कांगड़ा की दीवारों पर

By: Mar 23rd, 2017 12:02 am

कुछ बुनियादी तराने छेड़कर हिमाचल भाजपा ने अपनी महत्त्वाकांक्षा की छाती अवश्य चौड़ी कर ली है और यही दस्तूर जब धर्मशाला रैली में दिखा तो परिदृश्य में बदलती राजनीति भी संबोधित हुई। भाजपा के दो कुशल चितेरों यानी पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल व शांता कुमार ने धर्मशाला की दीवारों पर एकजुटता का पैगाम लिखकर कांगड़ा को मुस्कराने का बहाना दिया। बेशक भाजपा को कांग्रेसी फैसलों की मिट्टी उखाड़नी है और यह रणभूमि कांगड़ा ही हो सकती है, क्योंकि यहीं पर दूसरी राजधानी का तंबू लगाकर सत्ता अपने दुर्ग की सलामती का पहरा दे रही है। शांता भले ही संन्यास या राजनीतिक अध्यात्म की कंद्राओं से बाहर आए हों, लेकिन भाजपा के आचरण में उनकी तस्वीर आज भी लोगों को पसंद आती है। कुछ वैसे ही अगर पार्टी प्रेम कुमार धूमल को आगामी चुनाव का नेतृत्व न सौंपे या उम्र के बंधन में नेता प्रतिपक्ष को आगे न ले जाना चाहे, फिर भी दो बार की पूर्णकालिक सत्ता का यह चेहरा भाजपा की उम्मीदों को यथावत बटोरता है। कहना न होगा कि कांग्रेस की वर्तमान सत्ता का पिछले चार सालों का सबसे ज्यादा व सीधा मुकाबला भी इस शख्स के साथ रहा है। आज अगर भोरंज उपचुनाव कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर सरीखा है, तो इसकी एक बड़ी वजह भी धूमल हैं, हालांकि कांग्रेस का संगठन वहां कब्र में बैठा है। भाजपा का वर्तमान कारवां नए दौर की राजनीति खोज रहा है और इसीलिए चुनावी परिदृश्य बदलने की कवायद शीघ्रता से काम कर रही है। हिमाचल भाजपा के सामने हालांकि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम, अलग-अलग संभावनाओं का चित्रण हैं, फिर भी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश व पंजाब के परिदृश्य से जुड़े सवाल यहां भी पार्टी को रणनीतिक मंथन तक ले जाएंगे। सबसे अधिक शोर उत्तर प्रदेश से सुनाई देता है और वहीं से नए दौर की राजनीति परिभाषित होकर धर्मशाला के मंच पर सुनाई दी। देश को बदलने का मोदी मंत्र या जादू हिमाचल से करीब रहे, इसकी जिरह व तापमान का अंदाजा भाजपा की हर रैली कराती है। भाजपा सीधे आक्रमण के लिए जो मुद्दे तलाश रही है, उसमें माफिया राज, गुंडागर्दी व ड्रग इत्यादि का दोषारोपण सरकार पर चस्पां है। पुनः नियुक्तियों के बीच क्षेत्रवाद ढूंढ रही भाजपा कितना बटोर पाती है, इसकी दूसरी तरफ मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की शैली व संसार बसे हैं और जहां बेरोजगारी भत्ते के चिन्ह पहरेदारी कर रहे हैं। सरकार के मंत्रियों पर भाजपा की फांस का एक चेहरा जाहिर तौर पर शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा हैं और इसीलिए विरोध की कड़ाकी लिए पूर्व मंत्री किशन कपूर भी घूम रहे हैं। यह दीगर है कि अपने प्रदर्शन की बिसात पर जीएस बाली, मुकेश अग्निहोत्री, सुधीर या कौल सिंह ने इतना तो हासिल किया है कि विरोध की सांसें फूल रही हैं। प्रदेश की दूसरी राजधानी एक मसला तो नहीं, नैतिक फासला जरूर है। स्मार्ट सिटी एक रचना तो नहीं, उपलब्धि जरूर मानी जाएगी। ऐसे में सवाल यह भी कि क्या भाजपा इन दिग्गज कांग्रेसियों के खिलाफ नए और वजनदार उम्मीदवार खोज पाएगी। इस तथ्य में संदेह नहीं कि हिमाचल हमेशा राजनीतिक रूप से परिवर्तनशील रहा है, लेकिन अब तो भाजपा का नारा है कि देश बदल रहा है। बेशक इस शक्ति के केंद्र में मोदी की भाजपा हिमाचल में उतर रही है, लेकिन पंजाब की प्रायश्चित मुद्रा से जुड़े सवाल तो यहां भी पूछे जाएंगे। सबसे रोचक पहलू तो हिमाचल के पड़ोसी उत्तराखंड राज्य ने भाजपा के मार्फत यहां पहुंचाया है। राजनीतिक सेंधमारी का जो सियासी महत्त्व उत्तराखंड के वजूद में भाजपा सरकार को मिला, क्या ऐसी परिस्थितियां हिमाचल में कांग्रेसी कुनबे को तोड़ मरोड़ देंगी। कयास यहां भी जीवित हैं और कांग्रेस के बीच सत्ता की भूख अगर यह रास्ता चुनती है तो ‘कबूल है’ के आदर्श में भाजपा कितनी सफल होगी। देखना यह है कि भाजपा के घुंघरू जनता को मोहित करते हैं या पार्टी के हथियार कांग्रेसी सत्ता को अधिक जोर से धकियाएंगे। हिमाचली मतदाता भी उत्तर प्रदेश की तरह नाच सकता है, लेकिन यहां की सामाजिक पृष्ठभूमि में मतदान का हर कतरा जागरूक व संवेदनशील माना जाता है। आक्रमण की दृष्टि से भाजपा रैलियों की दिशा बता रही है कि चुनावी मुद्दे कितने खूंखार होंगे, फिर भी विकास के रोड मैप पर हिमाचली मतदाता अपने मानचित्र को दुरुस्त करता है। इसलिए धर्मशाला रैली में मात्र विरोध की आंखें जब सत्ता को कसूरवार देखती रहीं, तो कहीं सांसद शांता कुमार ने रेललाइन या धौलाधार पर्यटन की पलकें खोलकर जरूर आशाओं का मंच खोजा होगा। भाजपा मुद्दों की आंच से अपने लक्ष्य बड़े कर सकती है, लेकिन वर्तमान सत्ता के बिखरे इरादों को समेटना भी तो सीखे। यानी दूसरी राजधानी का विरोध है तो इसे किस तरह खारिज करेंगे और अगर सार्थक बहस है तो उसका अंजाम भी तो बताए। धर्मशाला के हिस्से की खिचड़ी में पका केंद्रीय विश्वविद्यालय अब अगर भाजपा की डगर पर चलेगा, तो उसका स्थायी पता क्या होगा। बावजूद इसके यह सभी को मालूम है कि शक्तिशाली भाजपा के केंद्र में हिमाचल की सत्ता की उत्पत्ति में पार्टी की बाहें और निगाहें मजबूत हैं। ये बाहें सरकार की गर्दन पर कितने घाव देती हैं, इससे भी महत्त्वपूर्ण तो वे निगाहें होंगी, जो हिमाचल से वादाखिलाफी न करने का सबब बनें।


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