भारत का इतिहास

By: Mar 22nd, 2017 12:05 am

स्वतंत्रता का श्रेय कांग्रेस को

अपनी मृत्यु शैय्या पर  रवींद्रनाथ ठाकुर ने ठीक ही कहा था कि अंग्रेज अवश्य ही भारत को छोड़ेंगे लेकिन कैसा भारत वे छोड़ेंगे, कितना दुख भरा जब सदियों पुरानी उनकी शासन की धारा अंत में सूख जाएगी तो अपने पीछे वे कितनी दलदल और कितनी कीचड़ छोड़ जाएंगे। एक व्यक्ति जो कहीं भी स्वतंत्रता दिवस के हर्षोल्लास में शामिल नहीं हुआ था, पर जिसकी अनुपस्थिति सबसे खली थी वह था गांधी। यह थका हारा राष्ट्रपिता इस दिन भी दिल में कितना ही संताप लिए नोआखली में गांव-गांव पैदल चलकर सांप्रदायकि हिंसा की विभीषिका के सताए परिवारों के अवशेषों को सांत्वना और सहानुभूति बांट रहा था। यदि किसी के सपने सबसे अधिक टूटे थे, तो वह व्यक्ति गांधी था, क्योंकि उसने जीवन भर प्रेम और अहिंसा का पाठ पढ़ाया था तथा शांतिमय अंहिसात्मक उपायों से देश की एकता की रक्षा करने और उसे स्वतंत्र कराने के लिए संघर्ष किया था, पर आज जब स्वतंत्रता के साकार होने का क्षण आया तो देश में शांति, प्रेम और अंहिसा नहीं अपितु घृणा, हिंसा और आतंक का साम्राज्य था। औरों के लिए भले ही यह विजय का क्षण रहा हो, पर महात्मा गांधी के लिए इससे अधिक दुखदायी वातावरण और क्या हो सकता था जबकि उनकी आंखों के सामने उनके सभी आदर्शों का खून हो गया हो। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि देश में स्वतंत्रता का विहान लाने का सबसे अधिक श्रेय महात्मा गांधी को तथा उनके नेतृत्व में किए गए कांग्रेस के विभिन्न राष्ट्रीय आंदोलनों को मिलना चाहिए। यह भी सच है कि संसार के इतिहास में यह पहला अवसर था जब बिना हथियारों और लड़ाई के, अहिंसकात्मक आंदोलनों के द्वारा, किसी परतंत्र देश ने इतने विशाल और शक्तिशाली साम्राज्य को सफलतापूर्वक चुनौती दी हो और सदियों की दासता के बंधनों से मुक्ति पाई हो। किंतु यह इतिहास के प्रति अन्याय होगा, यदि हम यह स्वीकार न करें कि जैसा हम देख चुके हैं, यह नहीं कहा जा सकता कि देश को बिना हिंसा के स्वतंत्रता संग्राम में देशवासियों की इतनी जानें नहीं गईं थीं, जितनी केवल 1946-1947 के बीच  भारतीयों की। देश में निर्दोष स्त्री-पुरुष और बच्चों को इतनी अमानुषिक यातनाएं नहीं सहनी पड़ी थीं जितनी भारत में। यह दूसरी बात है कि यह हिंसा  और पाशविकता विदेशी शासकों और भारतीयों के बीच न होकर आपस में भारतीयों के बीच ही हुई। वस्तुतः यह तो और भी  दुखद स्थिति थी। जो भी हो इस हिंसा को स्वाधीनता संघर्ष की कहानी से अलग नहीं किया जा सकता, अलग नहीं देखा जा सकता। जहां एक ओर स्वतंत्रता का श्रेय कांग्रेस को दिया जाता है, उसके नेतृत्व और नीतियों को, और जो कुछ हुआ, उसके दोष से भी मुक्त नहीं किया जा सकता।

 


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