगों को जरूरत पड़ने देहदान का लाभ मिलना चाहिए।

समाज सेवा के मायनों में हिमाचली समाज को आप कितना परोपकारी पाती हैं?

हिमाचल प्रदेश मेरी कर्मभूमि है। इस भूमि में रहने वाले लोग मेरे लिए एक परिवार के सदस्य हैं। हिमाचल प्रदेश देवी- देवताओं की जहां  देवभूमि है। वहीं, इस देवभूमि ने समाज को परोपकार से जोड़ कर रखा है।

राजनीतिक हस्तक्षेप के सामाजिक बुनियाद पर पड़ते असर का कैसे मूल्यांकन करेंगी?

देश राजनीति में पिरोया हुआ है, जिससे समाज अलग- थलग हो रहा है। एक परिवार में खटास पैदा हो रही है। इसी बजह से आज समाज पर  राजनीतिक प्रभाव अकसर देखा जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण यूपी में मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अखिलेश यादव का है।

जहां समाज को सरकारी प्रश्रय की जरूरत नहीं होनी चाहिए?

नहीं, मौजूदा समय में समाज को सरकार की जरूरत है।  सरकार की कई योजनाओं से गरीब, बेसराहरा और जरूरतमंदों को  लाभ मिल रहा है।

कोई लक्ष्य जिसे आप समाज सेवा से पूरा करना चाहती हैं?

मेरे जीवन का लक्ष्य मात्र समाजसेवा है। समाज सेवा पर मैं अपना जीवन न्यौछावर कर सकती हूं। देहदान से मैं जरूरतमंद लोगों को जिंदगी दिलाना चाहती हूं।

देहदान में हिमाचल के प्रयास क्यों सीमित दिखाई देते हैं। क्या नियमों के पालन में स्वास्थ्य विभाग आग्रणी भूमिका निभा रहा है?

नहीं ऐसा नहीं है, लोगों का हमेशा तर्क रहता है कि मरने के बाद स्वर्ग का रास्ता नहीं मिलता इत्यादि। लेकिन जो सही मायने में  समाज के लिए कुछ करना चाहता है, तो उसे ऐसी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए और  समाज के प्रति अपनी अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। रही स्वास्थ्य विभाग की भूमिका, इस तरह के कार्य में उन्हें कई तरह की औपचारिकताएं निभानी पड़ती हैं और यह सही भी है।

संसार का सबसे बड़ा दर्द-मर्ज क्या है। जिसे दूर कर सकती हैं या जो संभव है?

कोख में ही दुनिया में आने से पहले बेटियों का कत्ल कर देना, मेरे लिए सबसे बड़ा दर्दनाक पल है। ऐसे में कन्या भू्रण हत्या को रोकने और इसके प्रति लोगों को जागरूक करना जिंदगी का मकसद है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App