भारत का इतिहास

By: Mar 15th, 2017 12:05 am

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम- 1947

माउंटबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने 18 जुलाई, 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 पास किया। इस अधिनियम के मुख्य उपबंध इस प्रकार थेः (1) 15 अगस्त, 1947 से भारत में भारत आर पाकिस्तान नामक दो डोमीनियनों की स्थापना हो जाएगी। (2) भारत के राज्य क्षेत्र में उन क्षेत्रों को छोड़कर, जो पाकिस्तान में सम्मिलित होंगे, ब्रिटिश भारत के सभी प्रांत सम्मिलित होंगे। (3) पाकिस्तान के राज्य क्षेत्र में पूर्वी बंगाल पंजाब, सिंध और उत्तर पाश्चिमी सीमा प्रांत सम्मिलित होंगे। पूर्वी बंगाल प्रांत में असम का सिलहट जिला भी सम्मिलित है। (4) देशी राज्य दोनों में से किसी भी डोमिनियन में सम्मिलित हो सकते हैं। (5) प्रत्येक नए डोमिनियन का एक गवर्नर-जनरल होगा। गवर्नर जनरल की नियुक्ति सम्राट करेंगे और वह डोमिनियन के शासन के लिए सम्राट का प्रतिनिधि होगा। (6) नए डोमिनियनों के विधान मंडलों को पूर्ण विधान शक्ति प्राप्त होगी और उनकी कोई विधि इस आधार पर अवैध नहीं होगी कि वह ब्रिटिश संसद द्वारा निर्मित किसी वर्तमान अथवा भावी विधि के विरुद्ध है। (7) 15 अगस्त, 1947 के बाद से ब्रिटिश सरकार की उन क्षेत्रों के शासन संबंध में कोई जिम्मेदारी नहीं होगी जो इस दिन के तत्काल पहले ब्रिटिश भारत में सम्मिलित थे। (8) देशी राज्यों के ऊपर सम्राट का अधिराजत्व (पैरोमाउंसी) समाप्त हो जाएगा और सम्राट और देशी शासकों  के बीच जो संधियां या करार थे, उन सबका भी 15 अगस्त, 1947 के बाद अंत हो जाएगा। (9) प्रत्येक डोमिनियन की संविधान सभा डोमिनियन के विधान मंडल की सारी शक्तियों का  प्रयोग करेगी। (10) इस अधिनियम के उपबंधों को लागू करने तथा अन्य प्रासंगिक मामलों का प्रबंध करने के लिए जो भी उपाय आवश्यक होंगे, उन्हें गवर्नर जनरल आदेश द्वारा कर सकेगा।15 अगस्त,1947 को भारतीय इतिहास के एक युग का अंत हुआ और दूसरे का आरंभ। भारत में अंग्रेजों की प्रायः दो-सौ वर्षों की दासता का अंत हुआ। भारतीयों को अपने भाग्य का अपने मन के अनुरूप निर्माण करने का अवसर मिला। भारतीय नेताओं ने स्वेच्छा से लार्ड माउंटबेटन को ही भारतीय डोमिनियन का प्रथम गवर्नर-जनरल चुना। देश के सामने अनेक गंभीर संमस्याएं थीं पर देशवासियों में उन सबका सामना करने का अदम्य उत्साह और साहस भी था। जनता को आशा थी कि अब शीघ्र ही उसके दुखों का अंत हो जाएगा। अतः स्वाभाविक था कि स्वतंत्रता का उत्सव, आजादी का जश्न देश के कोने- कोने में मनाया गया। उत्सवों का सबसे बड़ा केंद्र था राजधानी नई दिल्ली, जहां सत्ता का हस्तांतरण हुआ। यह हर्षोल्लास ज्यादा न चल सका। क्योंकि अगले ही दिन से सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए।


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