जंगलों में जड़ समेत उखाड़ी जा रही गुच्छी

By: Mar 21st, 2017 12:01 am

भुंतर – अवैज्ञानिक तरीके से दोहन हिमालयन क्षेत्र के हजारों लोगों के रोजगार का जरिया मानी जाने वाली गुच्छी पर संकट पैदा कर रहा है। गुच्छी को गलत तरीके से ग्रामीणों द्वारा तोड़ने की लगी होड़ ने इसके अस्तित्व पर खतरा पैदा कर दिया है। प्रदेश के जंगलों से गुच्छी अनुकूल मौसम के बावजूद गायब हो रही है, जो वैज्ञानिकों के लिए चिंता का सबब बनी हुई है। पिछले तीन माह से कुल्लू सहित प्रदेश भर में जमकर बारिश और हिमपात के बावजूद प्रदेश के जंगलों से गुच्छी गायब है। गुच्छी की कम पैदावार ने इसके कारोबार से जुड़े प्रदेश के हजारों ग्रामीणों को चिंता में डाल दिया है, तो साथ ही कारोबारी और इससे दवाइयां बनाने वाली दवाई कंपनियों के नुमाइंदे भी असमंजस में हैं। ग्रामीणों के अनुसार मार्च समाप्त होने को है, लेकिन अभी तक भी अनुकूल मौसम के बाबजूद गुच्छी उतनी मात्रा में नहीं उगी है, जितनी चाहिए। पर्यावरण वैज्ञानिकों की मानें तो गुच्छी का अवैज्ञानिक तरीकों से दोहन किया जा रहा, जिससे यह स्थिति पैदा हो रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार गुच्छी एक मशरूम है और सिर्फ  इसके तने को ही तोड़ा जाता है, जबकि इसकी जड़ों को जमीन में ही रखा जाना जरूरी होता है। पूर्व में ग्रामीण इसके जमीन से निकालने में सावधानी बरतते थे, लेकिन कुछ सालों से ग्रामीण इसकी जड़ों को भी उखाड़ रहे हैं। इससे इसके उत्पादन पर संकट की नौबत आ गई है। वैज्ञानिकों की चिंता यह है कि आने वाले समय में भी अवैज्ञानिक तरीके से इसे निकालने की प्रक्रिया यूं ही जारी रही तो निकट भविष्य में इतिहास के पन्नों में यह दर्ज हो सकती है। जीवी पंत हिमालयन पर्यावरण एवं विकास संस्थान के प्रभारी डा. एसएस सामंत कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारकों ने गुच्छी के उत्पादन को प्रभावित किया है, लेकिन अवैज्ञानिक तरीकों से इसका दोहन भी उत्पादन को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाता है। उनके अनुसार इसका कारोबार करने वाले ग्रामीणों को इस संदर्भ में जागरूक करने की आवश्यकता है।

प्रोटीन-फाइबर से भरपूर

गुच्छी में 32.7 फीसदी प्रोटीन, दो फीसदी वसा, 17.6 फीसदी फाइबर, 38 फीसदी कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है और इससे सूजनरोधी, ट्यूमर रोकने वाली और गठिया की दवाओं के अलावा, प्रोटेस्टेट, स्तन कैंसर व कामोत्तेजना दवाएं बनाई जाती हैं। इसमें एंटी-आक्सिडेंट गुण पाए जाने के अलावा थकान कम करने वाला एवं विषाणुरोधी प्रभावों से युक्त गुण भी पाया जाता है।


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